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बासुदेव अग्रवाल नमन

अनुष्टुप छंद "गुरु पंचश्लोकी"

सद्गुरु-महिमा न्यारी, जग का भेद खोल दे।
वाणी है इतनी प्यारी, कानों में रस घोल दे।।

गुरु से प्राप्त की शिक्षा, संशय दूर भागते।
पाये जो गुरु से दीक्षा, उसके भाग्य जागते।।

गुरु-चरण को धोके, करो रोज उपासना।
ध्यान में उनके खोकेेे, त्यागो समस्त वासना।।

गुरु-द्रोही नहीं होना, गुरु आज्ञा न टालना।
गुरु-विश्वास का खोना, जग-सन्ताप पालना।।

गुरु के गुण जो गाएं, मधुर वंदना करें।
आशीर्वाद सदा पाएं, भवसागर से तरें।।
*****
अनुष्टुप छंद विधान -

यह छंद अर्द्ध समवृत्त है । इस के प्रत्येक चरण में आठ वर्ण होते हैं । पहले चार वर्ण किसी भी मात्रा के हो सकते हैं । पाँचवाँ लघु और छठा वर्ण सदैव गुरु होता है । सम चरणों में सातवाँ वर्ण ह्रस्व और विषम चरणों में गुरु होता है। आठवाँ वर्ण सदैव गुरु रहता है।

©Basudeo Agarwal #अनुष्टुप_छंद

#नमन_छंद

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