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prakashvidyarthi4483
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Prakash Vidyarthi

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Prakash Vidyarthi

White गुदड़ी के लाल "शास्त्री जी"

  (हुबहु हाल विद्यार्थी जी)

गरीबी अभावों में हुए पैदा जो 
वो भारत के भाल बने।
मातृभूमि के आंचल में पले बढ़े   
 वो गुदड़ी के लाल जनें।।

पिता शारदा प्रसाद श्रीवास्तव  
 मैया रामदुलारी थी।
मुगलसराय के पावन भूमि 2  
 अक्टूबर शुभ घड़ी थी।।

पिता के गुजर जानें पर
घर में छाई दुखहाली थी।
ननिहाल मिर्जापुर रहने लगी  
अम्मा शास्त्री को संभाली थी।।

गुणवान चतुर मेघावी बालक  
स्कूली शिक्षा प्रारम्भ किए।
माथे पर बस्ता कपड़ा रखकर  
गंगा नदी को लांघ दिए।।

काशी विद्यापीठ से बहादुर जब   
शास्त्री उपाधि प्राप्त किए। 
नाम के आगे जातिसूचक शब्द 
श्रीवास्तव सरनेम समाप्त किए।।

लोक कल्याण देशहित भक्ती में  
शास्त्री जी खुदको किए समर्पित।
सच्चा देशभक्त लोकतांत्रिक  
स्वराज को किए सत्य प्रदर्शित।।

विनम्र  राष्टभक्त ईमानदार  
निष्ठवान प्रतीक पहचान हुए।
भारत के अद्वितीय प्रधानमंत्री
लाल बहादुर शास्त्री नाम हुए।।

छुआछूत गरीबी अज्ञानता को
दूर करने कार्य विशेष किए।
आपस में लड़ने के बजाए  
मिलकर रहने को सनेश दिए।।

अक्सर कम साधनों के कारण वो 
सदा जीवन जिया करते थे।
फटे कुर्ते अनु पत्नी को देकर 
रुमाल बनवाकर लिया करते थे।।

अकाल भुखमरी बिप्पती के  
समय नागरिकों के निदान बने।
एक दिवसीय व्रत उपवास कर  
भुखमरी मिटाने का ज्ञान दिए।।

बापू गांधी जी थे उनके आदर्श 
 रघुपति राघव राम सजे।
जय जवान जय किसान गूंजे 
 जय भारती हिन्दुस्तान भजे।।

घर समाज देश खुश रहे यहीं  
उनकी हार्दिक इक्शा थीं।
फले फूले सबका शुभ जीवन  
प्रकाशित विद्यार्थी की शिक्षा थी।।

स्वरचित:- प्रकाश विद्यार्थी
                भोजपुर बिहार

©Prakash Vidyarthi #Sad_Status #kavita #rachna #kahani #Poetry
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Prakash Vidyarthi

White अनुभव कहता है की
 स्त्रियों को तारीफ करने वाले पुरूष भले ही ज्यादा पसंद आते हैं,
 पर जो पुरूष उन स्त्रियों की दिखावटी तारीफ़ न करें बल्कि अपमान करदे
 झगड़ा करदे ,रूठ जाए, फिर मान जाए 
उन स्त्री पुरुषों में प्यार होने की मजबूत संभावना होती हैं ।

    
      प्रकाश विद्यार्थी

©Prakash Vidyarthi #love_shayari #thought
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Prakash Vidyarthi

White " विचारो में भिन्नता "

हम उस बंजर भूमि के प्राणि हैं जहां के 
लोगों को दूर के ढोल सुहांवन लगते हैं।

मेहफिले तो यहां भी सजी हैं और वहां भी सजी हैं 
पर किसी को नदी नही नाली ही मनभावन लगते हैं।।

बस  नज़र और नजरिए का अन्तर हैं हुजुर देखो तो 
किसी को सौ हंड्रेड तो किसीको फिफ्टी टू बावन लगते हैं

यहीं नहीं, सोचे तो ये उच्च नीच का भेद बड़ा अजीब है
 जो बुद्धि और विचारो से सब दुष्ट बामन लगते हैं।।

पॉलिटिक्स ताकत के पीछे ये दुम हिलाते करते हैं चापलूसी।
दूसरो को नीचा दिखाने में मिलती हैं इनको बहुत खुशी।।

