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Sunil itawadiya
समस्या का समाधान इस बात पर निर्भर करता है कि, हमारा सलाहकार कौन है😊😊 यह बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि दुर्योधन शकुनि से सलाह लेता था और अर्जुन श्रीकृष्ण से #कृष्णार्पण #दुर्योधन #मामा #love #life #lovequotes #motivation #mohabbat
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read moreAjay Amitabh Suman
.............. ©Ajay Amitabh Suman दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-39 #महाभारत #दुर्योधन #अश्वथामा # वैष्णवास्त्र #Mahabharata #Duryodhan #Asvatthama #Vaishnavastra ===== दुर्योधन को गुरु द्रोणाचार्य की मृत्यु के उपरांत घटित होने वाली वो सारी घटनाएं याद आने लगती हैं कि कैसे अश्वत्थामा ने कुपित होकर पांडवों पर वैष्णवास्त्र का प्रयोग कर दिया था। वैष्णवास्त्र के सामने प्रतिरोध करने पर वो अस्त्र और भयंकर हो जाता और प्राण ले लेता। उससे बचने का एक हीं उपाय था कि उसके सामने झुक जाया जाए, इससे वो शस्त्र शांत होकर लौट जाता। केशव के समझाने पर
दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-39 #महाभारत #दुर्योधन #अश्वथामा # वैष्णवास्त्र #Mahabharata #Duryodhan #Asvatthama #Vaishnavastra ===== दुर्योधन को गुरु द्रोणाचार्य की मृत्यु के उपरांत घटित होने वाली वो सारी घटनाएं याद आने लगती हैं कि कैसे अश्वत्थामा ने कुपित होकर पांडवों पर वैष्णवास्त्र का प्रयोग कर दिया था। वैष्णवास्त्र के सामने प्रतिरोध करने पर वो अस्त्र और भयंकर हो जाता और प्राण ले लेता। उससे बचने का एक हीं उपाय था कि उसके सामने झुक जाया जाए, इससे वो शस्त्र शांत होकर लौट जाता। केशव के समझाने पर
read moreप्रकाश झा प्रचंड
केवल मैं दोषी न था धर्मराज भी धर्म भूल गए जुए में द्रौपदी पर तो वो खुद ही दांव खेल गए सच ये है धर्मराज को खुद नारी का मान नहीं मैं तो दुर्योधन हूँ मुझे धर्म-अधर्म का ज्ञान नहीं अंधे का बेटा अंधा कह रखा उसने मान नहीं द्रौपदी ने धृतराष्ट्र का किया कभी सम्मान नहीं अपमान को सहन करता इतना मैं महान नहीं मैं तो दुर्योधन हूँ मुझे धर्म-अधर्म का ज्ञान नहीं मुझसे पांडव जीत जाते इतना था आसान नहीं विजित मैं होता गर होता कृष्ण का वरदान नहीं पांडवों ने भी युद्धनीति का रखा कभी मान नहीं मैं तो दुर्योधन हूँ मुझे धर्म-अधर्म का ज्ञान नहीं मैं सत्ता का अधिकारी करता क्यूँ अभिमान नहीं रणक्षेत्र से भाग जाना होता वीरों का काम नहीं छल से युद्ध जीत कर होता कोई महान नहीं मैं तो दुर्योधन हूँ मुझे धर्म-अधर्म का ज्ञान नहीं ©प्रकाश झा प्रचंड #दुर्योधन
Ajay Amitabh Suman
................. ©Ajay Amitabh Suman #अश्वत्थामा,#द्रोणवध,#महाभारत,#द्रोणाचार्य, #दुर्योधन,#Ashvatthama,#Mahabharata,#Duryodhan,#Mythology दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-37 =============== महाभारत युद्ध के समय द्रोणाचार्य की उम्र लगभग चार सौ साल की थी। उनका वर्ण श्यामल था, किंतु सर से कानों तक छूते दुग्ध की भाँति श्वेत केश उनके मुख मंडल की शोभा बढ़ाते थे। अति वृद्ध होने के बावजूद वो युद्ध में सोलह साल के तरुण की भांति हीं रण कौशल का प्रदर्शन कर रहे थे। गुरु द्रोण का पराक्रम ऐसा था कि उनका वध ठीक वैसे हीं असंभव माना जा रहा था जैसे कि सूर
