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बे-बहर ग़ज़ल(इज़हार ए इश्क़) रदीफ़:-तुमसे काफ़िया:-इज़हार, खुमार,प्यार,एतबार, इख़्तियार ******************************** काश न की होती इब्दिता-ए-इश्क़ की तक़रार तुमसे, अग्यार ही बने रहते न करते इश्क़ का इज़हार तुमसे। दीदा-ए-दानिस्ता दरकिनार कर दी दिल की आवाज, चाहत-ए -विसाल-ए-सनम का हसीन ख़ुमार तुमसे। आब-ए-चश्म बहा के भूल गए हम ज़ख्म-ए-दिल को, चाहत-ए-सोहबत हुई ऐसी हमें कि फ़क़त है प्यार तुमसे। बन मोहसिन मिरी मज़ार पर तिरी रूह का निशाँ छोड़ जाना, अक़ीदा-ए-इश्क़ में मुन्तज़िर दिल को है एतबार तुमसे। दिल-ए-बे-क़रार निशा पाने को बस तिरी नाम-ए-मोहब्बत है, मिरी तहरीर-ए-किस्मत तेरे साथ हो, ऐसा इख़्तियार तुमसे। इब्दिता-ए-इश्क़:-प्यार की शुरुआत अग्यार:-अनजान दीदा-ए-दानिस्ता:-जानबूझकर मोहसिन:-सहायक अक़ीदा-ए-इश्क़:-प्यार के विश्वास दिल-ए-मुन्तजिर:-इंतजार करने वाला तहरीर-ए-किस्मत :-किस्मत का लिखा
इब्दिता-ए-इश्क़:-प्यार की शुरुआत अग्यार:-अनजान दीदा-ए-दानिस्ता:-जानबूझकर मोहसिन:-सहायक अक़ीदा-ए-इश्क़:-प्यार के विश्वास दिल-ए-मुन्तजिर:-इंतजार करने वाला तहरीर-ए-किस्मत :-किस्मत का लिखा
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गुमशुदा वक़्त ************ वक़्त के साये में बीत जाता सम्पूर्ण जीवन, तब अपनों की याद आती छत्रछाया, भूल ममत्व,नेहभाव,ममता की मूरत को भायी मात्र क्षणिक सम मोहमाया, खोल हृदय-भाव की गठरी, तलाश उस बचपन का साया जो कहीं गुम हो गया, गुमशुदा वक्त नहीं, बस तनिक कदम डगमगाये हैं, बस तू कहीं अभी भटक गया, जागृत कर तृष्णा के असीमित भाव को,तभी होगा जीवन का सु -समन्वय, दहाड़ सिंह सी फुफकार, अनल पावक सा शौर्य भर, ताकि सभी को हो विस्मय, स्मृति संस्मरण का नही होता, अंत वह अन्नताकार है असल मे जीवन दर्पण है, श्रम परिश्रम का बता महत्व,मरुधरा में भी पुष्प खिला बताये,वो समर्पण है, समाज के कर्णोद्धार हम, समझे इस वक़्त का महत्व ताकि समाज का हो जीर्णोद्धार, चलें सुमार्ग पर न हों पथभ्रष्ट जगायें अन्तरात्मा की निंद्रा खोल,पट हृदय के हो जाये उद्वार, उठ समापन कर आलस्य के समुद्भाव का,हो परिचय स्व से जो तेरे काम का, वक्त न रेत है जो ठहर जाए ये अविरल नीर है जो बहे,नही वक़्त है आराम का, गुबार निकाल मन का मन मनस्वी में ओजस्व भर फिर वक्त के साथ कदमताल कर, नित नित सुविचारित हो मनोभाव प्रत्येक पथ पर चलना जरा तुम भी सम्भल कर, धैर्य मनोबल ही नेक नियति का सु कर्म है, तलाश करो खोये वक्त को वही धर्म है, ना हताश हो न हठधर्मी संयमित्ता के मार्ग पर मिलता कभी कोई भ्रम है। ✍️Nisha kamwal #rzमहफ़िल #rzमहफ़िल4 #restzone #yqrestzone #Magnetic_monisha Monika Agrawal