नफरत की निगाह से यहां सब एक दूसरे को देखते हैं।
नियत की नियती कौन जानें फिर भी जालिम हाथ सेकते हैं।।

काश उनमें स्नेह होता भाईचारा होता 
तो विकाश की बहती पावन धारा होता।

प्रफूलित हों उठता सबका तन मन संघ
दरिया में डूबे तिनके का सहारा होता।।

पर गिरे हुए हैं कुछ असमाजिक तत्व लोग 
जो अक्सर गिराने में लगे हैं ख़ुद को भी

 औरों को भी करते हैं बेवजह अपमान ये
अपनो को छोड़ते नहीं कभी गैरों को भी ।।

कोई इन्हे लेवरचटवा धूर्त या चमचा भीं कहते हैं।
ये पढ़े लिखे भ्रष्ट कभी  किसी को भी मात दे देते हैं।

अगर समझो तो ये मिट्टी सोना है और सोना मिट्टी हैं 
ऐसे लोगों को चुंगुला अशिष्ठ व्यभाचारी बेलचा कहते हैं।।

बिगड़ा कुछ नहीं है यहां आपस की बस ताल मेल बिगड़ी हैं।
बड़े मियां छोटे मियां के चक्कर में पक रही जली भूनी खीचड़ी हैं।।

तू तू मैं मैं की होड़ लगी है अपना बनता जाए बस काम।
 ईमानदार सज्जन जाए भाड़ में बगल में छूरी मूख में राम।।

स्वरचित:- प्रकाश विद्यार्थी
               भोजपुर बिहार

©Prakash Vidyarthi #love_shayari #कविता #poetry #रचना
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Prakash Vidyarthi

White "स्टोरी ऑफ 1,2,3"
:::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::
जरा सोचो उस शख्स का प्रेम कैसा होगा ।
जो प्रेम किसी के नाम से कर बैठा होगा ।

जरा समझो जिसने बहुत से विकल्प त्याग दिए।
एक सही के तलाश में एक से अधिक को भाग दिए।।

जरा परखो उसका हृदय तन मन कैसा होगा।
जो रूप रंग नहीं मात्र नाम से ईश्क किया होगा।।

जरा विचार करो कैसे कोई नाम से दिल लगा लेगा।
कभी न पूरा होने वाला अधुरे सपने यू ही सजा लेगा।।

जरा महसूस करो अगर वो अपना प्यार पाले तो क्या होता।
निश्छल शाश्वत प्रेम एहसास का अनमोल रत्न धन सजा होता।।

जरा देखो परखो वैसे प्रेमी का प्रेम कितना पावन होगा 
सुखमय वैवाहिक जीवन ईश्वर के वरदान मनभावन होगा।।

जरा झांको उसकी आंखों में स्नेह सागर क्या ठहरा हैं।
पूछो खुद से प्रश्न क्या उसका प्रेम चाहत इतना गहरा है।।

जरा समझो उसने अपना प्यार चाहत क्यों जगजाहिर नहीं किया।
पूजता रहा एक मूरत को दूसरों को अहसास होने तक नहीं दिया।।

जरा महसूस करो कोई किसी अनजाने का ख्याल क्यों रखेगा।
मानवता के नाते या प्रेम की मायाजाल में ऐसे ही क्यों फसेगा।।

काश एक ऐसी नारी होती जो समझदार स्वच्छ संस्कारी होती।
श्वेत मन जनक दुलारी होती करते नमन गर वो फूल कुमारी होती ।।

जो नहीं पढ़ सका विद्यार्थी का स्नेह उत्तर कुंजी वो अबोध होगा।
प्रकाशित प्रेम की परिभाषा उदाहरण का अब नया शोध होगा।।

©Prakash Vidyarthi #love_shayari #poem✍🧡🧡💛 #कविताएं #रचना_का_सार
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Prakash Vidyarthi

White "गुरु की महिमा"

गुरु ब्रह्म हैं गुरु विष्णु गुरु गोविंद महेश ।
गुरु शरण जो धाय मिट जाए सारा क्लेश।।

गुरु राम हैं गुरु श्याम गुरु पिता मां अम्बा।
गुरु सरस्वती लक्ष्मी पार्वती गुरु दुर्गा जगदम्बा।।

गुरु अल्लाह गॉड ईश्वर एक  
 जिनके कारज नेक अनेक।
चाहें पढलो गीता कुरान रामायण   
 महाभारत या धार्मिक वेद।।

