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DINESH SHARMA

#एक_मिजाहिया_कता
कैस  के  चेले  है सभी, घूमे है बनके फरहाद
चार  अशआर  वाले  भी  बन  गए है उस्ताद
फर्जी   बातें  है  सब  हुस्नो  इश्क़  की तमाम
और अठन्नी में मिले है अब शाइरान-ए-कराम
©दिनेश शर्मा
01.10.2019, 11:13 AM #अठन्नी #शायर #कैस #फरहाद

रामेश्वर मिश्र

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....दिन वो भी हुआ करते थे,
दोस्त जब हिसाबो के कच्चे हुआ करते थे,
अठन्नी-अठन्नी मे बिका करती थी खुशियाँ,
और किताबो मे गुलाब मिला करते थे
दिन वो भी हुआ करते थे.....

-----रामेश्वर मिश्र

Ashwani Dixit

#mela #dixitg

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बचपन और मेला  दादा जी का हाथ पकड़कर, मेले में जाने की याद
चाट पकौड़ी ठंडी कुल्फी, बार बार खाने की याद

चार अठन्नी हुई खर्च, खुशी खुशी फिर घर आ जाना
बड़े बड़े गुब्बारे लाना, माल मिठाई फिर खा जाना

जेब रिक्त थी पर, जेबखर्च से हम खुशियां पा जाते थे
जैसे तैसे मान मनाकर, सबसे चार अठन्नी पाते थे

अब जेबों में पैसे हैं पर, खुशियों की थमती है डोर
न बचपन सी गुजरी हैं शामें, न बचपन सी होती भोर #mela #dixitg

@arhan_haider

#Diwali #Nojoto #nojotohindi बचपन की दिवाली पर लिखी यह पुरानी कविता है।। अब चूने में नील मिलाकर पुताई का जमाना नहीं रहा। चवन्नी, अठन्नी का जमाना भी नहीं रहा। फिर भी यह कविता आप सब के लिए पेश है-- हफ्तों पहले से साफ़-सफाई में जुट जाते हैं चूने के कनिस्तर में थोड़ी नील मिलाते हैं अलमारी खिसका खोयी चीज़ वापस पाते हैं दोछत्ती का कबाड़ बेच कुछ पैसे कमाते हैं

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अब चूने में नील मिलाकर पुताई का जमाना नहीं रहा। चवन्नी,
 अठन्नी का जमाना भी नहीं रहा। फिर भी यह कविता आप सब के लिए पेश है--
हफ्तों पहले से साफ़-सफाई में जुट जाते हैं
चूने के कनिस्तर में थोड़ी नील मिलाते हैं
अलमारी खिसका खोयी चीज़ वापस पाते हैं
दोछत्ती का कबाड़ बेच कुछ पैसे कमाते हैं 
चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ....
दौड़-भाग के घर का हर सामान लाते हैं 
चवन्नी -अठन्नी पटाखों के लिए बचाते हैं
सजी बाज़ार की रौनक देखने जाते हैं
सिर्फ दाम पूछने के लिए चीजों को उठाते हैं
चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ....
बिजली की झालर छत से लटकाते हैं
कुछ में मास्टर बल्ब भी लगाते हैं
टेस्टर लिए पूरे इलेक्ट्रीशियन बन जाते हैं
दो-चार बिजली के झटके भी खाते हैं
चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ....
दूर थोक की दुकान से पटाखे लाते हैमुर्गा ब्रांड हर पैकेट में खोजते
 जाते है दो दिन तक उन्हें छत की धूप में सुखाते हैं बार-बार बस गिनते जाते है
चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ....
धनतेरस के दिन कटोरदान लाते हैछत के जंगले से कंडील लटकाते हैं
मिठाई के ऊपर लगे काजू-बादाम खाते हैं प्रसाद की थाली पड़ोस में देने जाते हैं
चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ....
अन्नकूट के लिए सब्जियों का ढेर लगाते है भैया-दूज के दिन दीदी से आशीर्वाद पाते हैं 
चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ....
दिवाली बीत जाने पे दुखी हो जाते हैं  कुछ न फूटे पटाखों का बारूद जलाते हैं 
घर की छत पे दगे हुए राकेट पाते हैं 
बुझे दीयों को मुंडेर से हटाते हैं  चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ....
बूढ़े माँ-बाप का एकाकीपन मिटाते हैं 
वहीँ पुरानी रौनक फिर से लाते हैं 
सामान से नहीं, समय देकर सम्मान जताते हैं
उनके पुराने सुने किस्से फिर से सुनते जाते हैं 
चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ....🙏 #diwali #nojoto #nojotohindi  बचपन की दिवाली पर  लिखी यह पुरानी कविता है।। 

अब चूने में नील मिलाकर पुताई का जमाना नहीं रहा। चवन्नी, अठन्नी का जमाना भी नहीं रहा। फिर भी यह कविता आप सब के लिए पेश है--

हफ्तों पहले से साफ़-सफाई में जुट जाते हैं
चूने के कनिस्तर में थोड़ी नील मिलाते हैं
अलमारी खिसका खोयी चीज़ वापस पाते हैं
दोछत्ती का कबाड़ बेच कुछ पैसे कमाते हैं

Vineet Shukla

*कभी हम भी.. बहुत अमीर हुआ करते थे* *हमारे भी जहाज.. चला करते थे।* *हवा में.. भी।* *पानी में.. भी।* *दो दुर्घटनाएं हुई।* *सब कुछ.. ख़त्म हो गया।*

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*कभी हम भी.. बहुत अमीर हुआ करते थे* *हमारे भी जहाज.. चला करते थे।*

*हवा में.. भी।*
*पानी में.. भी।*

*दो दुर्घटनाएं हुई।*
*सब कुछ.. ख़त्म हो गया।*

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