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शिवानन्द
सरेआम होती है हरबार उसके चुपके से आने की कोशिशें 👇 वह जब भी पायलों की झनकार काबू करती हैं। तो बेकाबू होकर कानों की बालियां बोल पड़ती है। ~~शिवानन्द बेकार हुई हरबार उसके चुपके से आने की कोशिशें 👇 वह जब भी #पायलों की झनकार काबू करती हैं। तो बेकाबू होकर कानों की #बालियां बोल पड़ती है। #इश्क़ #मोहब्बत #qoutes #writer
अंजान
To be with you उसके कंगन और चूड़ियाँ बोलने लगी! कानों में लटकी वो बालियां बोलने लगी!! बस खामोशी थी दरमियां वैसे ऎ खुदा! बिखरी खुश्बू प्यारी तितलियाँ बोलने लगी!! #बालियां #nojoto #करवाचौथ Pratiksha Rajavat RAVEENA RAJ Rashmi Arya Ruchi Mishra✍️ (Titli 🦋🌹) Shikha Sharma
Qalb
लाया हूँ तेरे लिए चांदी की बालियां... अपने कानों में डाल के इसे सोना बनाइये... #बालियां
Raj Singh
उन्हें... मेरी यादें आज भी सताती होगी, जब वो अपने आप को आइने के सामने संवारती होगी, यूं तो कान में बालियां पहन ही लेती होगी जैसे-तैसे, पर उनको आज भी मेरी पहनाई हुई बालियां तो जरूर याद आती होगी! उन्हें... मेरी यादें आज भी सताती होगी, जब वो अपने आप को आइने के सामने संवारती होगी, यूं तो कान में बालियां पहन ही लेती होगी जैसे-तैसे, पर उनको आज भी मेरी पहनाई हुई बालियां तो जरूर याद आती होगी! #Butterscotch #love #missyou
उन्हें... मेरी यादें आज भी सताती होगी, जब वो अपने आप को आइने के सामने संवारती होगी, यूं तो कान में बालियां पहन ही लेती होगी जैसे-तैसे, पर उनको आज भी मेरी पहनाई हुई बालियां तो जरूर याद आती होगी! #butterscotch #Love #missyou
read moreअरफ़ान भोपाली
लाया हूँ आपके लिए चाँदी की बालियां कानो में इनको डाल कर सोना बनाईये #चाँदी #बालियां #सोना #इश्क़ #मुहब्बत #हिंदी #शायरी #hindipoetry #poetry #nojoto #nojotopoetry #nojotohindi #hindiwriters #writers #love
#चाँदी #बालियां #सोना #इश्क़ #मुहब्बत #हिंदी #शायरी #hindipoetry #Poetry nojoto #nojotopoetry #nojotohindi #hindiwriters #writers #Love
read morePrAshant Kumar
मुझे हर अंदाज़ में उसके खूबसूरती बस दिखती है ! काजल ही तो लगाती है और कुछ भी नहीं करती वो ! ! हर एक रात बयां करती है मुझे हाल सारे दिन का ! नींद से बोझिल रहती है मगर फोन नहीं रखती वो ! ! ज़माने से थोड़ी जुदा है , उसके साथ नहीं चलती वो ! कभी कभी इतना हंसती है , खुद से नहीं संभलती वो ! बचा के थोडे पैसे , मैंने दी थी उसे कान की बालियां ! अब लिबास चाहे जो पहने , बालियां नहीं बदलती वो ! ! aryan_0625 मुझे हर अंदाज़ में उसके खूबसूरती बस दिखती है ! काजल ही तो लगाती है और कुछ भी नहीं करती वो ! ! हर एक रात बयां करती है मुझे हाल सारे दिन का ! नींद से बोझिल रहती है मगर फोन नहीं रखती वो ! ! ज़माने से थोड़ी जुदा है , उसके साथ नहीं चलती वो ! कभी कभी इतना हंसती है , खुद से नहीं संभलती वो ! बचा के थोडे पैसे , मैंने दी थी उसे कान की बालियां ! अब लिबास चाहे जो पहने , बालियां नहीं बदलती वो ! !