#अश्वत्थामा,#द्रोणवध,#महाभारत,#द्रोणाचार्य, #दुर्योधन,#Ashvatthama,#Mahabharata,#Duryodhan,Mythology दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-37 =============== महाभारत युद्ध के समय द्रोणाचार्य की उम्र लगभग चार सौ साल की थी। उनका वर्ण श्यामल था, किंतु सर से कानों तक छूते दुग्ध की भाँति श्वेत केश उनके मुख मंडल की शोभा बढ़ाते थे। अति वृद्ध होने के बावजूद वो युद्ध में सोलह साल के तरुण की भांति हीं रण कौशल का प्रदर्शन कर रहे थे। गुरु द्रोण का पराक्रम ऐसा था कि उनका वध ठीक वैसे हीं असंभव माना जा रहा था जैसे कि सूर
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............ ©Ajay Amitabh Suman दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-36 #अश्वत्थामा,#द्रोणवध,#महाभारत, #दुर्योधन #पौराणिक,#Ashvatthama, #Mahabharata,#Duryodhan,#Mythology, #Epic द्रोण को सहसा अपने पुत्र अश्वत्थामा की मृत्यु के समाचार पर विश्वास नहीं हुआ। परंतु ये समाचार जब उन्होंने धर्मराज के मुख से सुना तब संदेह का कोई कारण नहीं बचा। इस समाचार को सुनकर गुरु द्रोणाचार्य के मन में इस संसार के प्रति विरक्ति पैदा हो गई। उनके लिये जीत और हार का कोई मतलब नहीं रह गया था। इस निराशा भरी विरक्त अवस्था में गुरु द्रोणाचार्य ने अपने अस्त्रों और शस
दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-36 #अश्वत्थामा,#द्रोणवध,#महाभारत, #दुर्योधन #पौराणिक,#Ashvatthama, #Mahabharata,#Duryodhan,Mythology, #Epic द्रोण को सहसा अपने पुत्र अश्वत्थामा की मृत्यु के समाचार पर विश्वास नहीं हुआ। परंतु ये समाचार जब उन्होंने धर्मराज के मुख से सुना तब संदेह का कोई कारण नहीं बचा। इस समाचार को सुनकर गुरु द्रोणाचार्य के मन में इस संसार के प्रति विरक्ति पैदा हो गई। उनके लिये जीत और हार का कोई मतलब नहीं रह गया था। इस निराशा भरी विरक्त अवस्था में गुरु द्रोणाचार्य ने अपने अस्त्रों और शस
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दुर्योधन कब मिट पाया:भाग:32 #वीरत्व #पुरुषार्थ #पराक्रम #वीरत्व #दुर्योधन #अश्वत्थामा #कृतवर्मा #महाभारत Poetry,
read moreAjay Amitabh Suman
.................... ©Ajay Amitabh Suman #वीरत्व #पुरुषार्थ #पराक्रम #वीरत्व #दुर्योधन #अश्वत्थामा #कृतवर्मा #महाभारत #Poetry #Kavita इस क्षणभंगुर संसार में जो नर निज पराक्रम की गाथा रच जन मानस के पटल पर अपनी अमिट छाप छोड़ जाता है उसी का जीवन सफल होता है।अश्वत्थामा का अद्भुत पराक्रम देखकर कृतवर्मा और कृपाचार्य भी मरने मारने का निश्चय लेकर आगे बढ़ चले।
#वीरत्व #पुरुषार्थ #पराक्रम #वीरत्व #दुर्योधन #अश्वत्थामा #कृतवर्मा #महाभारत Poetry #kavita इस क्षणभंगुर संसार में जो नर निज पराक्रम की गाथा रच जन मानस के पटल पर अपनी अमिट छाप छोड़ जाता है उसी का जीवन सफल होता है।अश्वत्थामा का अद्भुत पराक्रम देखकर कृतवर्मा और कृपाचार्य भी मरने मारने का निश्चय लेकर आगे बढ़ चले।