गुरु ज्ञान सरोवर सागर गुरु विद्या की खान।
गुरु जीवन के पथ प्रदर्शक गुरू चक्षु समान।।

गुरु बल हैं गुरु बुद्धि है जैसे 
पावन यमुना गंगा का जल।।
गुरू विद्यार्थी का दीपक प्रकाश   
हर समस्या का सही हल।।

गुरु देव ऋषि मुनि महात्मा गुरु    
संदीपनी वाल्मिकी चाणक्य।
गुरु शिक्षा के नायक शिक्षार्थी
जो दिलाए शिष्यों का लक्ष्य।।

गुरु ब्रह्मांड वैज्ञानिक दर्शन
शास्त्र शस्त्र भी सिखाए।
गुरु के कृपा से अबोध विद्यार्थी 
चांद मंगल भीं घूम आए ।।

गुरु मित्र सखा हितकारी
अच्छा मार्ग प्रशस्त कर्ता।
छात्र छात्राओं को पुत्र पुत्री माने
सबका कष्ट हरण करता।।

गुरु मात्र भाव का भूखा आदर   
 सत्कार सम्मान चहेता।
सूरज बन खुद जलता चलता
 बहुमूल्य ज्ञान गुण सबको देता।।

शिक्षित सभ्य समाज निर्माता   
 यथा निर्देशक गुरु हैं रूप।
शिष्टाचार अनुशासन शुभ चिन्तक 
 गुरु छत्र छाया कभी धूप।।

गुरू किसी को डाक्टर बनाए
किसी को राष्ट्र का राजा।
गुरु से कोई मास्टर इंजीनियर बने 
सच्चा देशभक्त खुश प्रजा।।

गुरु आईएएस आईपीएस पैदा करें
 वकील कलक्टर नेता अधिकारी।
गुरु कृपा दया जो भीं प्राप्त करें   
महाराज भीं बन जाए निर्धन भिखारी ।।

गुरु महिमा मंडन अपरम्पार है
गुरु के पांव जो भक्त पूजे।
मानवजीवन प्रफुल्लित प्रकाशित हों 
धन्य धान्य यश वैभव समृद्धि जय गूंजे।।

जय गुरु विजय गुरु करू गुरू गुणगान
चरण स्पर्श गुरूवे नमः ह्वदय बसे गुरु धाम।।
 
करे प्रकाश गुरु बखान वंदन विद्यार्थी 
कोटि कोटि नमन अभिनंदन प्रणाम।
गुरु से बढ़कर कोई न जग में दूजा  
गुरु चरण में शिक्षित हुए भगवान।।

स्वरचित:- प्रकाश विद्यार्थी
                भोजपुर बिहार

©Prakash Vidyarthi
  #sad_quotes #कविताएं #poetry_addicts #लेखक_की_दुनिया
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Prakash Vidyarthi

White " विषय अनुरूप ज्ञान"

लिखते हैं आज कुछ
विषय वस्तु अनुरूप ज्ञान।
कहीं छाया तो कहीं धूप
फिर कैसा और क्यों अभिमान 

प्राइमरी वाली नखरा करे
हाई क्लास वाली करे प्यार।
मिडिल वाली मन को भाए
जाति धर्म बना दीवार।।

मैथ वाली मोहब्ब्त करी 
अंग्रेज़ी वाली आंखे चार।
हिन्दी वाली होश उड़ा गईं 
संस्कृत वाली प्रेम आधार ।।

हिस्ट्री वाली हिसाब करे   
इकोनॉमिक्स वाली दर्द बढ़ाएं।
साइंस वाली चाहत शौक रही 
ज्योग्राफी वाली दिल में समाए।।

ऊर्दू वाली परी बड़ी सुन्दर लगे   
भोजपुरी वाली स्नेह रास रचाती।
 केमिस्ट्री वाली घुलना मिलना चाहें
 फिजिक्स वाली दुर भाग जाती।।

बायोलॉजी वाली करीब जो आती
दिल में कम्पन बढ़ाती।
यूपी बंगालन झारखंडी हीरोइन 
सब हैं भाव बडी खाती।।

मनोविज्ञान वाली मन को समझे
योगा वाली योगसन सिखाए।
राजनीति शास्त्र वाली खेल खेलें
नागरिक शास्त्र वाली सभ्य बनाए।
 
