अनगिनत #असंख्य#असीमित बढ़ती विषैलेजीवों ( #मनुष्य ) की तादाद में
अपने अस्तित्व का होना अखरता है मुझे
कि लाखों करोड़ों में से मैं ही #क्रूरताकेलोक में, अत्याचारों के माहौल में, #घुटन के घर में, कृंदन के कमरे में, #कुंठा और #द्वंद्व की संग्राम रूपी सैया पर ना जाने कितनी सदियों से संघर्षरत नरकीय #जीवन का भोगी बना हुआ हूं,,,
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