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. ..................... ©Ajay Amitabh Suman #कविता #दुर्योधन #महाभारत #अश्वत्थामा #Poetry #Kavita #Duryodhan #Ashvtthama #Mahabharata #Mahakal दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-31 जिद चाहे सही हो या गलत यदि उसमें अश्वत्थामा जैसा समर्पण हो तो उसे पूर्ण होने से कोई रोक नहीं सकता, यहाँ तक कि महादेव भी नहीं। जब पांडव पक्ष के बचे हुए योद्धाओं की रक्षा कर रहे जटाधर को अश्वत्थामा ने यज्ञाग्नि में अपना सिर काटकर हवनकुंड में अर्पित कर दिया तब उनको भी अश्वत्थामा के हठ की आगे झुकना पड़ा और पांडव पक्ष के बाकी बचे हुए योद्धाओं को अश्वत्थामा के हाथों मृत्यु
#कविता #दुर्योधन #महाभारत #अश्वत्थामा #Poetry #kavita #Duryodhan #Ashvtthama #Mahabharata #mahakal दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-31 जिद चाहे सही हो या गलत यदि उसमें अश्वत्थामा जैसा समर्पण हो तो उसे पूर्ण होने से कोई रोक नहीं सकता, यहाँ तक कि महादेव भी नहीं। जब पांडव पक्ष के बचे हुए योद्धाओं की रक्षा कर रहे जटाधर को अश्वत्थामा ने यज्ञाग्नि में अपना सिर काटकर हवनकुंड में अर्पित कर दिया तब उनको भी अश्वत्थामा के हठ की आगे झुकना पड़ा और पांडव पक्ष के बाकी बचे हुए योद्धाओं को अश्वत्थामा के हाथों मृत्यु
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========================== मेरे भुज बल की शक्ति क्या दुर्योधन ने ना देखा? कृपाचार्य की शक्ति का कैसे कर सकते अनदेखा? दुःख भी होता था हमको और किंचित इर्ष्या होती थी, मानवोचित विष अग्नि उर में जलती थी बुझती थी। =========================== युद्ध लड़ा था जो दुर्योधन के हित में था प्रतिफल क्या? बीज चने के भुने हुए थे क्षेत्र परिश्रम ऋतु फल क्या? शायद मुझसे भूल हुई जो ऐसा कटु फल पाता था, या विवेक में कमी रही थी कंटक दुख पल पाता था। =========================== या समय का रचा हुआ लगता था पूर्व निर्धारित खेल, या मेरे प्रारब्ध कर्म का दुचित वक्त प्रवाहित मेल। या स्वीकार करूँ दुर्योधन का मतिभ्रम था ये कहकर, या दुर्भाग्य हुआ प्रस्फुटण आज देख स्वर्णिम अवसर। =========================== मन में शंका के बादल जो उमड़ घुमड़ कर आते थे, शेष बची थी जो कुछ प्रज्ञा धुंध घने कर जाते थे । क्यों कर कान्हा ने मुझको दुर्योधन के साथ किया? या नाहक का हीं था भ्रम ना केशव ने साथ दिया? ========================= या गिरिधर की कोई लीला थी शायद उपाय भला, या अल्प बुद्धि अभिमानी पे माया का जाल फला। अविवेक नयनों पे इतना सत्य दृष्टि ना फलता था, या मैंने स्वकर्म रचे जो उसका हीं फल पलता था? ========================== या दुर्बुद्धि फलित हुई थी ना इतना सम्मान किया, मृतशैया पर मित्र पड़ा था ना इतना भी ध्यान दिया। क्या सोचकर मृतगामी दुर्योधन के विरुद्ध पड़ा , निज मन चितवन घने द्वंद्व में मैं मेरे प्रतिरुद्ध अड़ा। ========================== अजय अमिताभ सुमन : सर्वाधिकार सुरक्षित ©Ajay Amitabh Suman #कविता #दुर्योधन #अश्वत्थामा #महाभारत #कौरव #पांडव #कृतवर्मा #कृपाचार्य ===================== मन की प्रकृति बड़ी विचित्र है। किसी भी छोटी सी समस्या का समाधान न मिलने पर उसको बहुत बढ़ा चढ़ा कर देखने लगता है। यदि निदान नहीं मिलता है तो एक बिगड़ैल घोड़े की तरह मन ऐसी ऐसी दिशाओं में भटकने लगता है जिसका समस्या से कोई लेना देना नहीं होता। कृतवर्मा को भी सच्चाई नहीं दिख रही थी। वो कभी दुर्योधन को , कभी कृष्ण को दोष देते तो कभी प्रारब्ध कर्म और नियति का खेल समझकर अपने प्रश्नों के हल निकालने की कोशिश क
