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वेदों की दिशा
।। ॐ ।। अबोध्यग्निः समिधा जनानां प्रति धेनुमिवायतीमुषासम्। यह्वाइव प्र वयामुज्जिहानाः प्र भानवः सिस्रते नाकमच्छ ॥ पद पाठ अबो॑धि। अ॒ग्निः। स॒म्ऽइधा॑। जना॑नाम्। प्रति॑। धे॒नुम्ऽइ॑व। आ॒ऽय॒तीम्। उ॒षास॑म्। य॒ह्वाःऽइ॑व। प्र। व॒याम्। उ॒त्ऽजिहा॑नाः। प्र। भा॒नवः॑। सि॒स्र॒ते॒। नाक॑म्। अच्छ॑ ॥ हे विद्वन्! जैसे (समिधा) ईन्धन और घृत आदि से (अग्निः) अग्नि (अबोधि) जाना जाता अर्थात् प्रज्वलित किया जाता है (भानवः) कान्तियें (जनानाम्) मनुष्यों की (आयतीम्) आती हुई (धेनुमिव) दुग्ध देनेवाली गौ के तुल्य (उषासम्) प्रातर्वेला के (प्रति) (प्र, सिस्रते) प्राप्त होती और (वयाम्) शाखा को (प्र, उज्जिहानाः) अच्छे प्रकार त्यागते हुए (यह्वा इव) बड़े वृक्षों के सदृश (नाकम्) दुःख से रहित अन्तरिक्ष को (अच्छ) उत्तम प्रकार प्राप्त होती है, वैसे आप हूजिये ॥ Hey scholar! Such as (samidha) from fire and ghee etc. (Agni:) Agni (Abodhi) is known, that is, to be ignited (Bhanava:) Kantiyan (Jananam) of human beings (Aatim) coming (dhenumiv) Milk-like cow (Ushasam) of Pratarvela (Prat) attains (Pr, Sisrte) and (Vyam) branch (Pr, Ujjivahnah), leaving good kind (Yhva Iv) resembles big trees (Nakam) Space devoid of grief (Good) gets good type, By the way, you do. ( ऋग्वेद ५.१.१ ) #rigveda #Vedas #samidha #ghee #yagya #Scholar #pleasure #Happiness
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