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Best नमन_छंद Shayari, Status, Quotes, Stories

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बासुदेव अग्रवाल नमन

पंचचामर छंद / नाराच छंद "देहाभिमान"

कभी न रूप, रंग को, महत्त्व आप दीजिये।
अनित्य ही सदैव ये, विचार आप कीजिये।।
समस्त लोग दास हैं, परन्तु देह तुष्टि के।
नये उपाय ढूँढते, सभी शरीर पुष्टि के।।

शरीर का निखार तो, टिके न चार रोज भी।
मुखारविंद का रहे, न दीप्त नित्य ओज भी।।
तनाभिमान त्याग दें, कभी न नित्य देह है।
असार देह में बसा, परन्तु घोर नेह है।।

समस्त कार्य ईश के, मनुष्य तो निमित्त है।
अचेष्ट देह सर्वथा, चलायमान चित्त है।।
अधीन चित्त प्राण के, अधीन प्राण शक्ति के।
अरूप ब्रह्म-शक्ति ये, टिकी सदैव भक्ति के।।

अतृप्त ही रहे सदा, मलीन देह वासना।
तुरन्त आप त्याग दें, शरीर की उपासना।।
स्वरूप 'बासुदेव' का, समस्त विश्व में लखें।
प्रसार दिव्य भक्ति का, समग्र देह में चखें।।
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पंचचामर छंद / नाराच छंद विधान -

पंचचामर छंद जो कि नाराच छंद के नाम से भी जाना जाता है, १६ वर्ण प्रति पद का वर्णिक छंद है।

लघु गुरु x 8 = 16 वर्ण, यति 8+8 वर्ण पर। चार पद, दो दो समतुकांत।
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©बासुदेव अग्रवाल नमन #नमन_छंद 

#पंचचामर_छंद  

#नाराच_छंद

बासुदेव अग्रवाल नमन

बृहत्य छंद आधारित

“सावन का सोमवार गीतिका”

मधुर मास सावन लगा है,
दिवस सोम पावन पड़ा है।

महादेव को सब रिझाएँ,
उसीका सभी आसरा है।

तेरा रूप सबसे निराला,
गले सर्प माथे जटा है।

सजे माथ चंदा ओ गंगा,
सवारी में नंदी सजा है।

कुसुम बिल्व चन्दन चढ़ाएँ,
ये शुभ फल का अवसर बना है।

शिवाले में अभिषेक जल से,
करें भक्त मोहक छटा है।

करें कावड़ें तुझको अर्पित,
सभी पुण्य पाते महा है।

करो पूर्ण आशा सभी शिव,
'नमन' हाथ जोड़े खड़ा है।

©Basudeo Agarwal #बृहत्य_छंद

#नमन_छंद

बासुदेव अग्रवाल नमन

भुजंगी छंद (गीत )

गरीबी रहे ना यहाँ पे कभी।
रहे देश का नाम ऊँचा तभी।।

रखें भावना प्यार की सबसे हम,
दुखी जो हैं उनके करें दुख को कम,
दिलों में दया भाव धारें सभी।
रहे देश का नाम ऊँचा तभी।।

मिला हाथ आगे बढ़ें सब सदा,
न कोई रहे कर्ज़ से ही लदा,
दुखी दीन को दें सहारा सभी। 
रहे देश का नाम ऊँचा तभी।।

हुये बेसहारा उन्हें साथ दें,
गिरें हैं जमीं पे उन्हें हाथ दें,
जवानों बढ़ो आज आगे सभी। 
रहे देश का नाम ऊँचा तभी।।

वतन के लिए जान हँस हँस के दें,
तिरंगे को झुकने कभी हम न दें, 
बढ़े देश आगे सुखी हों सभी।
रहे देश का नाम ऊँचा तभी।।

'नमन' देश को कर ये प्रण हम करें,
नहीं भूख से लोग आगे मरें,
जो खुशहाल होंगें यहाँ पर सभी।
रहे देश का नाम ऊँचा तभी।।
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भुजंगी छंद विधान -

भुजंगी छंद 11 वर्ण प्रति चरण का वर्णिक छंद है जिसका वर्ण विन्यास 122*3 + 12 है। इस चार चरणों के छंद में 2-2 अथवा चारों चरणों में समतुकांतता रखी जाती है।

