बचपन और मेला दादा जी का हाथ पकड़कर, मेले में जाने की याद चाट पकौड़ी ठंडी कुल्फी, बार बार खाने की याद चार अठन्नी हुई खर्च, खुशी खुशी फिर घर आ जाना बड़े बड़े गुब्बारे लाना, माल मिठाई फिर खा जाना जेब रिक्त थी पर, जेबखर्च से हम खुशियां पा जाते थे जैसे तैसे मान मनाकर, सबसे चार अठन्नी पाते थे अब जेबों में पैसे हैं पर, खुशियों की थमती है डोर न बचपन सी गुजरी हैं शामें, न बचपन सी होती भोर #mela #dixitg