नारी उत्पीड़न नारी इस पृथ्वी पर ईश्वर की अनुपम कृति है । ममता वात्सल्य की प्रतिमूर्ति, निर्मल, निश्चल, सरल और कोमल हृदय वाली जीवनदायिनी है। लोगों ने नारी के अस्तित्व को ही नकारा है, पुरुष प्रधान समाज में नारी सिर्फ़ घर गृहस्ती चलाने वाली और उपभोग की वस्तु बन गई है। बात उसके अधिकारों की होती है कहीं लोग नारी के स्वाभिमान के लिए बहुत कुछ बोलते हैं पर उनकी कथनी और करनी में अंतर होता है। सभ्य समाज कहने को तो हम सब पे हो गए हैं हमारा समाज पढ़ा लिखा है, संस्कारवान है पर बात जहाँ नारी की आती है वहाँ अधिकांश पुरुष के मन में बस घृणित विचार ही पनपते हैं। विवाह कर के आने वाली स्त्री अपने ही पति से उत्पीड़ित होती है। वह उसका उत्पीड़न इसलिए करता है कि वह पुरुष है वह उसे सिर्फ अपने पैर की धूल मानता है। कुछ लोगों के लिए तो सिर्फ़ वह उनकी वासना की पूर्ति का जरिया है, उसके दर्द, दुःखों उसकी तकलीफ़ से किसी को वास्ता नहीं है। नारी अपनी मर्यादाओं अपने संस्कारों की वजह से अपने ऊपर आने वाली हर तकलीफ़ को सह जाती है। नारी को अपने ऊपर होने वाले हैं हर जुल्मों का हिसाब पुरुष से लेना चाहिए । खुद को कभी कमजोर नहीं मानना चाहिए और बात जहां स्वाभिमान आत्म सम्मान की हो वहां इस समाज को बताना चाहिए कि नारी क्या है? !! अबला नहीं सबला है, है स्वाभिमान का बल तुझमे पिघला दे हिम पर्वत को नारी का यही संबल तुझमे !!