#कविता #दुर्योधन #अश्वत्थामा #महाभारत #कौरव #पांडव #कृतवर्मा #कृपाचार्य ===================== मन की प्रकृति बड़ी विचित्र है। किसी भी छोटी सी समस्या का समाधान न मिलने पर उसको बहुत बढ़ा चढ़ा कर देखने लगता है। यदि निदान नहीं मिलता है तो एक बिगड़ैल घोड़े की तरह मन ऐसी ऐसी दिशाओं में भटकने लगता है जिसका समस्या से कोई लेना देना नहीं होता। कृतवर्मा को भी सच्चाई नहीं दिख रही थी। वो कभी दुर्योधन को , कभी कृष्ण को दोष देते तो कभी प्रारब्ध कर्म और नियति का खेल समझकर अपने प्रश्नों के हल निकालने की कोशिश क
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====================== वक्त लगा था अल्प बुद्धि के कुछ तो जागृत होने में, महादेव से महा काल से कुछ तो परीचित होने में। सोंच पड़े थे हम सारे उस प्रण का रक्षण कैसे हो ? आन पड़ी थी विकट विघ्न उसका उपप्रेक्षण कैसे हो? ====================== मन में शंका के बादल सब उमड़ घुमड़ के आते थे , साहस जो भी बचा हुआ था सब के सब खो जाते थे। जिनके रक्षक महादेव रण में फिर भंजन हो कैसे? जयलक्ष्मी की नयनों का आखिर अभिरंजन हो कैसे? ====================== वचन दिए थे जो मित्र को निर्वाहन हो पाएगा क्या? कृतवर्मा अब तुम्हीं कहो हमसे ये हो पाएगा क्या? किस बल से महा शिव से लड़ने का साहस लाएँ? वचन दिया जो दुर्योधन को संरक्षण हम कर पाएं? ===================== मन जो भी भाव निराशा के क्षण किंचित आये थे , कृतवर्मा भी हुए निरुत्तर शिव संकट बन आये थे। अश्वत्थामा हम दोनों से युद्ध मंत्रणा करता था , उस क्षण जैसे भी संभव था हममें साहस भरता था । ====================== बोला देखों पर्वत आये तो चींटी करती है क्या ? छोटे छोटे पग उसके पर वो पर्वत से डरती क्या ? जो संभव हो सकता उससे वो पुरुषार्थ रचाती है , छोटे हीं पग उसके पर पर्वत मर्दन कर जाती है। ====================== अजय अमिताभ सुमन: सर्वाधिकार सुरक्षि ©Ajay Amitabh Suman #कविता #दुर्योधन #अश्वत्थामा #महादेव #महाभारत #कौरव #पांडव #कृतवर्मा #कृपाचार्य इस दीर्घ कविता के पिछले भाग अर्थात् सोलहवें भाग में दिखाया गया जब कृपाचार्य , कृतवर्मा और अश्वत्थामा पांडव पक्ष के बाकी बचे हुए जीवित योद्धाओं का संहार करने का प्रण लेकर पांडवों के शिविर के पास पहुँचे तो वहाँ उन्हें एक विकराल पुरुष पांडव पक्ष के योद्धाओं की रक्षा करते हुए दिखाई पड़ा। उस महाकाल सदृश पुरुष की उपस्थिति मात्र हीं कृपाचार्य , कृतवर्मा और अश्वत्थामा के मन में भय का संचार उत्पन्न करने के लिए पर्याप्त
#कविता #दुर्योधन #अश्वत्थामा #महादेव #महाभारत #कौरव #पांडव #कृतवर्मा #कृपाचार्य इस दीर्घ कविता के पिछले भाग अर्थात् सोलहवें भाग में दिखाया गया जब कृपाचार्य , कृतवर्मा और अश्वत्थामा पांडव पक्ष के बाकी बचे हुए जीवित योद्धाओं का संहार करने का प्रण लेकर पांडवों के शिविर के पास पहुँचे तो वहाँ उन्हें एक विकराल पुरुष पांडव पक्ष के योद्धाओं की रक्षा करते हुए दिखाई पड़ा। उस महाकाल सदृश पुरुष की उपस्थिति मात्र हीं कृपाचार्य , कृतवर्मा और अश्वत्थामा के मन में भय का संचार उत्पन्न करने के लिए पर्याप्त
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