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@thewriterVDS

लोगों की इस #भीड़ में मैं भी हूं, कुछ #जज़्बात के साथ #कुंठित मैं भी हूं, सोच रहा हूं कुछ और, #वर्णित कुछ और करता हूं लोगों की भीड़ में घुट घुट के मैं #मरता हूं सोचने वाले सोचते रह जाते हैं मेरे जज्बातों के बारे में, मै कुंठित क्यों हूं

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लोगों की इस भीड़ में मैं भी हूं,
कुछ जज़्बात के साथ कुंठित मैं भी हूं,
सोच रहा हूं कुछ और,
वर्णित कुछ और करता हूं
लोगों की भीड़ में घुट घुट के मैं मरता हूं
सोचने वाले सोचते रह जाते हैं
मेरे जज्बातों के बारे में,
मै कुंठित क्यों हूं
सोचता क्या हूं
और वर्णित क्या करता हूं।

मै प्यार से कुंठित हूं
प्यार ही सोचता हूं
और प्यार ही वर्णित करता हूं। लोगों की इस #भीड़ में मैं भी हूं,
कुछ #जज़्बात के साथ #कुंठित मैं भी हूं,
सोच रहा हूं कुछ और,
#वर्णित कुछ और करता हूं
लोगों की भीड़ में घुट घुट के मैं #मरता हूं
सोचने वाले सोचते रह जाते हैं
मेरे जज्बातों के बारे में,
मै कुंठित क्यों हूं

रजनीश "स्वच्छंद"

स्वातंत्र्य भाव वर्णन।। ये शीश तर्पित आज है, ये वीर वर्णित आज है। कण कण लहु में ज्वार है, ये काव्य छन्दित आज है। कम्पित नहीं हुंकार है,

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स्वातंत्र्य भाव वर्णन।।

ये शीश तर्पित आज है,
ये वीर वर्णित आज है।
कण कण लहु में ज्वार है,
ये काव्य छन्दित आज है।

कम्पित नहीं हुंकार है,
वाणी में भी ललकार है।
कोटि कोटि स्वजनों में,
आह्लादित ये जयकार है।

ये भाव स्तंभित आज है,
ये जग अचंभित आज है।
जो पूत तेरे बढ़ चले,
सृष्टि भी कम्पित आज है।

ये धीर अंगद पांव है,
रौद्र मन का ही ठाँव है।
हम अडिग जो हैं खड़े,
मातृ आँचल की छांव है।

वो वीर जो सरहद डटे,
हैं धूप बारीश जो खड़े।
उनको नमन पभु आज है,
जो देश ख़ातिर है लड़े।

स्वातंत्र्य वेदी है ये पावन,
है गूंजता जो मुक्त गायन।
खग विहग तरु ताल नदियां,
हैं झूमते मानो हो सावन।

स्वरचित जन भाव संचित,
दारिद्र्य-रहित, न कोई वंचित।
मुक्ति स्वर नभ में जो गूंजा,
पुनः हुआ ये प्रण स्पंदित।

ये दृष्टि लक्षित आज है,
ये सार गर्भित आज है।
ये शीश तर्पित आज है,
ये वीर वर्णित आज है।।

©रजनीश "स्वछंद" स्वातंत्र्य भाव वर्णन।।

ये शीश तर्पित आज है,
ये वीर वर्णित आज है।
कण कण लहु में ज्वार है,
ये काव्य छन्दित आज है।

कम्पित नहीं हुंकार है,

आयुष पंचोली

क्या नरक और स्वर्ग सच मे होते हैं, या यह सिर्फ कोरी कल्पना मात्र हैं..!? यह प्रश्न भी उतनी ही गहन सोच का विषय हैं , जितना की आत्मा। अगर आप मानते हैं की आत्मा होती हैं, तो यह भी आपको मानना पड़ेगा की नरक और स्वर्ग भी होते हैं। पर कहां होते हैं, यह विषय शोध का हैं। क्योकी अगर बात की जाये गीता के ज्ञान की तो आत्मा अजर अमर हैं,  और वह एक शरीर त्यागकर दुसरा गृहण करती हैं। तो स्वर्ग और नरक का सवाल ही कहां आता हैं। इस हिसाब से गरूड पुराण मे सभी नरक यात्नाये, और 36 नरक सभी गलत हैं। और अगर गरुड़ पुराण मे व

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क्या सच मे होते हैं स्वर्ग या नरक, या यह सिर्फ एक कोरी कल्पना मात्र हैं...!? क्या नरक और स्वर्ग सच मे होते हैं, या यह सिर्फ कोरी कल्पना मात्र हैं..!?
यह प्रश्न भी उतनी ही गहन सोच का विषय हैं , जितना की आत्मा। अगर आप मानते हैं की आत्मा होती हैं, तो यह भी आपको मानना पड़ेगा की नरक और स्वर्ग भी होते हैं। पर कहां होते हैं, यह विषय शोध का हैं। 
क्योकी अगर बात की जाये गीता के ज्ञान की तो आत्मा अजर अमर हैं,  और वह एक शरीर त्यागकर दुसरा गृहण करती हैं। तो स्वर्ग और नरक का सवाल ही कहां आता हैं। इस हिसाब से गरूड पुराण मे सभी नरक यात्नाये, और 36 नरक सभी गलत हैं। और अगर गरुड़ पुराण मे व

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