aryan_0625 मुझे हर अंदाज़ में उसके खूबसूरती बस दिखती है ! काजल ही तो लगाती है और कुछ भी नहीं करती वो ! ! हर एक रात बयां करती है मुझे हाल सारे दिन का ! नींद से बोझिल रहती है मगर फोन नहीं रखती वो ! ! ज़माने से थोड़ी जुदा है , उसके साथ नहीं चलती वो ! कभी कभी इतना हंसती है , खुद से नहीं संभलती वो ! बचा के थोडे पैसे , मैंने दी थी उसे कान की बालियां ! अब लिबास चाहे जो पहने , बालियां नहीं बदलती वो ! !
read moreRajesh Raana
सरसों फूली पिली पिली , गेहूं की बालियां सपनीली, पेंच दे रही ज़िन्दगी लेकिन , उड़ी अपनी पतंग रंगीली । (१) आओ मिलकर ख़ाब गिनाए, किसके ज्यादा किसके कम । उम्मीदों की डोरी से बंधकर, उड़े अपनी पतंग हरदम । (२) हैं ज़िन्दगी गर पथरीली , तो पत्थरचट्टा क्यों न उगाये । सबकी ख्वाहिश है फूलों की , हम तुम काँटो को रिझाये । (३) है धुंआ अगर ज़िन्दगी तो , इसको छल्लों में उड़ाए । है ज़िन्दगी अगर पतंग तो , सातवे आसमान पर उड़ाए । (४) जीवन सुखदुख भरी टोकरी , अपनी पसंद की खुशियां छाँटे । जिस तक न पहुँची है अब तक , उस तक त्योहारों के पल बांटे , आओ तिलगुड़ लड्ड़ू , गुझिया बांटे ।। (५) (आप सब स्नेहीजन को मकर संक्रांति , पोंगल , बिहू , लोहड़ी पर्व की हार्दीक हार्दीक शुभ कामनाएं ) मकर संक्रांति #सरसों फूली पिली पिली , #गेहूं की #बालियां #सपनीली, #पेंच दे रही #ज़िन्दगी लेकिन , #उड़ी अपनी #पतंग #रंगीली । (१) आओ मिलकर #ख़ाब गिनाए, किसके ज्यादा किसके कम ।
रजनीश "स्वच्छंद"
मेरे खेतों की क्यारियां।। मेरे गांव का अहरा, घर का ठिकाना बतातीं आलियाँ। क्यारियों में बहता कलकल पानी, लहलहाती गेंहूँ की बालियां। अपनेपन का संचार लहू में,हर चेहरा सबको पहचानता। कोई कहाँ क्या करता है,हर की व्यथा हर कोई जानता। रब्बी की फसल का मौसम,खेतों में लगता अलाव होरहा। एक मंडली, मुस्काते चेहरों की,बच्चा भी बैठ बाट है जोह रहा। रमुआ अपने गमछे में नमक बांधे आया,संजइया भुनी मिर्ची संग ले आया है। क्या इटालियन, मेक्सिकन क्या,सबके स्वादों का रंग ले आया है। हर मुख, आग की गर्मी में,सूरज की लाली को समेटे बैठा। बातें घर की, सारे संसार की,कोई पैर पसारे तो कोई लेटे बैठा। कुछ समय पहले ही,कटी थी फसल धान की। खरीफ ने कहा था अलविदा,शुरू कथा रबी के बिहान की। हर खलिहान फसलों का ढेर,पिंजों की भरमार लगी। चूडों के मिल भी लगे थे,बोरियों की लंबी कतार लगी। शहर से संवाद है आया,संक्रांति के चूड़े भिजवा दो। घर बैठी दादी भी बोली,काली वाली जुड़े भिजवा दो। बूढ़ा बाप कभी ना नही कहता,ले सर बोरी स्टेशन को चला है। कितना अंतर है गांव शहर में,कहाँ बेटे से बाप पला है। हर दर्द समेटे गमछे में,देखो वहां किसान खड़ा है। हम रिस्क की बातें करते है,वो सर्दी गर्मी से कहाँ डरा है। हर पहर आसमा ओढ़े चलता वो,धरती से सोना उपजाता है। फिर गांव शहर की धुंध में आ,उसका अस्तित्व कहाँ खो जाता है। झंडा लिए वो दूर खड़ा है,नेता बटोरते तालियां। फिर, क्यारियों में बहता कलकल पानी, लहलहाती गेंहूँ की बालियां। ©रजनीश "स्वछंद" #NojotoQuote मेरे खेतों की क्यारियां।।।
मेरे खेतों की क्यारियां।।।
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