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Vishal Dixit
फिराक सबको है यहां कुछ कर जाने की, किसी को जताने की तो किसी को पाने की.. आलम बयां करता है खुद अपने जमाने की, लाख बुरा करता रहूं पर सहमति हो आजमाने की.. बेशक न पाया मैंनें रूतबा और सौहरत अभी, गर हिम्मत न रखता हूं किसी हमउम्र को दबाने की.. शहर चुप है लाचार देखकर भी मुझे , पर लालसा मुझमें भी है कुछ अलग कर जाने की.. क्योंकि फिराक सबको है यहां कुछ कर जाने की.. ज्यादा कुछ नहीं हूं मैं बस थोड़े से वक्त का वक्त हूं।। #yqbaba #yqdidi #poetry #poem #igwritersclub #inspirationalquotes #dixitg
ज्यादा कुछ नहीं हूं मैं बस थोड़े से वक्त का वक्त हूं।। #yqbaba #yqdidi poetry #poem #igwritersclub #inspirationalquotes #dixitg
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गर नफरत ही करनी थी तो जरा सा इश्क मिला देतीं यकीनन असर बेमिसाल होता।। मैं क्या बयां करूं दिलों की दास्तान , न खुद काबिल हूं न होने दिया। #yqbaba #yqdidi #dilkidiaries #nafrat #igwriters #writersofinstagram #instawriters #dixitg
मैं क्या बयां करूं दिलों की दास्तान , न खुद काबिल हूं न होने दिया। #yqbaba #yqdidi #dilkidiaries #Nafrat #igwriters #writersofinstagram #instawriters #dixitg
read moreAshwani Dixit
कुछ ख्वाबों की गठरी टांगे, कंधों पर हैं बोझ पुराने। चला कारवां जीवन का फिर, उम्मीदों की तलब बुझाने। - अश्वनी दीक्षित #dixitg जीवन का कारवां
#dixitg जीवन का कारवां
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घर का रास्ता वो पगडंडी, वो हरियाली ओस की बूंदें, चारदीवारी मित्र-मंडली, वही बवाल बाग आम के, नदिया ताल गांव का रास्ता, मुझे पुकारे क्यों सूने हो गए, ये घर-द्वारे? #Family #dixitg 'घर का रास्ता'
Ashwani Dixit
पृथक पथों पर चलते चलते, यूँ पथराई आंखें सी हैं। मन मयूर ज्यूँ कानन गुजरे, यूँ बिना पुष्प साखें सी हैं। - अश्वनी दीक्षित #dixitg
Ashwani Dixit
शर शरव्य तक जाना चाहे, अक्षय है तूणीर तुमुल ध्वनि आरंभ हो गई, सजे हुए रणधीर सांसों में ज्यूँ नूपुर बजते, हृदय धधकती ज्वालायें रणचण्डी खप्पर ले आई, सजे बाल और बालाएं स्वर्णिम नभ में सजी पताका, समीर बहाता स्पंदन पानी में ज्यूँ लहरें बहती, बहते हैं धरती में कंपन युद्ध यदि है नियति हमारी, तो विजय हमारी मीत जीवन मरण तो बना रहेगा, हम नहीं हुए भयभीत - अश्वनी दीक्षित #dixitg #War #life
Ashwani Dixit
काँटों के पड़खच्चे उड़ गए, चट्टानें हो गई चकनाचूर। उन लोगों की सिली जुबानें, जो कहते थे मंजिल दूर।। विजयपर्व ये न साधारण, त्याग तपस्या तोलूँगा मैं। अब तक सबकी सुनी थी बातें, आज मगर अब बोलूंगा मैं।। - अश्वनी दीक्षित #dixitg #motivation #goal
Ashwani Dixit
गुलाब किन्हीं बन्द किताबों में, कुछ ख्वाब रखे थे, जबाब रखे थे। कैद अभी तक थी खुशबू, जिन पन्नों में तुमने गुलाब रखे थे।। -- अश्वनी दीक्षित #dixitg पूरी कविता पढ़िए : https://dixitg.wordpress.com/2015/08/29/%e0%a4%9c%e0%a4%bf%e0%a4%a8-%e0%a4%aa%e0%a4%a8%e0%a5%8d%e0%a4%a8%e0%a5%8b%e0%a4%82-%e0%a4%ae%e0%a5%87%e0%a4%82-%e0%a4%a4%e0%a5%81%e0%a4%ae%e0%a4%a8%e0%a5%87-%e0%a4%97%e0%a5%81%e0%a4%b2%e0%a4%be/
#dixitg पूरी कविता पढ़िए : https://dixitg.wordpress.com/2015/08/29/%e0%a4%9c%e0%a4%bf%e0%a4%a8-%e0%a4%aa%e0%a4%a8%e0%a5%8d%e0%a4%a8%e0%a5%8b%e0%a4%82-%e0%a4%ae%e0%a5%87%e0%a4%82-%e0%a4%a4%e0%a5%81%e0%a4%ae%e0%a4%a8%e0%a5%87-%e0%a4%97%e0%a5%81%e0%a4%b2%e0%a4%be/
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पैरों की पायल समाज की बेड़ियां, केवल औरत के लिए, उन्हें पायलों का उपमान दे दिया गया। उनकी झनक, उनकी खनक, उनकी मुस्कान, यूँ पराधीनता को एक नाम दे दिया गया।। कभी पायलों की झंकार में होती है घुटती हंसी, कभी चारदीवारी में कैद हो जाते हैं सपने। ये जंजीरें ये अहसास दिलाने के लिए हैं कि, सब तुम्हारे अपने होकर भी नहीं हैं अपने।। पैरों की बेड़ियां #dixitg
पैरों की बेड़ियां #dixitg
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