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Nidhi Pant
मां के लिए कोई खास दिन होता है क्या? मेरी समझ से परे है ये बात। हर दिन ही मदर्स डे है, अगर मां का सिर पर हो हाथ। मां को खास मानना है आज,चलो कुछ तस्वीरें हो जाएं।बाकी दिन मां को भूल फ़िज़ूल नातों में उलझे रहें तो फिर क्या है बात। मां जबसे तू मुझे इस दुनिया में लेकर आई ,तब से ही तू अपरिभाषित है, क्या लिखूं तेरे लिए मां तू हर दिन ही खास है। #मां #अपरिभाषित
Anamika Nautiyal
परिभाषाएँ, केवल वैज्ञानिक सिद्धांतों तक ही सीमित रहती हैं मैंने नहीं देखी है माँ के प्रेम और पिता की छत्रछाया की परिभाषा हाँ प्रेम तो अपरिभाषित है ना। No one can define love but Sandeep Maheshwari can 😂 #अनाम #अनाम_ख़्याल #रात्रिख़्याल
No one can define love but Sandeep Maheshwari can 😂 #अनाम #अनाम_ख़्याल #रात्रिख़्याल
read moreNavdeep Rawat पार्थ
प्रेम शक्तिशाली हो जाता है जब शब्द जुबां से नहीं आंखों से निकलते हैं.. ©Navdeep Rawat पार्थ #प्रेम #अपरिभाषित
p.k.860
त्याग ,प्रेम ,समर्पण ...सब उसकी छाया है उसके बिना कोई कहां सुख पाया है माँ, बहन, पत्नी,बेटी बन कर ...उसने प्यार लुटाया है वही है जिसने तुम्हें इस जहां में लाया है वो राधा है ,वही है काली वो गंगा सी ,ही भवानी वो जीवन है और काल भी वो आदिशक्ति ,महाकाल भी वही है मृत्यु ,वो रक्त की प्यासी वो ममतामय वो सबकी दासी वो प्रेम की मूरत, वो करुणामय अपरिभाषित स्त्री..... #अपरिभाषित #स्त्री#काली
pooja roy
ज्ञानियों का गुंथन लिखूं या गाय का ग्वाला लिखूं! कंस के लिए विष लिखूं या भक्तों का अमृत प्याला लिखूं। रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं! पृथ्वी का मानव लिखूं या निर्लिप्त योगेश्वर लिखूं। चेतना चिंतक लिखूं या संतृप्त देवेश्वर लिखूं। रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं! जेल में जन्मा लिखूं या गोकुल का पलना लिखूं। देवकी की गोदी लिखूं या यशोदा का ललना लिखूं।
ज्ञानियों का गुंथन लिखूं या गाय का ग्वाला लिखूं! कंस के लिए विष लिखूं या भक्तों का अमृत प्याला लिखूं। रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं! पृथ्वी का मानव लिखूं या निर्लिप्त योगेश्वर लिखूं। चेतना चिंतक लिखूं या संतृप्त देवेश्वर लिखूं। रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं! जेल में जन्मा लिखूं या गोकुल का पलना लिखूं। देवकी की गोदी लिखूं या यशोदा का ललना लिखूं।
read morepooja roy
ज्ञानियों का गुंथन लिखूं या गाय का ग्वाला लिखूं! कंस के लिए विष लिखूं या भक्तों का अमृत प्याला लिखूं। रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं! पृथ्वी का मानव लिखूं या निर्लिप्त योगेश्वर लिखूं। चेतना चिंतक लिखूं या संतृप्त देवेश्वर लिखूं। रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं! जेल में जन्मा लिखूं या गोकुल का पलना लिखूं। देवकी की गोदी लिखूं या यशोदा का ललना लिखूं।
ज्ञानियों का गुंथन लिखूं या गाय का ग्वाला लिखूं! कंस के लिए विष लिखूं या भक्तों का अमृत प्याला लिखूं। रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं! पृथ्वी का मानव लिखूं या निर्लिप्त योगेश्वर लिखूं। चेतना चिंतक लिखूं या संतृप्त देवेश्वर लिखूं। रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं! जेल में जन्मा लिखूं या गोकुल का पलना लिखूं। देवकी की गोदी लिखूं या यशोदा का ललना लिखूं।
read morepoornima mishra
कृष्ण तुम पर क्या लिखूं, कितना लिखूं। रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं। प्रेम का सागर लिखूं, या चेतना का चिंतन लिखूं। प्रीति की गागर लिखूं या आत्मा का मंथन लिखूं। रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं। तुम्हारी राधा कृष्णा
कृष्णा
read moreराहुल राज मौर्या
पृथ्वी का मानव लिखूं या निर्लिप्त योगेश्वर लिखूं। चेतना चिंतक लिखूं या संतृप्त देवेश्वर लिखूं। रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना भी लिखूं! कृष्ण तुम पर क्या लिखूं! कितना लिखूं! रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं! #लार्ड कृष्णा #nojoto
Vinod upadhyay
*प्रेम का सागर लिखूं!* *या चेतना का चिंतन लिखूं!* *प्रीति की गागर लिखूं,* *या आत्मा का मंथन लिखूं!* *रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित,* *चाहे जितना लिखूं....*
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