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Rushda Sadaf
हम सब किसी ना किसी से , किसी ना किसी तरह से ज़िन्दगी में कम से कम एक बार ज़रूर अस्वीकार किए जाते हैं..! किसी ना किसी से, किसी ना किसी तरह से.... अस्वीकार किए जाते हैं हम... ✍️ RUSHDA SADAF KHAN ❣️ .. . . .
किसी ना किसी से, किसी ना किसी तरह से.... अस्वीकार किए जाते हैं हम... ✍️ RUSHDA SADAF KHAN ❣️ .. . . .
read moreAashu Kumar
तुमने इश्क़ का बुखार इस कद्र मुझपर चढ़ा दिया, बिन सोचे समझे मैंने तुमपर ऐतबार कर दिया, हिम्मत हुई एक दिन प्यार का इज़हार कर दिया, कितनी लड़कियों को तुम्हारे लिए मैने इनकार कर दिया, मगर जिस दिन तुमने मेरा दिल तोड़ा, इस दुनिया को मैने अस्वीकार कर दिया।। #इश्क़_का_बुखार #ऐतबार #इज़हार #इनकार #अस्वीकार
#इश्क़_का_बुखार #ऐतबार #इज़हार #इनकार #अस्वीकार
read moreAnil Siwach
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8 ।।श्री हरिः।। 1 - धर्मो धारयति प्रजाः आज की बात नहीं है। बात है उस समय की, जब पृथ्वी की केन्द्रच्युति हुई, अर्थात् आज से कई लाख वर्ष पूर्व की। केन्द्रच्युति से पूर्व उत्तर तथा दक्षिण के दोनों प्रदेशों में मनुष्य सुखपूर्वक रहते थे। आज के समान वहाँ हिम का साम्राज्य नहीं था, यह बात अब भौतिक विज्ञान के भू-तत्त्वज्ञ तथा प्राणिशास्त्र के ज्ञाताओं ने स्वीकार कर ली है। पृथ्वी के दक्षिणी ध्रुवप्रदेश में बहुत बड़ा महाद्वीप था अन्तःकारिक। महाद्वीप तो वह आज भी है।
read moreSudeep Keshri✍️✍️
प्यार के बदले नफरत ही कर लेते... तकलीफ तो इस बात की है... प्यार था तो आत्म मिलन की बातें करते थे आज तटस्थ बैठे हैं, जो कभी पक्ष में थे विपक्ष भी न हो सके आज निष्पक्ष बैठे हैं, कल तक स्वीकार था अस्वीकार भी न किया आज बेसरोकार बैठे हैं, अच्छा होता... प्यार के बदले नफरत ही कर लेते । #प्यार के बदले नफरत ही कर लेते... #तकलीफ तो इस बात की है... प्यार था तो #आत्म #मिलन की बातें करते थे आज #तटस्थ बैठे हैं, जो कभी पक्ष में थे #विपक्ष भी न हो सके आज #निष्पक्ष बैठे हैं, कल तक #स्वीकार था #अस्वीकार भी न किया आज #बेसरोकार बैठे हैं,
Anil Siwach
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12 ।।श्री हरिः।। 5 - स्वस्थ समाज आज की घटना नहीं है, लगभग 35 वर्ष हो चुके इसे। उस वर्ष हिमालय में हिमपात अधिक हुआ था। श्रीबद्रीनाथजी के मन्दिर के पट वैसे सामान्य स्थिति में अक्षय तृतीया (वैशाख शुक्ल 3) को खुल जाया करते हैं, किन्तु मैं जब जोशीमठ पहुँचा तो यात्री वहीं रुके थे। पट तब तक भी खुले नहीं थे। मैं अक्षय तृतीया वृन्दावन ही करके चला था। मार्ग में तीन-चार दिन तो ऋषिकेश तक में ही रुकते-रुकाते लगे थे और तब मोटर बस केवल देवप्रयाग तक जाती थी। आगे का मार्ग
