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अबोध_मन//फरीदा
एक बेला खिला अकेला, श्वेत वर्ण अनुरागी काया, महका ख़ुद, आँगन महकाया। निर्झर ख्यालों की झील में उतराता सा आस का ढेला। भोर संग बेला मुसकाया। ना चित न पट चैन, उद्विग्न मन ये कैसा झमेला। ख़ुद सीखा मुझे भी सिखाया। हाँ.. सिखाता है ये बेला खिलना तब भी तुम जब हो मन अकेला जैसे ‘बेला’...’अलबेला’। .. ©अबोध_मन//फरीदा #अबोध_मन #अबोध_poetry #बेला_अकेला #अर्पण #मेरी_जिजीविषा #मेरे_तुम
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