प्राकृत भाषा वाली प्यारी लगे
गृह विज्ञान वाली ललचाए।
सोशियोलॉजी साथ निभाती नहीं
विद्यार्थी रूप प्रकाशित हों जाए।।

स्वरचित:- प्रकाश विद्यार्थी
                भोजपुर बिहार

©Prakash Vidyarthi
  #women_equality_day #kavita
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Prakash Vidyarthi

White कान्हा के इंतज़ार में
 (कृष्णा भजन गीत )
::::::::.:::;;;;;;;;;;;;;;;;::;;;
गिरिधर जब से       गए हैं दूर देश रे।
नाहि सामाचार मिला कुशल सनेश रे।।
असरे ही असरे में जिन्दगी गुजारे।
दिन रात  एक  टक  राह  निहारे ।।
रोई रोई प्रभू जी के प्यार में।
उमर सारी ढल गई राधा की कान्हा के इंतज़ार में।। .-२

बड़ा निर्मोही लगे,  मोहन मुरारी।
किए रे जुल्म प्यारी राधा पे भारी।।
खोज न खबर कुछ बहुत सताएं
ह्वदय की पीड़ा पीर कैसे दिखाएं
छोड़ गए बीच मजधार में ।
उमर सारी...................२

देखो मेरी दुःख दशा ओ यशोदा मईया ।
खूब तंग किया हमे, तेरा लाल कन्हैया।।
करे रासलीला  वृंदावन  बांके बिहारी
गोपियां मोहित भई और मैं दिल हारी 
बसे मन मन्दिर संसार मे ।
उमर सारी..................२

चेहरा के चमक  हों गया धूमिल।
श्याम बिन जीना हुआ हैं मुश्किल।।
पूरब जन्म का हैं प्रीत पुरानी
नंद लाला की हैं प्रेम दीवानी 
भटके अकेली वन झाड़ में ।
उमर सारी....................२

विरह के अगिया किशन जी लगाके।
लुप्त हुए राधा को विरहिन बनाके।।
प्रकाश विद्यार्थी की मन की कल्पना
निज पराया अब गैर लगे सब सपना
गई मुरझाईं पुष्प हार में ।
उमर सारी...................२

स्वरचित -- प्रकाश विद्यार्थी 
               भोजपुर बिहार

©Prakash Vidyarthi
  #love_shayari #poeatry #कविताएं
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Prakash Vidyarthi

White मेरा ईश्क सूर्पनखा 
:::::::::::::::::::::::::::::::::::::

अरे तनिक सुनो सुन्दरी सूर्पनखा।
हे देवी रुपवती मोहिनी नवलखा।।
आपने ये कैसा परिणय प्रस्ताव रखा ।
हम ठहरे तूक्ष साधारण मानव नर 
और आप हैं दशानन दुलारी सखा।।

फिर क्यों लालायित हों देवी बिना समझे प्रेम परिभाषा
कैसे होगा हमारा संगम कन्या हे देखो हमारी दुर्दशा।
न डालो प्रेम की मायाजाल हमपर न करो कोई आशा।।
नहीं दे पाएंगे हम स्वर्ग सा सूख आपको न राजा सा ।
झेलना पड़ेगा आपको कष्ट सदा मिलेगा बस निराशा।।
समझने के काबिल नहीं हम आपकी  स्नेह बंधन सी भाषा।।

होंगे मिलन न सुनो साधिके न भटको आगा पच्छा।
पिता वचन पालन करने को आए हैं जंगल झखा।।
हम बालक छोटे कुमार वनवासी आप हैं पूर्ण परिपक्का।।
इस निर्जन झाड़ जंगल वन में उपवन कुटिया में ।
फिर आपने कब कैसे और कौन सा स्वाद है चखा।।

जो हमें पाने की खातिर आप इतनी बेताब हैं।
प्रेम पिपासी सुकुमारी जैसे एक खुली किताब हैं ।
हृदय में बेचैन सी उठती लहर आपकी बेहिसाब हैं।
कोई और राजकुमार तलासो राक्षसी कूल कन्या 
आप तो ख़ुद ही बहुत सुंदर लाजवाब हैं।
किसी और राज्य की राजकुमार  की हसीन खुशी ख्याब हैं।।

