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Deepak singh
साँप और सीढ़ी का खेल है जिंदगी,बस खेलते रहिए! ©Deepak shahi #अपनीसिसकियाँ
Deepak singh
नाउम्मीदी के बीचोंबीच फसा हूँ बवण्डर में, लोग देते हैं बस हौसला ,लेकिन क्या कर सकता हूँ अब डूबते हुए समंदर में! अब तो आपके बिना ही गिनता हूं अपने तारीख़े और दिन काग़जी कलेण्डर में! Father'sLove❤️ ©Deepak shahi #अपनीसिसकियाँ
Deepak singh
इश्क़ की फ़लसफ़ा में लोग सिर्फ जुदाई की बात करते हैं; यहाँ तो हमने ज़लज़ले भी देखे हैं! ©Deepak shahi #अपनीसिसकियाँ
Deepak singh
रूहानियत भरे लफ्ज से उसे आज भी सजाता हूँ, आहिस्ता-आहिस्ता हीं सही,मोहब्बत-ए-हयात कोरे कागज पे लिख जाता हूँ! ये अपनी नासमझी कहूँ या महकता मोहब्बत, बूँद-बूँद कर घूंट जाता हूँ! कसक है ,खलिश है गुनाह-ए-आशिकी का , यही सोचकर अरमानों पर कर्फ़्यू लगा जाता हूं! ©Deepak shahi #अपनीसिसकियाँ
Deepak singh
मिलावट-ए-इत्र सा हम इश्क नहीं करते, ख्वाइस-ए-इश्क में सोचता हूं पूरी रात पर किसी को अपना चाँद नही कहते! काश!इश्क-ए-तालीम ले लेते तेरी सजती महफ़िलो में तो आज यूँ कोरे कागज पर तेरे चर्चे नही करते! ©Deepak shahi https://www.facebook.com/authorDeeps/ #अपनीसिसकियाँ
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आपकी समस्याओं के बारे में पूछने वाला हर व्यक्ति आपके बारे में चिंतित हो ये जरूरी नहीं,कुछ लोग फ़ुरसत में सिर्फ अपनी अल्फाज बिखेरने भी चले आते हैं! ©Deepak shahi #अपनीसिसकियाँ
Deepak singh
तेरे ख्याल-ए-इश्क में सारा शहर घूमता हूं; छोड़ कर सारे जहाँ का सुकून, अमावस रात में भी चाँद ढूंढ़ता हूँ! तेरी तो फ़ितरत ही है, मोहब्बत में ठिकाना बदलना; फ़िर भी मैं वफ़ा-ए-लिबास ओढ़कर सारे जहाँ से तुम्हें अपना हमसफ़र कहता हूँ! -----दीपक शाही #अपनीसिसकियाँ
Deepak singh
जज़्बातों की हद से हम कब गुजर गए! उसके छलकती अन्जुमन की चाह में , हम साहिल को छोड़ गए! जब लौटा अरमान-ए-खाक कर अपनी बस्ती में, बदनामी की डलियाँ पूछ रही थी, तू तो दूसरे के छत की चाँद को अपना समझ गए! ----दीपक शाही #अपनीसिसकियाँ https://www.facebook.com/authorDeeps/
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अल्फाज़ो को समेट कर बैठा हूँ, वक़्त को आसान करने को! आपके रूख़सत के बाद खुशियां तो गुजरे जमाने की कहानी हो गई! Miss u papa! ----दीपक शाही #अपनीसिसकियाँ
Deepak singh
आशुओं के अल्फ़ाज को यहाँ कोई नही टटोलता साहब! दुनियां तो मौत के बाद ही मातम मनाती है! --–-दीपक शाही #अपनीसिसकियाँ