जब खेतों में नंगी काया पल पल तपती रहती है| आँगन में बैठे ख्वाबों के पंख उतिनती रहती है|| बेबस आँखों में बस केवल नीर समाया रहता है| तब कवि हृदय हुकूमत के प्रति आग उगलने लगता है|| नहीं प्रेम के मधुर मधुर मैं गीत सुनाने आया हूँ| वाणी की तीखी तीखी तलवार चलाने आया हूँ|| जब चूल्हे में सिमटी माया कड़वा धुआं निगलती है| फटे चीथड़ों में उलझी शर्मों से और पिघलती है|| रुखा सूखा खिला स्वयं जब अवला फांके करती है| लिखते लिखते कलम आंशुओं में फिर बहने लगती है|| नहीं चूड़ियों का मैं मीठा गान सुनाने आया हूँ| वाणी की तीखी तीखी तलवार चलाने आया हूँ|| जब बचपन के सम्मुख जिम्मेदारी आन उलझती है| गुड़ियों वाले हाथों में बरतन की राख चमकती है|| बस्ते वाले कांधे जब दुनिया का बोझ उठाते हैं| तब सरकारी फरमानों पर प्रश्न चिन्ह लग जाते हैं|| नहीं लोरियों की मीठी मैं तान सुनाने आया हूँ| वाणी की तीखी तीखी तलवार चलाने आया हूँ|| जब यौवन घनघोर निराशाओं में डूबा रहता है| दफ्तर के चक्कर दुनिया के ताने सहता रहता है|| कोई युवा बेवशी में जब राह भटकने लगता है| तब कवि हृदय हुकूमत के प्रति जहर उगलने लगता है|| नहीं हीर और राँझा की मैं गाथा गाने आया हूँ| वाणी की तीखी तीखी तलवार चलाने आया हूँ|| #manojkumarmanju #manju #hindipoems