यह छंद वाचिक स्वरूप में भी प्रसिद्ध है जिसमें उच्चारण के आधार पर काफी लोच संभव है। वाचिक स्वरूप में गुरु वर्ण (2) को लघु+लघु (11) में तोड़ने की तथा उच्चारण के अनुसार गुरु वर्ण को लघु मानने की भी छूट रहती है।

©Basudeo Agarwal l
#भुजंगी_छंद

#नमन_छंद

बासुदेव अग्रवाल नमन

तरलनयन छंद "नटवर छवि"

कबहुँ पड़त, कबहुँ उठत।
नटवर जब, सँभल चलत।।
ठुमकि ठुमकि, धरत चरण।
सरस सकल, यह विवरण।।

यशुमति लख, अति पुलकित।
तन मन दृग, हृदय चकित।।
रह रह कर, वह विहँसत।
सुर नर मुनि, छवि वरनत।।
***********

तरलनयन छंद विधान -

चतुष नगण, रखतत कवि।
'तरलनयन', परखत छवि।।

तरलनयन छंद चार नगण से युक्त 12 वरण की वर्णिक छंद है। इसमें सब लघु वर्ण रहने चाहिए। यति छह छह वर्ण पर है। चार पद की छंद। दो दो या चारों पद समतुकांत होने चाहिए।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'

©Basudeo Agarwal #नमन_छंद
#तरलनयन_छंद

बासुदेव अग्रवाल नमन

तमाल छंद "ग्रीष्म ताण्डव"

दिखा रही है ग्रीष्म पूर्ण बल आज,
ठहर गये हैं भू तल के सब काज।
प्रखर उष्णता का कर कुटिल प्रसार,
वसुधा को झुलसाती लू की धार।।

तप्त तपन की ताप राशि दुस्वार,
प्रलय स्वप्न को करती ज्यों साकार।
अट्टहास में रुदन समेटे घोर,
ग्रीष्म बहाये पिघला लावा जोर।।

नहीं छुपाने का तन को है ठौर,
घोर व्यथा का आया भू पर दौर।
शुष्क हुये सब नदी सरोवर कूप,
नर, पशु, पक्षी, तरु का बिगड़ा रूप।।

दुष्कर अब तो सहना सलिल अभाव,
रहा मौत दे अब यह भीषण दाव।
झुलसाया जन जन को यह संताप,
कब जायेगा छोड़ प्रलय की छाप।।
***.  ***

तमाल छंद एक सम पद मात्रिक छंद है, जिसमें प्रति चरण 19 मात्रा 
रहती हैं। दो-दो या चारों चरण समतुकांत होते हैं। 
इसका मात्रा विन्यास निम्न है-
चौपाई + गुरु लघु (16+3 =19मात्रा)
चरण के अंत में गुरु लघु अर्थात (21) होना अनिवार्य है।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया

©Basudeo Agarwal #नमन_छंद

बासुदेव अग्रवाल नमन

किशोर छंद

किशोर मुक्तक "कोरोना"

भारी रोग निसड़लो आयो, कोरोना,
सगलै जग मैं रुदन मचायो, कोरोना,
मिनखाँ नै मिनखाँ सै न्यारा, यो कीन्यो
कुचमादी चीन्याँ रो जायो, कोरोना।
***   ***

किशोर छंद विधान -

किशोर छंद मूल रूप से एक मात्रिक छंद है। इसके प्रत्येक पद मे 22 मात्राएँ होती हैं तथा यति 16 व 6 मात्राओं पर होती है। पद की मात्रा बाँट अठकल*2, द्विकल*3 होती है। इसमे पदांत मगण (222) से हो तो यह छंद और भी सुंदर हो जाता है। इस छंद में चारों पद समतुकांत रखे जाते हैं।  

किशोर मुक्तक :- किशोर छंद के यदि तीसरे पद को भिन्न तुकांत कर दें तो यही 'किशोर मुक्तक' में परिवर्तित हो जाता है।

बासुदेव अग्रवाल नमन

©Basudeo Agarwal #नमन_छंद

बासुदेव अग्रवाल नमन

किशोर छंद

किशोर मुक्तक "बालाजी"

