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Sita Prasad

ईश्वर और मनुष्य - कुछ करने की चाह 
वह परेशान थी, क्या नहीं था घर में उसके, चैन के सिवा। ईश्वर के सामने नित गिड़गिड़ाती, "मेरा क्या होगा, भगवन!" और इसी सोच से मुस्कुराहट भूल चुकी थी।हाँ एक कमी उसके जीवन में यह थी कि, वह ज्यादा पढ़ी लिखी न थी, जिसके कारण घरवाले उसकी राय बिरला ही लेते थे। चक्रधारी यह सब देख रहा था। जान गया यकायक उसकी पीड़ा। उसकी बेटी के मस्तक में एक सुन्दर ख्याल भर दिया। उसकी बेटी वीना सुशील और शांत चित्त थी। एक अध्यापिका होने के कारण वीना , रोज़ नूतन सबक ज़िंदगी के सीखती थी। अब उसे अपनी मां का चहरा पढ़ना भी आ गया था। वीना ने मां से डिग्री का फार्म भरवाया और एक नया पन्ना उसकी मां के जीवन में जुड़ गया। वह, ईश्वर के सामने चंद आंसू आज एक साल बाद बहा चुकी है, वे खुशी के आसू हैं। आखिर नज़रिया सबका बयदल ही गया।


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Divyanshu Pathak

मैं उस दिन सुबह सुबह पैदल ही माता के दर्शन करने के लिए चल दिया।गाँव के बाहर एक मन्दिर है वहाँ बैठा था कि जीजू का कॉल आया आजाओ यार कैलादेवी के दर्शन करने चलेंगे 9 बजे से।मैंने कहा ठीक है आता हूँ।सोचा कि घर बाइक लेने क्या जाऊँ यहीं से किसी के साथ बैठ जाता हूँ।कई लोगों ने बाइक रोकी पूछा भी कैसे घूम रहे हो कहीं जा रहे हो क्या चलो छोड़ दें।मैने सभी से मना कर दिया। मेरा मूड था कि 7 km दौड़ कर जाऊँ और सैंपऊ से रूपवास की बस पकड़ लूँगा।मैं कुछ दूर ही दौड़ पाया था कि तभी एक स्कूटी सवार लड़की सामने आती दिखाई द

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1. लघुकथा:- ईश्वर और मनुष्य
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ईश्वर हमेशा हम सभी के साथ रहते हैं।वे किसी न किसी माध्यम से हमारी सहायता करते हैं।लड़कियाँ आसानी से लिफ़्ट नहीं देतीं लेकिन उस दिन मैंने जैसे ही लिफ़्ट माँगी उन्होंने तुरन्त अपने पीछे बिठा लिया। शेष - कैप्शन में पढ़ें ----- 
मैं उस दिन सुबह सुबह पैदल ही माता के दर्शन करने के लिए चल दिया।गाँव के बाहर एक मन्दिर है वहाँ बैठा था कि जीजू का कॉल आया आजाओ यार कैलादेवी के दर्शन करने चलेंगे 9 बजे से।मैंने कहा ठीक है आता हूँ।सोचा कि घर बाइक लेने क्या जाऊँ यहीं से किसी के साथ बैठ जाता हूँ।कई लोगों ने बाइक रोकी पूछा भी कैसे घूम रहे हो कहीं जा रहे हो क्या चलो छोड़ दें।मैने सभी से मना कर दिया। मेरा मूड था कि 7 km दौड़ कर जाऊँ और सैंपऊ से रूपवास की बस पकड़ लूँगा।मैं कुछ दूर ही दौड़ पाया था कि तभी एक स्कूटी सवार लड़की सामने आती दिखाई द

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