जैसे घट-घट में वास हो भगवान का कविता उसका प्रमाण हैं, भावों भरी अभिव्यक्ति उसकी,शब्द इसके सम धनुष बाण हैं, जीव निर्जीव में जान भर दे अल्हड़ को भी दे नई पहचान हैं, जो खो गया दुनिया के मेले में कविता दिलाती उसका मान हैं, मैं नदी की धार सम,कविता समुद्र की गहराइयों के समान है, मैं नाचीज़ सी इंसाँ हूँ,कविता में ही समाया समस्त ब्रह्याण्ड है, क्या कविता शब्दों का सार हैं?नही यह अभिव्यक्ति का आधार है, कण-कण में विराजमान को प्रस्तुत कर,जी हाँ! कविता ही संसार है, अद्वितीय,अलौकिक,अद्भुत दिव्यता में समाई एक अमूल्य पारस है, उघाड़ के रख दे सफेदपोशों को मिनटों में इसमें वो बात भी खास है, भूत, भविष्य, वर्तमान का सार बताये,युगों युगों की कहानी सुनाये, कभी प्रेमवारिधि की बारिश कर दे,तो कभी कभी संस्कृति भी बताये, जिसे खरीद लो मुँह बोले दाम मे ये न कोई बाजारू बिकाऊ चीज़ है, वस्त्रधारी की निर्वस्त्र कर दे,भरे बाजार में दिखाती तुम्हारी तमीज़ है। "मैं कविता हूँ" यह मूल कविता मेरी सहभागी Monika Agrawal जी द्वारा रचित हैं। जिसका मेरे द्वारा कविता पुनःनिर्मित की गई हैं। क़लम उठाकर प्रयत्न से जिसको,अक्षर-दर- अक्षर लिखता तू, सागर सी गहरी कविता हूँ मैं,जिसकी हर एक लहर को उथलता तू,,, समग्र समाज के अवचेतन पर,नवयुग का बदलाव मैं लाती हूँ, धर्म-अधर्म और भ्रमित बुद्धि को जीवन-मूल्य समझाती हूँ,,,