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Best तीखी Shayari, Status, Quotes, Stories

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Omparkash Arora

#Qala

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@lifehacks_quote

मोबाइल और किताबें !

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कुछ बातें जरूर मेरी तीखी हैं 
कुछ बातें जरूर मेरी तीखी हैं, 
सच बताऊं.... 

तो मैं जितना जानता हूं, 
वो सब मोबाइल और
 किताबों से ही सीखी है!! मोबाइल और किताबें !

Ujjwal Singh

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सुबह की चाय और तुम्हारी कुछ मीठी यादों के साथ दिन की शुरुआत हुई है, 
आज दिन कुछ खास है क्यूंकि दोस्तों के साथ महफ़िल सजाने की बात हुई है, 

तुम्हारी वो  सुबह की good morning  आज थोड़ी तीखी सी लगी, 
लगता है मेरी जान आज थोड़ा गुस्से से शरमाई हुई है |

वो तुम्हारी तीखी सी गुस्से वाली बाते चलेगी बस तुम नाराज़ ना होना, 
क्यूंकि तुम्हारी वो नाराज़गी ऐसा लगता है जैसे चाँद अपनी रौशनी कंही छुपाई हुई है |

चलो अब माफ़ भी करो और छोड़ो ये गुस्सा बस पास आ जाओ मेरे, 
आज तुम्हारी याद बहुत कस कर आई हुई है |

अगर हो सके तो तुम आज आना जरूर, 
क्यूंकि तुम्हारे नाम पर ही तो ये पूरी महफ़िल सजाई हुई है |


@ekk_khayal
ujjwal singh

Bhupendra Gupta

##बेवफा/वफ़ा

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कैसे भूला दूं वो प्यारी बातें वो मीठी मीठी यादें वो तीखी तीखी बातें 
अब तो हर याद में तेरा ख्याल आता है 
वेवफा तुम न थे लेकिन वफ़ा भी न कर सके ##बेवफा/वफ़ा

Lata Sharma सखी

चूमकर मेरे लबों को फिर तुम गुलाब कर दो,
कि कई दिनों से इनकी रंगत फीकी फीकी है। 
जब भी पियूँ मैं घूंट घूंट कड़वी चाय साथ तुम्हारे,
बस होठों से लगा लेना कि लगे ये मीठी मीठी है।
कुछ तो हलचल मचे कोई तूफान सा आये,
ये धड़कन भी तो कुछ दिन से धीमी धीमी है। 
मिर्च की तरह जुबान जला देती है हमेशा मेरी,
हाँ तेरी मुहब्बत मेरे सनम तीखी तीखी है.. 

©सखी #मुहब्बत #तीखी

Pradeep Kalra

“सख़्त ज़रूरत है” क्यों बेफ़िक्री वाली नींद की, कमी सी खलती है, बस औंधे होकर सोने की, अब सख्त जरूरत है, क्यो आँखे खुलते ही, उलझे उलझे से मसले है, सुलझे सुलझे ख्वाबों की, अब सख़्त ज़रूरत है। [1] क्यों इंसान को ही, कुचल रहा यहाँ इंसान है,

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कवि मनोज कुमार मंजू

जब खेतों में नंगी काया पल पल तपती रहती है|
आँगन में बैठे ख्वाबों के पंख उतिनती रहती है||
बेबस आँखों में बस केवल नीर समाया रहता है|
तब कवि हृदय हुकूमत के प्रति आग उगलने लगता है||
नहीं प्रेम के मधुर मधुर मैं गीत सुनाने आया हूँ|
वाणी की तीखी तीखी तलवार चलाने आया हूँ||

जब चूल्हे में सिमटी माया कड़वा धुआं निगलती है|
फटे चीथड़ों में उलझी शर्मों से और पिघलती है||
रुखा सूखा खिला स्वयं जब अवला फांके करती है|
लिखते लिखते कलम आंशुओं में फिर बहने लगती है||
नहीं चूड़ियों का मैं मीठा गान सुनाने आया हूँ|
वाणी की तीखी तीखी तलवार चलाने आया हूँ||

जब बचपन के सम्मुख जिम्मेदारी आन उलझती है|
गुड़ियों वाले हाथों में बरतन की राख चमकती है||
बस्ते वाले कांधे जब दुनिया का बोझ उठाते हैं|
तब सरकारी फरमानों पर प्रश्न चिन्ह लग जाते हैं||
नहीं लोरियों की मीठी मैं तान सुनाने आया हूँ|
वाणी की तीखी तीखी तलवार चलाने आया हूँ||

जब यौवन घनघोर निराशाओं में डूबा रहता है|
दफ्तर के चक्कर दुनिया के ताने सहता रहता है||
कोई युवा बेवशी में जब राह भटकने लगता है|
तब कवि हृदय हुकूमत के प्रति जहर उगलने लगता है||
नहीं हीर और राँझा की मैं गाथा गाने आया हूँ|
वाणी की तीखी तीखी तलवार चलाने आया हूँ|| #manojkumarmanju
#manju
#hindipoems

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