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Anju Yadav
जिंदगी में एक समय ऐसा भी आया जब किसी ने साथ नही निभाया पुकारा भी हमने पर कोई पास मदद के लिए भी न आया भूखे सो जाते थे पर उफ तक नहीं करते क्योंकि दुनिया प्यार से देने वाली चीज नहीं बल्कि फेंके हुवे कोई लावारिस समझते हम भी मुस्कुराते हुए खुद को तसल्ली देते ये जो दिन आज है आया वो दुबारा कभी ना होगा आज इनका ये दिन अच्छा है कल यही दिन हमारा भी मजबूत होगा। #yqdidi #yqbaba #जिंदगी_का_सच #फटकार #मजबूरीयाँ
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read moredayal singh
जब कभी भी हमें अपने बचपन की याद आती है तो कुछ बातों को याद करके हम हर्षित होते हैं, तो कुछ बातों को लेकर अश्रुधारा बहने लगती है। हम यादों के समंदर में डूबकर भावनाओं के अतिरेक में खो जाते हैं। भाव-विभोर व भावुक होने पर कई बार हमारा मन भीग-सा जाता है। हर किसी को अपना बचपन याद आता है। हम सबने अपने बचपन को जीया है। शायद ही कोई होगा, जिसे अपना बचपन याद न आता हो। बचपन की अपनी मधुर यादों में माता-पिता, भाई-बहन, यार-दोस्त, स्कूल के दिन, आम के पेड़ पर चढ़कर 'चोरी से' आम खाना, खेत से गन्ना उखाड़कर चूसना और खेत मालिक के आने पर 'नौ दो ग्यारह' हो जाना हर किसी को याद है। जिसने 'चोरी से' आम नहीं खाए व गन्ना नहीं चूसा, उसने क्या खाक अपने बचपन को 'जीया' है! चोरी और चिरौरी तथा पकड़े जाने पर साफ झूठ बोलना बचपन की यादों में शुमार है। बचपन से पचपन तक यादों का अनोखा संसार है। वो सपने सुहाने ... छुटपन में धूल-गारे में खेलना, मिट्टी मुंह पर लगाना, मिट्टी खाना किसे नहीं याद है? और किसे यह याद नहीं है कि इसके बाद मां की प्यारभरी डांट-फटकार व रुंआसे होने पर मां का प्यारभरा स्पर्श! इन शैतानीभरी बातों से लबरेज है सारा बचपन। तोतली व भोली भाषा बच्चों की तोतली व भोली भाषा सबको लुभाती है। बड़े भी इसकी ही अपेक्षा करते हैं। रेलगाड़ी को 'लेलगाली' व गाड़ी को 'दाड़ी' या 'दाली' सुनकर किसका मन चहक नहीं उठता है? बड़े भी बच्चे के सुर में सुर मिलाकर तोतली भाषा में बात करके अपना मन बहलाते हैं। जो नटखट नहीं किया, वो बचपन क्या जीया? जिस किसी ने भी अपने बचपन में शरारत या नटखट नहीं की, उसने भी अपने बचपन को क्या खाक जीया होगा, क्योंकि 'बचपन का दूसरा नाम' नटखट ही होता है। शोर व उधम मचाते, चिल्लाते बच्चे सबको लुभाते हैं तथा हम सभी को भी अपने बचपन की सहसा याद हो आती है। वो पापा का साइकल पर घुमाना... हम में अधिकतर अपने बचपन में पापा द्वारा साइकल पर घुमाया जाना कभी नहीं भूल सकते। जैसे ही पापा ऑफिस जाने के लिए निकलते हैं, तब हम भी पापा के साथ जाने को मचल उठते हैं, तब पापा भी लाड़ में आकर अपने लाड़ले-लाड़लियों को साइकल पर घुमा देते थे। आज बाइक व कार के जमाने में वो 'साइकल वाली' यादों का झरोखा अब कहां? साइकलिंग थोड़े बड़े होने पर बच्चे साइकल सीखने का प्रयास अपने ही हमउम्र के दोस्तों के साथ करते रहे हैं। कैरियर को 2-3 बच्चे पकड़ते थे व सीट पर बैठा सवार (बच्चा) हैंडिल को अच्छे से पकड़े रहने के साथ साइकल सीखने का प्रयास करता था तथा साथ ही साथ वह कहता जाता था कि कैरियर को छोड़ना नहीं, नहीं तो मैं गिर जाऊंगा/जाऊंगी। लेकिन कैरियर पकड़े रखने वाले साथीगण साइकल की गति थोड़ी ज्यादा होने पर उसे छोड़ देते थे। इस प्रकार किशोरावस्था का लड़का या लड़की थोड़ा गिरते-पड़ते व धूल झाड़कर उठ खड़े होते साइकल चलाना सीख जाते थे। साइकल चलाने से एक्सरसाइज भी होती थी। हाँ, फिर आना तुम मेरे प्रिय बचपन! मुझे तुम्हारा इंतजार रहेगा ताउम्र!! राह तक रहा हूँ मैं!!!