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विधा:- पत्र लेखन ****************** विषय :- रोटी का एक गृहिणी को प्रत्युत्तर *********************************** सम्पूर्ण पत्र पढ़ने हेतु कृपया अनुशीर्षक में पढ़ियेगा🙏🙏🙏 विधा:- पत्र लेखन ****************** विषय :- रोटी का एक गृहिणी को प्रत्युत्तर *********************************** ल.म.व.पुर, च.घ.ड़ नगर,
विधा:- पत्र लेखन ****************** विषय :- रोटी का एक गृहिणी को प्रत्युत्तर *********************************** ल.म.व.पुर, च.घ.ड़ नगर,
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जैसे घट-घट में वास हो भगवान का कविता उसका प्रमाण हैं, भावों भरी अभिव्यक्ति उसकी,शब्द इसके सम धनुष बाण हैं, जीव निर्जीव में जान भर दे अल्हड़ को भी दे नई पहचान हैं, जो खो गया दुनिया के मेले में कविता दिलाती उसका मान हैं, मैं नदी की धार सम,कविता समुद्र की गहराइयों के समान है, मैं नाचीज़ सी इंसाँ हूँ,कविता में ही समाया समस्त ब्रह्याण्ड है, क्या कविता शब्दों का सार हैं?नही यह अभिव्यक्ति का आधार है, कण-कण में विराजमान को प्रस्तुत कर,जी हाँ! कविता ही संसार है, अद्वितीय,अलौकिक,अद्भुत दिव्यता में समाई एक अमूल्य पारस है, उघाड़ के रख दे सफेदपोशों को मिनटों में इसमें वो बात भी खास है, भूत, भविष्य, वर्तमान का सार बताये,युगों युगों की कहानी सुनाये, कभी प्रेमवारिधि की बारिश कर दे,तो कभी कभी संस्कृति भी बताये, जिसे खरीद लो मुँह बोले दाम मे ये न कोई बाजारू बिकाऊ चीज़ है, वस्त्रधारी की निर्वस्त्र कर दे,भरे बाजार में दिखाती तुम्हारी तमीज़ है। "मैं कविता हूँ" यह मूल कविता मेरी सहभागी Monika Agrawal जी द्वारा रचित हैं। जिसका मेरे द्वारा कविता पुनःनिर्मित की गई हैं। क़लम उठाकर प्रयत्न से जिसको,अक्षर-दर- अक्षर लिखता तू, सागर सी गहरी कविता हूँ मैं,जिसकी हर एक लहर को उथलता तू,,, समग्र समाज के अवचेतन पर,नवयुग का बदलाव मैं लाती हूँ, धर्म-अधर्म और भ्रमित बुद्धि को जीवन-मूल्य समझाती हूँ,,,
"मैं कविता हूँ" यह मूल कविता मेरी सहभागी Monika Agrawal जी द्वारा रचित हैं। जिसका मेरे द्वारा कविता पुनःनिर्मित की गई हैं। क़लम उठाकर प्रयत्न से जिसको,अक्षर-दर- अक्षर लिखता तू, सागर सी गहरी कविता हूँ मैं,जिसकी हर एक लहर को उथलता तू,,, समग्र समाज के अवचेतन पर,नवयुग का बदलाव मैं लाती हूँ, धर्म-अधर्म और भ्रमित बुद्धि को जीवन-मूल्य समझाती हूँ,,,
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आज मचा हाहाकार है,उठाओ नित दृष्टि तो छात्र असन्तोष व हो रहा अत्याचार हैं, खेल संवेदनशीलता से असमानता का होता व्यहार नष्ट हो रहा मानवाधिकार हैं, चिंतन मनन का पाठ बन्द कर दलगत राजनीति का हो रहा निरंतर प्रचार हैं, ले सहारा भाई भतीजावाद का गिर रहे मूल्य नष्ट विनष्ट हो रहे आज रोजगार हैं। Monika Agrawal #rzमहफ़िल #rzमहफ़िल1 #restzone #yqrestzone #Magnetic_monisha
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