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अदनासा-
White आस-पास भावनाओं का भटकाव बहुत है इसलिए आहत होने की बढ़ी है संभावनाएं अब तो अक्षर आहत का पढ़ना ही बहुत है शीघ्र आहत होती है हमारी दुर्बल भावनाएं ©अदनासा- #हिंदी #भावनाएं #संभावनाएं #शीघ्र #आहत #दुर्बल #अक्षर #पढ़ने #Instagram #अदनासा
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read moreCalmKrishna
.................... ©CalmKrishna धैर्य। #प्रतिक्रिया #समझ #दुर्बल #मनुष्य #लक्षण
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read morewriter anil lodhi
यदि आपका जीवन सरलता और सहजता से व्यतीत हो रहा हो, तो चिंतित रहना। क्योंकि सरलता और सहजता में व्यतीत होने वाली जिंदगी इंसान को दुर्बल बना देती हैं। ©anil foujdar #सहजता #सरलता #दुर्बल #जिंदगी #चिंतित #river
Atul Sharma
*🖋️“सुविचार"🖋️* *📝“23/11/2020”📝* *💫“सोमवार”💫* *प्रत्येक “भाव” के “वेग” की एक “सीमा” होती है जिसे लांघना नहीं चाहिए,* *उसी “सीमा” को सदैव स्मरण रखना चाहिए,* *आप हम कभी-कभी जिनसे “प्रेम” करते है, उनकी सहायता करते-करते हम उन्हें “दुर्बल” बना देते है,* *यह कभी नहीं होना चाहिए* *जिनसे भी आप “प्रेम” करते है* *उनकी “सहायता” किजिए कि वो उनके लिए “प्रेरणा” बन सके* *अन्यथा यह “सहायता” नहीं होगी, यह उनके लिए “शस्त्र” बन जाएगा,* *इसलिए किसी की “हद से ज्यादा” सहायता मत ना करें कि वो ही आपको कोई “नुकसान” पहुंचाए...* *🖋️अतुल शर्मा📝...📚📖* *🖋️“सुविचार"🖋️* *📝“23/11/2020”📝* *💫“सोमवार”💫* #भाव #सीमा
Anil Siwach
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8 ।।श्री हरिः।। 2 – ग्रह-शान्ति 'मनुष्य अपने कर्म का फल तो भोगेगा ही। हम केवल निमित्त हैं उसके कर्म-भोग के और उसमें हमारे लिये खिन्न होने की कोई बात नहीं है।' आकाश में नहीं, देवलोक में ग्रहों के अधिदेवता एकत्र हुए थे। आकाश में केवल आठ ग्रह एकत्र हो सकते हैं। राहु और केतु एक शरीर के ही दो भाग हैं और दोनों अमर हैं। वे एकत्र होकर पुन: एक न हो जायें, इसलिये सृष्टिकर्ता ने उन्हें समानान्तर स्थापित करके समान गति दे दी है। आधिदैवत जगत में भी ग्रह आठ ही एकत्र होते
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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 11 ।।श्री हरिः।। 12 - स्नेह जलता है 'अच्छा तुम आ गये?' माता के इन शब्दों को आप चाहें तो आशीर्वाद कह सकते हैं; किंतु कोई उत्साह नहीं था इनके उच्चारण में। उसने अपनी पीठ की छोटी गठरी एक ओर रखकर माता के चरण छुये और तब थका हुआ एक ओर भूमि पर ही बैठ गया। 'माँ मुझे देखते ही दौड़ पड़ेगी। दोनों हाथों से पकड़कर हृदय से चिपका लेगी। वह रोयेगी और इतने दिनों तक न आने के लिये उलाहने देगी।' वर्षों से पता नहीं क्या-क्या आशाएँ उमंगें, कल्पनाएँ मन में पाले हुए था वह। 'मैं मा
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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 11 ।।श्री हरिः।। 11 - वीरता का लोभ शरद् की सुहावनी ऋतु है। दो दिन से वर्षा नहीं हुई है। पृथ्वी गीली नहीं है; परंतु उसमें नमी है। आकाश में श्वेत कपोतों के समान मेघशिशु वायु के वाहनों पर बैठे दौड़-धूप का खेल खेल रहे हैं। सुनहली धूप उन्हें बार-बार प्रोत्साहित कर जाती है। पृथ्वी ने रंग-बिरंगे पुष्पों से अंकित नीली साड़ी पहन रखी है। पतिंगे के झुण्ड दरारों में से निकल कर आकाश में फैलते जा रहे हैं। आमोद और उत्साह के पीछे मृत्यु के काले भयानक हाथ भी छिपे हैं, इसका
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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 10 ।।श्री हरिः।। 7 – अमोह 'मेरा पुत्र ही सिंहासनासीन हो, यह मोह है वत्स!' आज सातवीं बार कुलपुरोहित समझा रहे थे मद्राधिपति को - 'सम्पूर्ण प्रजा ही भूपति के लिए अपनी संतान है और उसकी सुरक्षा संदिग्ध नहीं रहनी चाहिये।' मद्रनरेळ के कुमार बाल्यकाल सो कुसंग में पड़ चुके थे। वे उग्रस्वभाव के तो थे ही, दुर्व्यसनों ने उन्हें अत्याधिक लोक-अप्रिय बना दिया था। प्रजा चाहती थी कि उत्तराधिकारी कुमार भद्र हों, जो मद्रनरेश के भ्रातृ-पुत्र थे; किंतु पिता की ममता भी दुर्बल क
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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 9 || श्री हरि: || 11 - जिज्ञासु 'प्रकृति भी भूल करती है।' अपने आप डाक्टर हडसन कह रहे थे। उन्होंने साबुन से हाथ धोये और आपरेशन-ड्रेस बदलने लगे। 'जड़ नहीं जड़ तो कभी भूल नहीं करता। उसमें भूल करने की योग्यता ही कहां होती है। मशीन तो निश्चित ही कार्य करेगी।' आज जिस शव का डाक्टर ने आपरेशन किया था, उसने एक नयी समस्या खड़ी कर दी। बात यह थी कि जिस किसी का भी वह शव हो इतना तो निश्चित ही था कि उसने अपनी लगभग साठ वर्ष की आयु पूर्ण की है और उसका शरीर सिद्ध करता है कि
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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8 ।।श्री हरिः।। 2 – ग्रह-शान्ति 'मनुष्य अपने कर्म का फल तो भोगेगा ही। हम केवल निमित्त हैं उसके कर्म-भोग के और उसमें हमारे लिये खिन्न होने की कोई बात नहीं है।' आकाश में नहीं, देवलोक में ग्रहों के अधिदेवता एकत्र हुए थे। आकाश में केवल आठ ग्रह एकत्र हो सकते हैं। राहु और केतु एक शरीर के ही दो भाग हैं और दोनों अमर हैं। वे एकत्र होकर पुन: एक न हो जायें, इसलिये सृष्टिकर्ता ने उन्हें समानान्तर स्थापित करके समान गति दे दी है। आधिदैवत जगत में भी ग्रह आठ ही एकत्र होते
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