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लघु कथा :_ ईश्वर और मनुष्य ईश्वरदास जिस

लघु कथा :_ ईश्वर और मनुष्य            ईश्वरदास जिसे प्यार से उसकी माँ इशु बुलाती थी, एक 8 वर्ष का बालक जिसके सिर पर पिता का साया ना था। माँ मेहनत मजदूरी करके उसका भरण पोषण करती थी। माँ ने उसका दाखिला सरकारी विद्यालय में करा दिया। वहां कुछ बच्चे उसे चिढ़ाते थे कि उसके पिता नहीं है वो बिना पिता का है। मेधावी छात्र ईश्वरदास यह समझ नहीं पाया कि पिता का साया होना जरूरी है ? माँ पिता नहीं बन सकती है? क्या माँ पिता और माँ दोनों का प्रेम और जिम्मेदारी नहीं निभा सकती? 

          सोचता सोचता विद्यालय से घर क्यों निकला रास्ते में उसे एक विद्वान मिले ईश्वरदास मैं उनको झुककर प्रणाम किया। सहसा ही ईश्वर दास के मन में वो विचार विचरण करने लगे। उससे रहा नहीं गया और उसने अपने मन के प्रश्नों को विद्वान जन के समक्ष रख दिया उनसे पूछा कि बिना पिता के पुत्र का अस्तित्व नहीं है? अगर मेरे पिता की मृत्यु हो गई है तो क्या इसमें मेरा दोस है? भगवान ने मेरे साथ ऐसा क्यों किया ? तब्बू विद्वान बोलते हैं जीवन और मृत्यु कर्म पर आधारित है ईश्वर कभी किसी के साथ गलत नहीं करते। ईश्वर सभी के पिता है, जगत पिता है तुम्हारे भी पिता है। बालक को विधान की बात समझ में आ गई अब वो भगवान को ही अपना पिता मानने लगा। अब उसे विद्यालय में सहपाठियों द्वारा जब भी बोला जाता वो वो बोलता मेरे पिता है और मैं रोज उनसे बात है क्या करता हूं सभी बालक आश्चर्य से पूछते हैं कहां है तुम्हारे पिता तो शिव की मूर्ति की ओर संकेत करते हुए बोलता है यह है मेरे पिता और और वहां बने शिवलिंग को अपने गले से लगा लेता है। 

          ईश्वर सदैव हमारे साथ होते हैं, वह कभी हमें अकेला नहीं छोड़ते हैं, हमारी माता है, पिता है, भ्राता है, सखा है। हमें सदैव उनके बताओ यह चिन्हों का चलना चाहिए। सदैव सत्य का साथ देना चाहिए। सुकर्म की राह पर चलना चाहिए। ईश्वर व मनुष्य में पिता पुत्र सा गहरा संबंध है, जो सदैव हमें पिता की तरह सन्मार्ग पर ले जाता है।

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लघु कथा :_ ईश्वर और मनुष्य            ईश्वरदास जिसे प्यार से उसकी माँ इशु बुलाती थी, एक 8 वर्ष का बालक जिसके सिर पर पिता का साया ना था। माँ मेहनत मजदूरी करके उसका भरण पोषण करती थी। माँ ने उसका दाखिला सरकारी विद्यालय में करा दिया। वहां कुछ बच्चे उसे चिढ़ाते थे कि उसके पिता नहीं है वो बिना पिता का है। मेधावी छात्र ईश्वरदास यह समझ नहीं पाया कि पिता का साया होना जरूरी है ? माँ पिता नहीं बन सकती है? क्या माँ पिता और माँ दोनों का प्रेम और जिम्मेदारी नहीं निभा सकती? 

          सोचता सोचता विद्यालय से घर क्यों निकला रास्ते में उसे एक विद्वान मिले ईश्वरदास मैं उनको झुककर प्रणाम किया। सहसा ही ईश्वर दास के मन में वो विचार विचरण करने लगे। उससे रहा नहीं गया और उसने अपने मन के प्रश्नों को विद्वान जन के समक्ष रख दिया उनसे पूछा कि बिना पिता के पुत्र का अस्तित्व नहीं है? अगर मेरे पिता की मृत्यु हो गई है तो क्या इसमें मेरा दोस है? भगवान ने मेरे साथ ऐसा क्यों किया ? तब्बू विद्वान बोलते हैं जीवन और मृत्यु कर्म पर आधारित है ईश्वर कभी किसी के साथ गलत नहीं करते। ईश्वर सभी के पिता है, जगत पिता है तुम्हारे भी पिता है। बालक को विधान की बात समझ में आ गई अब वो भगवान को ही अपना पिता मानने लगा। अब उसे विद्यालय में सहपाठियों द्वारा जब भी बोला जाता वो वो बोलता मेरे पिता है और मैं रोज उनसे बात है क्या करता हूं सभी बालक आश्चर्य से पूछते हैं कहां है तुम्हारे पिता तो शिव की मूर्ति की ओर संकेत करते हुए बोलता है यह है मेरे पिता और और वहां बने शिवलिंग को अपने गले से लगा लेता है। 

          ईश्वर सदैव हमारे साथ होते हैं, वह कभी हमें अकेला नहीं छोड़ते हैं, हमारी माता है, पिता है, भ्राता है, सखा है। हमें सदैव उनके बताओ यह चिन्हों का चलना चाहिए। सदैव सत्य का साथ देना चाहिए। सुकर्म की राह पर चलना चाहिए। ईश्वर व मनुष्य में पिता पुत्र सा गहरा संबंध है, जो सदैव हमें पिता की तरह सन्मार्ग पर ले जाता है।

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Krish Vj

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