आप महाज्ञानी महाप्रतापि लंकेश की बहिनी।
हम तुक्ष वनवासी की फिर कैसे बनेंगी संगिनी ।।
राम लखन को त्याग दो करो न कोई मोह दामिनी।।
हों जायेंगे मोहित आपपर कितने योद्धा हे वीर योगिनी।।
 पाओ न बलपूर्बक करो न कोई क्रोध हे क्रोधिनी।।

आपकी चाहत में बहुत महावीर होंगे आतूर।
हे लंका की राजकुमारी विद्वान गुणी बड़ी चातुर।।
माया तपस्या छल बल से बहुत ही होंगे भरपूर।।
महापंडित या यथा रघुवंशी क्षत्रिय धनुधारी प्रक्रमी।
चुनो कोई राजदरबारी शौहर b बली नायक ठाकुर।।

भले बन जाती आप हमारी भीं कोई मित्र सखा।
आपकी परिणय निवेदन से दुख रहा हैं माथा।।
आप भीं बूझो हमारी कष्ट दुर्दिन कथा व्यथा।।
मैं आजीवन वचनबद्ध धनुधारि प्यारी पति सच्चा।
क्षमा करें देवी अब मैं कितना गावूं अपनी प्रेम गाथा।।

मैं हूं राम दशरथ नन्दन पूर्व सूत्र सिया हूं ।
प्राणों के प्यारे आंखों के तारे सीता के पिया हूं।।
छोटे अनुज लखन के पास जाओ प्रिए।।
मैं तो आपके कछु योग्य नहीं बार बार न अब हमे सताओ प्रिए।।
मैं अग्रज राम का भक्त सेवक दास हूं देवी।
जाओ राम भईया के पास हुस्न वहीं दिखाओ प्रिय।

मेरे प्रेम के बीच मे जो प्राणी आए उसे मैं खा जाउंगी।
दैत्य कुल की नारी वारी मैं कच्चे ही चाबा जाऊंगी।।
देखो वीर वात्स्व उठो लक्ष्मण भाभी के प्राण संकट में हैं।
रुको प्यारी झुको सुरपनाखा लक्ष्मण रेखा न पार करो 
हैं विनती विनय विवश में सीता मां पे अत्याचार न करो।
वरना आपको अपना सुन्दरतम  रूप गंवाना होगा।
टेढ़ी चाल चलो न सुनो नाक सबसे छुपाना होगा।।

प्यार में कपट छल होता नहीं पाना हैं तो पुकार करो।
किसी दिलवर आशिक का सच्चे मन से दीदार करो ।।
न किसी का तिरस्कार करो प्यार करो बस प्यार करो।।
चाहें सोलह श्रृंगार करो इंतजार करो ऐतवार करो।।
विद्यार्थी रूप मनुहार करो प्रकाश प्रेम आंखें चार करो।।

स्वरचित:- प्रकाश विद्यार्थी
               भोजपुर बिहार

©Prakash Vidyarthi
  #Tulips #kavita #poem✍🧡🧡💛 #Poet #गीत

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Prakash Vidyarthi

White "कपटी मानव अबला नारी"
::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::

ए मूर्ख मानव तेरा कितना हैं बल।
क्या सीखा हैं तूने बस करना छल।।

जानवर से भीं बद्तर हैं  तेरी अकल।
बनकर दुशासन करता हैं जुल्म कतल।।

ये क्या हों गया है  दुनियां को आजकल।
चेहरे पे अमृत का मुखौटा मन में भरा गरल।।

लुटते हों मासूमों की इज़्ज़त आबरू ज़ालिम।
बेरहम कातिल दुष्ट निर्लज कैसी है तेरी तालीम।।

समझते हों स्त्री को तुम सिर्फ खिलौना।
उसकी मासूमियत को असहाय बौना।।

कैसे मसल दिया तू एक खिलती कली फूल को।
कैसे कुचल दिया तूने मानवता के सिद्धांत रूल को।।