read moreAnil Siwach
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 10 ।।श्री हरिः।। 9 – अहिंसा बात बहुत पहले की है - इतने पहले की कि मनुष्य तब आज के दानवाकार यन्त्र बनाने की बात सोच भी नहीं सकता था। उस युग में भी एक वैज्ञानिक था। आज के वैज्ञानिक मुझे क्षमा करेंगे - मुझे लगता है कि अभी उस वैज्ञानिक के ज्ञान तक आज का मनुष्य नहीं पहुँच सका है। 'मैं अपने यनंत्रों के सब रहस्य आपको बतला दूँगा। मेरे सेवक उनके निर्माण में निपुण हैं और वे आपके आज्ञानुवर्ती रहेंगें।' उस वैज्ञानिक ने एक दिन भारत के एक वरिष्ठ पुरुष के सम्मुख प्रस्ता
read moreSagar Porwal
बुरा मत मानो अगर कोई आपको अस्वीकार करता है। लोग आमतौर पर महंगी चीजों को अस्वीकार करते हैं और अनदेखा करते हैं क्योंकि वे उन्हें बर्दाश्त नहीं कर सकते। #NojotoQuote #goodnight
Anil Siwach
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 9 ||श्री हरिः|| 6 - भगवत्प्राप्ति 'मनुष्य जीवन मिला ही भगवान को पाने के लिए है। संसार भोग तो दूसरी योनियों में भी मिल सकते हैं। मनुष्य में भोगों को भोगने की उतनी शक्ति नहीं, जितनी दूसरे प्राणियों में है।' वक्ता की वाणी में शक्ति थी। उनकी बातें शास्त्रसंगत थी, तर्कसम्मत थी और सबसे बड़ी बात यह थी कि उनका व्यक्तित्व ऐसा था जो उनके प्रत्येक शब्द को सजीव बनाये दे रहा था। 'भगवान को पाना है - इसी जीवन में पाना है।भगवत्प्राप्ति हो गई तो जीवन सफल हुआ और न हुई तो मह
read moreAnil Siwach
|| श्री हरि: || 20 - क्रीड़ा 'दादा! तू बैठ। हम तुझे देवता बनायेंगे।' दाऊ दादा ही इस प्रकार स्थिर बैठ सकता है। यह तो बना बनाया देवता है। लेकिन कन्हाई को और दूसरे भी सखाओं तो क्रीडा करनी है। दिन का प्रथम प्रहर है। यमुना-पुलिन की कोमल रेणुका का स्पर्श शरीर को शीतल, सुखद लगता है इस वसन्त ऋतु में। आज बालक गोचारण करने आये तो प्रारम्भ में ही पुष्प, गुज्जादि संग्रह में नहीं लगे। सब आ गये पुलिनपर। बछड़े-बछड़ियां समीप हरित तृण चरने में लग गयीं। अभी पुलिनपर समीप के वृक्षों की छाया है। शीतल पुलिन-रेणुका
read moreAnil Siwach
||श्री हरिः|| 6 - भगवत्प्राप्ति 'मनुष्य जीवन मिला ही भगवान को पाने के लिए है। संसार भोग तो दूसरी योनियों में भी मिल सकते हैं। मनुष्य में भोगों को भोगने की उतनी शक्ति नहीं, जितनी दूसरे प्राणियों में है।' वक्ता की वाणी में शक्ति थी। उनकी बातें शास्त्रसंगत थी, तर्कसम्मत थी और सबसे बड़ी बात यह थी कि उनका व्यक्तित्व ऐसा था जो उनके प्रत्येक शब्द को सजीव बनाये दे रहा था। 'भगवान को पाना है - इसी जीवन में पाना है।भगवत्प्राप्ति हो गई तो जीवन सफल हुआ और न हुई तो महान हानि हुई।' प्रवचन समाप्त हुआ। लोगों
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