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Krish Vj
सुहाना है, हक़ीक़त से यह बेगाना है दिल इसका हद से ज्यादा दीवाना है चेहरा एक जो अब लगता पुराना है ख़्वाब में वो लगता जाना-पहचाना है ना छू पाते दिलबर को दूर जो वो है ख़्वाब में तो यह इश्क़ का बहाना है मनमोहक मुस्कान रोज मिलती नहीं ख़्वाब में तो मुस्कुराता यह परवाना है इंतज़ार करके यूँ थक गए कब से हम मुलाकात कराता, इसका नजराना है ग़ज़ल:_ ख़्वाबो वाला इश्क़ #collabwithकोराकाग़ज़ #kkpc23 #विशेषप्रतियोगिता #कोराकाग़ज़ #ishq #इश्क़
ग़ज़ल:_ ख़्वाबो वाला इश्क़ #collabwithकोराकाग़ज़ #kkpc23 #विशेषप्रतियोगिता #कोराकाग़ज़ #ishq #इश्क़
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सामाजिक विकास:_ कविता समाज की परिभाषा कहाँ जाने अब लोग यहाँ निज मह्त्व और स्वार्थ की तो सब बातें है यहाँ कहने को सब एक है, बन बैठा संगठन है यहाँ जो बात अपने पर आई खुली गई पोल है यहाँ निज विकास है, नहीं समाज का विकास यहाँ सबको एक साथ लेकर के चलना है अब कहाँ निज स्वार्थ की बलि चढ़ाकर सबकी सोचे यहाँ सबका विकास, समाज का विकास सोचे यहाँ #collabwithकोराकाग़ज़ #कोराकाग़ज़ #विशेषप्रतियोगिता #kkpc23 #samajh
Krish Vj
लघु कथा :_ ईश्वर और मनुष्य ईश्वरदास जिसे प्यार से उसकी माँ इशु बुलाती थी, एक 8 वर्ष का बालक जिसके सिर पर पिता का साया ना था। माँ मेहनत मजदूरी करके उसका भरण पोषण करती थी। माँ ने उसका दाखिला सरकारी विद्यालय में करा दिया। वहां कुछ बच्चे उसे चिढ़ाते थे कि उसके पिता नहीं है वो बिना पिता का है। मेधावी छात्र ईश्वरदास यह समझ नहीं पाया कि पिता का साया होना जरूरी है ? माँ पिता नहीं बन सकती है? क्या माँ पिता और माँ दोनों का प्रेम और जिम्मेदारी नहीं निभा सकती? सोचता सोचता विद्यालय से घर क्यों निकला रास्ते में उस
ईश्वरदास जिसे प्यार से उसकी माँ इशु बुलाती थी, एक 8 वर्ष का बालक जिसके सिर पर पिता का साया ना था। माँ मेहनत मजदूरी करके उसका भरण पोषण करती थी। माँ ने उसका दाखिला सरकारी विद्यालय में करा दिया। वहां कुछ बच्चे उसे चिढ़ाते थे कि उसके पिता नहीं है वो बिना पिता का है। मेधावी छात्र ईश्वरदास यह समझ नहीं पाया कि पिता का साया होना जरूरी है ? माँ पिता नहीं बन सकती है? क्या माँ पिता और माँ दोनों का प्रेम और जिम्मेदारी नहीं निभा सकती? सोचता सोचता विद्यालय से घर क्यों निकला रास्ते में उस
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नारी उत्पीड़न नारी इस पृथ्वी पर ईश्वर की अनुपम कृति है । ममता वात्सल्य की प्रतिमूर्ति, निर्मल, निश्चल, सरल और कोमल हृदय वाली जीवनदायिनी है। लोगों ने नारी के अस्तित्व को ही नकारा है, पुरुष प्रधान समाज में नारी सिर्फ़ घर गृहस्ती चलाने वाली और उपभोग की वस्तु बन गई है। बात उसके अधिकारों की होती है कहीं लोग नारी के स्वाभिमान के लिए बहुत कुछ बोलते हैं पर उनकी कथनी और करनी में अंतर होता है। सभ्य समाज कहने को तो हम सब पे हो गए हैं हमारा समाज पढ़ा लिखा है, संस्कारवान है पर बात जहाँ नारी की आती है
