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Amit Singhal "Aseemit"
होली पर है रिवाज़ खाने और खिलाने का गुझिया, यह अवसर है शिकवे शिकायतें भुलाने का बढ़िया। गुझिया खाकर दिल में थोड़ी मिठास भर भी जाए, दिल से कड़वाहट मिटाने को यह अवसर ही आए। ©Amit Singhal "Aseemit" #गुझिया
Mamta Singh
hirpara amit
जैसे सूरज को रंग चढ़ा है पिली रौशनी का, समंदर को रंग चढ़ा है नीला पानी सा वैसे मुजे प्यार का रंग चढ़ा है ”नूतन” सा। दिल खोल कर...रंगों में डूब कर आओ collab करें😀 नूतन पर्सनली नहीं लीजियेगा, ये सिर्फ अल्फ़ाज़ है। #होली #मस्ती #धमाल #गुझिया #रँग
TOLCNR_Keep_Smile
होली की शुभकामनायें गुझिया की मिठास, गुलाल का रिवाज़, मनाये सभी होली, अपनो के साथ। #NojotoQuote #गुझिया की #मिठास, #गुलाल का #रिवाज़, #मनाये सभी #होली, #अपनो के #साथ। #nojotohindi #tolcnrkeepsmile 😊
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read moreRajesh Raana
सरसों फूली पिली पिली , गेहूं की बालियां सपनीली, पेंच दे रही ज़िन्दगी लेकिन , उड़ी अपनी पतंग रंगीली । (१) आओ मिलकर ख़ाब गिनाए, किसके ज्यादा किसके कम । उम्मीदों की डोरी से बंधकर, उड़े अपनी पतंग हरदम । (२) हैं ज़िन्दगी गर पथरीली , तो पत्थरचट्टा क्यों न उगाये । सबकी ख्वाहिश है फूलों की , हम तुम काँटो को रिझाये । (३) है धुंआ अगर ज़िन्दगी तो , इसको छल्लों में उड़ाए । है ज़िन्दगी अगर पतंग तो , सातवे आसमान पर उड़ाए । (४) जीवन सुखदुख भरी टोकरी , अपनी पसंद की खुशियां छाँटे । जिस तक न पहुँची है अब तक , उस तक त्योहारों के पल बांटे , आओ तिलगुड़ लड्ड़ू , गुझिया बांटे ।। (५) (आप सब स्नेहीजन को मकर संक्रांति , पोंगल , बिहू , लोहड़ी पर्व की हार्दीक हार्दीक शुभ कामनाएं ) मकर संक्रांति #सरसों फूली पिली पिली , #गेहूं की #बालियां #सपनीली, #पेंच दे रही #ज़िन्दगी लेकिन , #उड़ी अपनी #पतंग #रंगीली । (१) आओ मिलकर #ख़ाब गिनाए, किसके ज्यादा किसके कम ।
Manjari Shukla
पुछल्लू और मटुरिया की होली मटुरिया चुहिया गुस्से से, अपने बिल के एक कोने से दूसरे कोने में पैर पटकते हुए घूम रही थी और बड़बड़ा रही थी-"मेरा तो काम करते - करते भुर्ता बना जा रहा हैI" पुछल्लू चूहा बेचारा दुम दबाए बैठा हुआ थाI मटुरिया अपनी महीन आवाज़ में फ़िर पिनपिनाई-"सुबह से तीन बार दाल बाटी गर्म कर चुकी हूँI चुपचाप खाते क्यों नहीं?"
पुछल्लू और मटुरिया की होली मटुरिया चुहिया गुस्से से, अपने बिल के एक कोने से दूसरे कोने में पैर पटकते हुए घूम रही थी और बड़बड़ा रही थी-"मेरा तो काम करते - करते भुर्ता बना जा रहा हैI" पुछल्लू चूहा बेचारा दुम दबाए बैठा हुआ थाI मटुरिया अपनी महीन आवाज़ में फ़िर पिनपिनाई-"सुबह से तीन बार दाल बाटी गर्म कर चुकी हूँI चुपचाप खाते क्यों नहीं?"
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