जज़्बातों की हद से हम कब गुजर गए! उसके छलकती अन्जुमन की चाह में , हम साहिल को छोड़ गए! जब लौटा अरमान-ए-खाक कर अपनी बस्ती में, बदनामी की डलियाँ पूछ रही थी, तू तो दूसरे के छत की चाँद को अपना समझ गए! ----दीपक शाही #अपनीसिसकियाँ https://www.facebook.com/authorDeeps/