नारी इस पृथ्वी पर ईश्वर की अनुपम कृति है । ममता वात्सल्य की प्रतिमूर्ति, निर्मल, निश्चल, सरल और कोमल हृदय वाली जीवनदायिनी है। लोगों ने नारी के अस्तित्व को ही नकारा है, पुरुष प्रधान समाज में नारी सिर्फ़ घर गृहस्ती चलाने वाली और उपभोग की वस्तु बन गई है। बात उसके अधिकारों की होती है कहीं लोग नारी के स्वाभिमान के लिए बहुत कुछ बोलते हैं पर उनकी कथनी और करनी में अंतर होता है। सभ्य समाज कहने को तो हम सब पे हो गए हैं हमारा समाज पढ़ा लिखा है, संस्कारवान है पर बात जहाँ नारी की आती है
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महफिल ख्वाबे इश्क की काश यह शाम थम जाए, शाम की लाली मेरा नूर बन जाए। तू वहाँ है, मै यहाँ ए दिलबर, यकायक तू यहाँ प्रत्यक्ष हो जाए। दूरियां बर्दाश्त नहीं हर पल, बिन अंगीठी ही अगन लग जाए। एक हल्की सी है सनसहाट, हर दस्तक मेरी धड़कन बन जाए। जो सामने तेरा चहरा आ गया, अब हकीकत ख्वाब न बन जाए। चुटकी काटकर देखूं ज़रा, यह महफिल ख्वाबे इश्क की थम जाए। #kkpc23 #collabwithकोराकाग़ज़ #कोराकाग़ज़ #विशेषप्रतियोगिता #ख्वाबोंवालाइश्क #गज़ल
Sita Prasad
सामाजिक विकास- विकास की पिपासा ( कृपया अनुशीर्षक में पढ़ें) #kkpc23 #collabwithकोराकाग़ज़ #कोराकाग़ज़ #विशेषप्रतियोगिता #कविता #समाजिकविकास सामाजिक विकास- विकास की पिपासा रोज़ भोर की किरणों के संग, मन उछल पड़ता है, उसी जोश ने हमारे समाज को, आज इस मुकाम पर खड़ा किया।
#kkpc23 #collabwithकोराकाग़ज़ #कोराकाग़ज़ #विशेषप्रतियोगिता #कविता #समाजिकविकास सामाजिक विकास- विकास की पिपासा रोज़ भोर की किरणों के संग, मन उछल पड़ता है, उसी जोश ने हमारे समाज को, आज इस मुकाम पर खड़ा किया।
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महिला उत्पीड़न एक तरफ जहां महिलाएँ अपने कौशल्य से आसमान छू रही हैं दूसरी तरफ आज के इक्कीसवीं सदी में भी महिलाओं का स्थान समाज में हिला- डुला है। कहीं गर्भ मैं ही अंत, कहीं पाठशाला की समस्या। अगर पढ़ी लिखी हो, तो समस्याओं की एक नई कतार खड़ी हो जाती है। मानसिक व शारीरिक शोषण के किस्से रोज़ ही अखबारों में प्रकाशित होते हैं। एक पढ़ी लिखी महिला को कई बार द्वंद्व युद्ध का सामना करना पड़ता है जब नौकरी और परिवार, ससुराल और मैका, समाज व अपनी पसंद, कई सवालों को सुलझाना पड़ता है। मैं यहां एक टिप्पणी करना चाहूंगी कि कभी खुद को किसी का मोहताज न बनाएं, न ही खुद को किसी और से बेहतर, हर एक जब अपने बलबूते पर खुद को और अपने परिवार को संभालेगा, परिवर्तन भी अनिवार्य है। हम से समाज है, समाज से हम नहीं। #kkpc23 #collabwithकोराकाग़ज़ #कोराकाग़ज़ #विशेषप्रतियोगिता #महिला_उत्पीड़न #चिंतन
Sita Prasad