जब कभी भी हमें अपने बचपन की याद आती है तो कुछ बातों को याद करके हम हर्षित होते हैं, तो कुछ बातों को लेकर अश्रुधारा बहने लगती है। हम यादों के समंदर में डूबकर भावनाओं के अतिरेक में खो जाते हैं। भाव-विभोर व भावुक होने पर कई बार हमारा मन भीग-सा जाता है। हर किसी को अपना बचपन याद आता है। हम सबने अपने बचपन को जीया है। शायद ही कोई होगा, जिसे अपना बचपन याद न आता हो। बचपन की अपनी मधुर यादों में माता-पिता, भाई-बहन, यार-दोस्त, स्कूल के दिन, आम के पेड़ पर चढ़कर 'चोरी से' आम खाना, खेत से गन्ना उखाड़कर चूसना और खेत मालिक के आने पर 'नौ दो ग्यारह' हो जाना हर किसी को याद है। जिसने 'चोरी से' आम नहीं खाए व गन्ना नहीं चूसा, उसने क्या खाक अपने बचपन को 'जीया' है! चोरी और चिरौरी तथा पकड़े जाने पर साफ झूठ बोलना बचपन की यादों में शुमार है। बचपन से पचपन तक यादों का अनोखा संसार है। वो सपने सुहाने ... छुटपन में धूल-गारे में खेलना, मिट्टी मुंह पर लगाना, मिट्टी खाना किसे नहीं याद है? और किसे यह याद नहीं है कि इसके बाद मां की प्यारभरी डांट-फटकार व रुंआसे होने पर मां का प्यारभरा स्पर्श! इन शैतानीभरी बातों से लबरेज है सारा बचपन। तोतली व भोली भाषा बच्चों की तोतली व भोली भाषा सबको लुभाती है। बड़े भी इसकी ही अपेक्षा करते हैं। रेलगाड़ी को 'लेलगाली' व गाड़ी को 'दाड़ी' या 'दाली' सुनकर किसका मन चहक नहीं उठता है? बड़े भी बच्चे के सुर में सुर मिलाकर तोतली भाषा में बात करके अपना मन बहलाते हैं। जो नटखट नहीं किया, वो बचपन क्या जीया? जिस किसी ने भी अपने बचपन में शरारत या नटखट नहीं की, उसने भी अपने बचपन को क्या खाक जीया होगा, क्योंकि 'बचपन का दूसरा नाम' नटखट ही होता है। शोर व उधम मचाते, चिल्लाते बच्चे सबको लुभाते हैं तथा हम सभी को भी अपने बचपन की सहसा याद हो आती है। वो पापा का साइकल पर घुमाना... हम में अधिकतर अपने बचपन में पापा द्वारा साइकल पर घुमाया जाना कभी नहीं भूल सकते। जैसे ही पापा ऑफिस जाने के लिए निकलते हैं, तब हम भी पापा के साथ जाने को मचल उठते हैं, तब पापा भी लाड़ में आकर अपने लाड़ले-लाड़लियों को साइकल पर घुमा देते थे। आज बाइक व कार के जमाने में वो 'साइकल वाली' यादों का झरोखा अब कहां? साइकलिंग थोड़े बड़े होने पर बच्चे साइकल सीखने का प्रयास अपने ही हमउम्र के दोस्तों के साथ करते रहे हैं। कैरियर को 2-3 बच्चे पकड़ते थे व सीट पर बैठा सवार (बच्चा) हैंडिल को अच्छे से पकड़े रहने के साथ साइकल सीखने का प्रयास करता था तथा साथ ही साथ वह कहता जाता था कि कैरियर को छोड़ना नहीं, नहीं तो मैं गिर जाऊंगा/जाऊंगी। लेकिन कैरियर पकड़े रखने वाले साथीगण साइकल की गति थोड़ी ज्यादा होने पर उसे छोड़ देते थे। इस प्रकार किशोरावस्था का लड़का या लड़की थोड़ा गिरते-पड़ते व धूल झाड़कर उठ खड़े होते साइकल चलाना सीख जाते थे। साइकल चलाने से एक्सरसाइज भी होती थी। हाँ, फिर आना तुम मेरे प्रिय बचपन! मुझे तुम्हारा इंतजार रहेगा ताउम्र!! राह तक रहा हूँ मैं!!! bachpan ke din
bachpan ke din
read moreAnshuman yadav