एक आसरो बचग्यो थारो, बालाजी।
बेगा आओ काम सिकारो, बालाजी।
जद जद भीड़ पड़ी भकताँ माँ, थे भाज्या।
दोराँ दिन से आय उबारो, बालाजी।।
***   ***

किशोर छंद विधान -

किशोर छंद मूल रूप से एक मात्रिक छंद है। इसके प्रत्येक पद मे 22 मात्राएँ होती हैं तथा यति 16 व 6 मात्राओं पर होती है। पद की मात्रा बाँट अठकल*2, द्विकल*3 होती है। इसमे पदांत मगण (222) से हो तो यह छंद और भी सुंदर हो जाता है। इस छंद में चारों पद समतुकांत रखे जाते हैं।  

किशोर मुक्तक :- किशोर छंद के यदि तीसरे पद को भिन्न तुकांत कर दें तो यही 'किशोर मुक्तक' में परिवर्तित हो जाता है।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'

©Basudeo Agarwal #नमन_छंद

बासुदेव अग्रवाल नमन

अनुष्टुप छंद "गुरु पंचश्लोकी"

सद्गुरु-महिमा न्यारी, जग का भेद खोल दे।
वाणी है इतनी प्यारी, कानों में रस घोल दे।।

गुरु से प्राप्त की शिक्षा, संशय दूर भागते।
पाये जो गुरु से दीक्षा, उसके भाग्य जागते।।

गुरु-चरण को धोके, करो रोज उपासना।
ध्यान में उनके खोकेेे, त्यागो समस्त वासना।।

गुरु-द्रोही नहीं होना, गुरु आज्ञा न टालना।
गुरु-विश्वास का खोना, जग-सन्ताप पालना।।

गुरु के गुण जो गाएं, मधुर वंदना करें।
आशीर्वाद सदा पाएं, भवसागर से तरें।।
*****
अनुष्टुप छंद विधान -

यह छंद अर्द्ध समवृत्त है । इस के प्रत्येक चरण में आठ वर्ण होते हैं । पहले चार वर्ण किसी भी मात्रा के हो सकते हैं । पाँचवाँ लघु और छठा वर्ण सदैव गुरु होता है । सम चरणों में सातवाँ वर्ण ह्रस्व और विषम चरणों में गुरु होता है। आठवाँ वर्ण सदैव गुरु रहता है।

©Basudeo Agarwal #अनुष्टुप_छंद

#नमन_छंद

बासुदेव अग्रवाल नमन

दोहा छंद "श्राद्ध-पक्ष"

श्राद्ध पक्ष में दें सभी, पुरखों को सम्मान।
वंदन पितरों का करें, उनका धर सब ध्यान।।

रीत सनातन श्राद्ध है, इस पर हो अभिमान।
श्रद्धा पूरित भाव रख, मानें सभी विधान।।

द्विज भोजन बलिवैश्व से, करें पितर संतुष्ट।
उनके आशीर्वाद से, होते हैं हम पुष्ट।।

पितर लोक में जो बसे, करें सदा उपकार।
बन कृतज्ञ उनके सदा, प्रकट करें आभार।।

हमें सदा मिलता रहे, पितरों का वरदान।
भरे रहें भंडार सब, हों हम आयुष्मान।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन

©Basudeo Agarwal #दोहा_छंद

#नमन_छंद

बासुदेव अग्रवाल नमन

32 मात्रिक छंद "शारदा वंदना"

कलुष हृदय में वास बना माँ,
श्वेत पद्म सा निर्मल कर दो ।
शुभ्र ज्योत्स्ना छिटका उसमें,
अपने जैसा उज्ज्वल कर दो ।।

शुभ्र रूपिणी शुभ्र भाव से,
मेरा हृदय पटल माँ भर दो ।
वीण-वादिनी स्वर लहरी से,
मेरा कण्ठ स्वरिल माँ कर दो ।।

मन उपवन में हे माँ मेरे,
कविता पुष्प प्रस्फुटित होंवे ।
मन में मेरे नव भावों के,
अंकुर सदा अंकुरित होंवे ।।

माँ जनहित की पावन सौरभ,
मेरे काव्य कुसुम में भर दो ।
करूँ काव्य रचना से जग-हित,
'नमन' शारदे ऐसा वर दो ।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'

©Basudeo Agarwal #नमन_छंद
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