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SHAYARI BOOKS

गए साल ने ज़िंदगी को नया आयाम दिया, जो शामिल थे दौड़ में उन्हें भी विराम दिया। दुनिया के रंगमंच का दृश्य ही बदल दिया, जीने के अंदाज़ को कठिन से सरल किया। "घर से काम" और घर के काम सिखाने आया था, ये साल हमे भूले बिसरे कुछ काम गिनाने आया था। किसी की रोजी छिन गयी कोई हालात पे रोया, कोई लड़ा कोविड से ,कुछ ने अपनो को खोया।

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गए साल ने ज़िंदगी को नया आयाम दिया,
जो शामिल थे दौड़ में उन्हें भी विराम दिया।
दुनिया के रंगमंच का दृश्य ही बदल दिया,
जीने के अंदाज़ को कठिन से सरल किया।
"घर से काम" और घर के काम सिखाने आया था,
ये साल हमे भूले बिसरे कुछ काम गिनाने आया था।
किसी की रोजी छिन गयी कोई हालात पे रोया,
कोई लड़ा कोविड से ,कुछ ने अपनो को खोया।
मास्क और सैनिटाइजर की आदत भी अपना ली,
हाथ मिलाना छोड़ कर नमस्ते की प्रथा बना ली।
शायद यह साल हमको सबक सिखाने आया था,
"हम ज़िंदा ये उपलब्धि है",याद दिलाने आया था।

©SHAYARI BOOKS गए साल ने ज़िंदगी को नया आयाम दिया,
जो शामिल थे दौड़ में उन्हें भी विराम दिया।
दुनिया के रंगमंच का दृश्य ही बदल दिया,
जीने के अंदाज़ को कठिन से सरल किया।
"घर से काम" और घर के काम सिखाने आया था,
ये साल हमे भूले बिसरे कुछ काम गिनाने आया था।
किसी की रोजी छिन गयी कोई हालात पे रोया,
कोई लड़ा कोविड से ,कुछ ने अपनो को खोया।

kbkiranbisht

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जो कहानियां सिर्फ किताबों में अच्छी लगती है कभी-कभी वो कहानियां हकीकत हो जाए 
ऐसा ख्याल आता है
और जो शब्द सुनने में अच्छे लगते हैं किसी कहानी या परी कथा में।।
वह कभी कानों में घूम जाए तो अच्छा लगता है।
जिंदगी के दो पहलू दोनों ही एक दूसरे से अलग।।
एक हकीकत तो एक कहानी एक अधूरी तो एक पूरी सी।
सभी की जिंदगी इन पहलुओं से चलती है कभी गिरती तो कभी संभालती अलग-अलग राहों से गुजरती।
दुख सुख की गहराइयों को नाप कर जिंदगी अपने ही धुन पर आगे बढ़ती है।
फिर भी न जाने हम क्यों परी कथाओं को अपनी जिंदगी का हिस्सा नहीं मानते हैं किताबी बातें हैं भाई किताबों में यह अच्छी लगती है यह कहकर हम अपने जिंदगी के हर किसी को डालते हैं।

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जिसकी आरजू में एक उमर निकला किसी और आँगन में वो क़मर निकला! यूँ तो उसे रहती है ख़बर जहान की बस मेरे जज्बातों से ही बेख़बर निकला! एक मुद्दत हुए प्यासा है शहर मेरा के कुछ दूर से बादल बरस कर निकला!

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जिसकी आरजू में एक उमर निकला
किसी और आँगन में वो क़मर निकला!

यूँ तो उसे रहती है ख़बर जहान की
बस मेरे जज्बातों से ही बेख़बर निकला!

एक मुद्दत हुए प्यासा है शहर मेरा
के कुछ दूर से बादल बरस कर निकला!

हर बार रख आया दिल तेरे कूचे में
जब भी तफरीह को मैं उधर निकला!

रिवायत है दिल के बदले दिल देने की
पर तूने जो दिया वो पत्थर निकला!

बड़े अरमान से खोले थे लिफ़ाफ़े मैंने
तवक़्क़ो फूल की थी, खंज़र निकला!

वो ख़्वाब जो आते नहीं रातों में कभी
उन्हें ढूंढते हुए आज फ़िर सहर निकला!

पलकों के पीछे था तो बस एक बूंद था
बहने क्या लगा पूरा समंदर निकला!

जिस फसाने को मैंने जीस्त समझा
वो तो एक लम्हे सा मुक्तसर निकला!

संगसार क्या हुआ एक आशिक़ आज
हस्र देखने को है सारा शहर निकला!

क्या बीती होगी उस पर वही जाने
रुस्वा हो महफ़िल से यूँ शजर निकला!

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©SHAYARI BOOKS जिसकी आरजू में एक उमर निकला
किसी और आँगन में वो क़मर निकला!

यूँ तो उसे रहती है ख़बर जहान की
बस मेरे जज्बातों से ही बेख़बर निकला!

एक मुद्दत हुए प्यासा है शहर मेरा
के कुछ दूर से बादल बरस कर निकला!

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