तनिक लज्जा नहीं आई तुझे उसकी चीख पर।
पाव नहीं डगमाए तेरे उस अबला के भीख पर।।

कहते हैं लोग की जमाना गया हैं बदल।।
हैं आजाद हिंद स्वतंत्र भारत देश सफल।।

फिर कैसा हैं ये राक्षसो का कपटी शकल।
कहां करते हैं ये नियत के खोट नकल।।

कैसे पहचानें कोई किसी दुरात्मा पापी को।
मुख मे राम बगल में छूरी वाले अपराधी को।।

बिनकसूर तड़पकर दम तोड़ी होंगी।
अख़बार की सुर्खियां शर्मसार हो गई।।

मां की दुलारी पापा की प्यारी परी। 
बेरहम हैवानियत की शिकार हों गईं।।

कहते हैं डॉक्टर होता हैं भगवान का रूप।
फिर कैसे कोई लिया अपने भगवान को ही लूट।।

अरे ओ दानव पुरूष कहां गईं तेरी पुरुषार्थ।
निरर्थक साबित हैं तेरी भ्रष्ट बुद्धि पार्थ कृतार्थ।।

काश बनकर स्त्री कभी स्त्री का दुःख 
दर्द तुम भी तन मन में महसूस करते।

तो ऐसी घिनौनी दुसाहस हरकत कभी 
तुम दुष्ट प्रवृत्ति मनहूस मनुष्य न करते।।

सदियों से बहु बहन बेटियां रही हैं सीधी चुप।
अरे अब तो देखने दो उसे जुल्मी जग कुरूप।।

लेने दो उसे खुली सांसे सूरज की उर्जवान धूप।
यहीं तो हैं सृष्टि प्रकृति ब्रह्मांड सुंदरी स्वरूप।।

स्वरचित:- प्रकाश विद्यार्थी
                भोजपुर बिहार

©Prakash Vidyarthi
  #happy_independence_day 
#poem #kavita
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Prakash Vidyarthi

White "मन की आवाज़"
 अथवा :- गंगा सी दीवानी कीचड़ सा आंवारा 

प्यार की आदत उसने लगाई 
और आदि मैं हों गया।
उसके मन की आवाज का 
बिग फैन विनय हों गया।।

वो गंगा सी दीवानी स्वच्छ 
निर्मल नीर बहती जलधारा।
मुझ कीचड़ सा आवांरा दीवाना   
संग मेल पर संशय हों गया।।

मानो वो अमृत की पावन प्रीत  
प्याली मैं विष का मामूली ।
टुकड़ा का एक दूजे में लगा   
रासायनिक विलय हों गया।।

दोस्ती उससे ऐसे हुई जैसे सुर  
 ताल संगीत एक लय हों गया।
कहीं रूठ न जाए मेरी छोटी मोटी । 
गलतियों से थोडा-सा भय हों गया।।

सोचा था कभी फुर्सत में सुनाऊंगा  
उसे अपनी दास्तान,गज़ल,गीत,।
कविता कहानी का दर्द भरा इंतेहां 
अग्नि परीक्षा प्यारा परिणाम।।

पर दिल थम सा गया ,सुना जब  
उसका रिश्ता कही तय हों गया।
मेरे गुमशुदे ईश्क प्रेम मोहब्बत के  
अन्तिम दृश्य का समय हों गया ।।

प्यार के बाजारों में उसके सोने का   
दिल किसी क्रेता के नाम बय हो गया।
 रजिस्ट्री यानी बिक्री जोर बेईमानी 
 तिलक दहेज़ भीं सब तय हों गया।।

दावत दिया था भोज का उसने 
अपनी सजी महफिल में मुझे।
पर मै शर्मिन्दा हों गया खुदको।  
हारते हुए गिरते हुए देखकर।।

बाजीगर मैं बना बाजीगर पर कोई।  
और उसका विजय हों गया।।
मूंह मीठा करने ही वाला था की  ।
अचानक मुझे उल्टी कय हों गया।।

डॉक्टर ने कहा ठीक हों जायेगा ये
धीरे धीरे दिल का रोगी पागल प्रेमी।।
इसका धड़कन बड़ा नाज़ुक हैं।  
कोमल हृदय सह मासूम हैं ।।

इसे प्यार की खुराक की जरूरत हैं।
क्योंकि इसके दिल जान मोहब्बत ।। 
प्रेमिका सपना का छय हों गया 
जैसे दिल का कोई पय हों गया।।

शमा बांधकर महफिल में रंग जमाकर 
गाकर प्रेमगीत विद्यार्थी रो गया ।
कलप तड़पकर छुपा लिया अपने गम  
प्रकाश शिक्षा मन्दिर में कहीं खो गया।।

स्वरचित:- प्रकाश विद्यार्थी
                भोजपुर बिहार

©Prakash Vidyarthi
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