ईश्वर और मनुष्य - कुछ करने की चाह वह परेशान थी, क्या नहीं था घर में उसके, चैन के सिवा। ईश्वर के सामने नित गिड़गिड़ाती, "मेरा क्या होगा, भगवन!" और इसी सोच से मुस्कुराहट भूल चुकी थी।हाँ एक कमी उसके जीवन में यह थी कि, वह ज्यादा पढ़ी लिखी न थी, जिसके कारण घरवाले उसकी राय बिरला ही लेते थे। चक्रधारी यह सब देख रहा था। जान गया यकायक उसकी पीड़ा। उसकी बेटी के मस्तक में एक सुन्दर ख्याल भर दिया। उसकी बेटी वीना सुशील और शांत चित्त थी। एक अध्यापिका होने के कारण वीना , रोज़ नूतन सबक ज़िंदगी के सीखती थी। अब उसे अपनी मां का चहरा पढ़ना भी आ गया था। वीना ने मां से डिग्री का फार्म भरवाया और एक नया पन्ना उसकी मां के जीवन में जुड़ गया। वह, ईश्वर के सामने चंद आंसू आज एक साल बाद बहा चुकी है, वे खुशी के आसू हैं। आखिर नज़रिया सबका बयदल ही गया। #collabwithकोराकाग़ज़ #कोराकाग़ज़ #kkpc23 #विशेषप्रतियोगिता #आत्मसम्मान #ईश्वरऔरमनुष्य #लघुकथा
Dr Upama Singh
ईश्वर और मनुष्य लघु कथा अनुशीर्षक में एक समय की बात है एक बहुत ही गरीब परिवार एक गांव में रहता था। रोज़ जंगल से लकड़ियाँ काट शहर जाकर बेचते थे। उसी से उनका जीवनयापन हो रहा था। घर का मुखिया जो बहुत नेक दिल इंसान था नित्य ईश्वर की पूजा करता था लेकिन कभी उसने ईश्वर से कुछ नहीं मांगाता और मन में ही कहता हे प्रभु! कब मेरे दुःख के बदल हटेंगे। एक दिन वो जब लकड़ी काटने जंगल गया तो उससे रास्ते से गुजरते एक साधु ऋषि मिला उसने बोला की तुम रोज़ लकड़ी काटते हो इससे तुम्हारा गुजारा कैसे चलता है, उसने का मुनिवर क्या करूं गुजारा तो नहीं पाता लेकि
एक समय की बात है एक बहुत ही गरीब परिवार एक गांव में रहता था। रोज़ जंगल से लकड़ियाँ काट शहर जाकर बेचते थे। उसी से उनका जीवनयापन हो रहा था। घर का मुखिया जो बहुत नेक दिल इंसान था नित्य ईश्वर की पूजा करता था लेकिन कभी उसने ईश्वर से कुछ नहीं मांगाता और मन में ही कहता हे प्रभु! कब मेरे दुःख के बदल हटेंगे। एक दिन वो जब लकड़ी काटने जंगल गया तो उससे रास्ते से गुजरते एक साधु ऋषि मिला उसने बोला की तुम रोज़ लकड़ी काटते हो इससे तुम्हारा गुजारा कैसे चलता है, उसने का मुनिवर क्या करूं गुजारा तो नहीं पाता लेकि
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“महिला उत्पीड़न” चिंतन अनुशीर्षक में ईश्वर ने मानव जाति में पुरुष और महिला दोनों को बराबर का दर्जा दिया। लेकिन वक्त के साथ सदियों से इतिहास के पन्नों से ये जगजाहिर हुआ कि कैसे पुरुष अपने पुरषार्थ के दंभ में महिलाओं को उपेक्षित कर उत्पीड़ित करने लगे। कभी कभी एक महिला ही दूसरे महिला का उत्पीड़न करने लगती है। आज घर, मोहल्ला, कॉलोनी, ऑफिस हर जगह हर समय एक महिला का उत्पीड़न होता है। अभी मौजूदा हालात बता रहें हैं कि 2021 में लगभग 46 प्रतिशत महिला उत्पीड़न में इज़ाफा हुआ है जो बहुत ही ज्यादा का चिंता का विषय और समाज के लिए शर्मनाक है। समा
ईश्वर ने मानव जाति में पुरुष और महिला दोनों को बराबर का दर्जा दिया। लेकिन वक्त के साथ सदियों से इतिहास के पन्नों से ये जगजाहिर हुआ कि कैसे पुरुष अपने पुरषार्थ के दंभ में महिलाओं को उपेक्षित कर उत्पीड़ित करने लगे। कभी कभी एक महिला ही दूसरे महिला का उत्पीड़न करने लगती है। आज घर, मोहल्ला, कॉलोनी, ऑफिस हर जगह हर समय एक महिला का उत्पीड़न होता है। अभी मौजूदा हालात बता रहें हैं कि 2021 में लगभग 46 प्रतिशत महिला उत्पीड़न में इज़ाफा हुआ है जो बहुत ही ज्यादा का चिंता का विषय और समाज के लिए शर्मनाक है। समा
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