जो नन्हे बच्चे को सही-गलत का अन्तर बतलाए... जो कोमल मन को प्यार से दुलराए... जो हर चीटी को पहाड़ चढ़ना सिखलाए... आसमान मे उडा़न भरने को, जो सीढ़ियां लगाए... वो गुरु है जो ज्वार-भाटों पर भी नाव चलाना सिखलाए... मां के प्यार को सीमित करता उसका दुलार... पिता की मार से भी ज्यादा गहरी उसकी फटकार... वो गुरु है जो प्यार और फटकार मे सामंजस्य बैठाए... कई युद्धों मे देवता जीते,कईयों मे असुर वो गुरु ही है जो शुक्राचार्य बन जब जिस तरफ आए... जीत उसी की हो जाए... जो नन्हे बच्चे को सही गलत का अन्तर बतलाए... #teachersday #guru #5sep
Arpit tejash
पापा के प्यार ने ,पापा की मार ने हमें बहुत सिखाया पापा की फटकार ने, हमेें आदर करना सिखाया पापा के शिष्टाचार ने। माना थोड़ी पीड़ा होती है पापा की मार से। जिंदगी बिगड़ जाती है मातु-पिता के दुलार से। सब कहते हैं मातु-पिता अच्छे होते दुलार करने वाले, मैं कहता हूँ जिंदगी संवर जाती है बापू के फटकार से। डरता नही हूँ तीर तलवार से डर लगता है तो बस पापा के फटकार से। #NojotoQuote पापा की फटकार प्यार व मार हमारे जीवन के लिए औषधि है।
पापा की फटकार प्यार व मार हमारे जीवन के लिए औषधि है।
read moreRV Chittrangad Mishra
बुढ़ापे में जो हो जाए उसे हम प्यार कहते हैं, जवानी की मुहब्बत को फकत व्यापार कहते हैं । जो सस्ती है, मिले हर ओर, उसका नाम महंगाई न महँगाई मिटा पाए, उसे सरकार कहते हैं । जो पहुंचे बाद चिट्ठी' के उसे हम तार कहते हैं, जौ मारे डाक्टर को हम उसे बीमार कहते हैं । जो धक्का खाक चलती है उसे हम कार मानेंगे, न धक्के से भी जो चलती उसे सरकार कहते हैं । कमर में जो लटकती है, उसे सलवार कहते हैं, जौ आपस में खटकती है, उसे तलवार कहते हैं । उजाले में मटकती है, उसे हम तारिका कहते, अँधेरे में भटकती है उसे सरकार कहते हैं । मिले जो रोज बीवी से उसे फटकार कहते हैं जिसे जोरू नहीं डांटे उसे धिक्कार कहते हैं । मगर फटकार से धिक्कार से भी जो नहीं समझे उसे मक्कार कहते हैं उसे सरकार कहते हैं । सुबह उठते ही बिस्तर से ' कहाँ अखबार कहते हैं शकल पर तीन बजते 'चाय की दरकार' कहते हैं । वे कहती हैं ' चलो बाजार ' हंसकर शाम के टाइम, तो हम नजरें झुका कर ' मर गए सरकार ' कहते हैं #NojotoQuote sarkar
sarkar
read moreParul Sharma
|| माँ || वो दूर गया है परसों से माँ सोई नहीं है बरसों से माँ की आँखों से ही तो घर-घर में उजाला है। ए वक्त,ए हवा,ए फिज़ा जरा संभल मुझे कम न समझ हर वक्त मेरे साथ मेरी माँ का साया है। मुझे खौफ नहींअब किसी बदी का मेरे माथे पर माँ ने काला टीका जो लगाया है।
|| माँ || वो दूर गया है परसों से माँ सोई नहीं है बरसों से माँ की आँखों से ही तो घर-घर में उजाला है। ए वक्त,ए हवा,ए फिज़ा जरा संभल मुझे कम न समझ हर वक्त मेरे साथ मेरी माँ का साया है। मुझे खौफ नहींअब किसी बदी का मेरे माथे पर माँ ने काला टीका जो लगाया है।
read moreAkanksha Bhatnagar
Title- "बाबा" तुम्हारी हर तकलीफ को बिन कहे वो समझ जाते हैं तुम्हारी हर हसी से पहले ही ये चेहरा देख वो उस ख़ुशी को पहचानते हैं यूँ तो हर कोई तुम्हारी जरुरत पर होने का वादा करता है लेकिन.. वो बाबा ही हैं तुम्हारे , जो अपनी जरूरतों को मार, तम्हारे ज़िद भरे सपनों को भी पंख लगाते हैं / दोस्तों की गाली भी तुमको बेहद भाती है
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