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Best अपमानित Shayari, Status, Quotes, Stories

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Juhi Grover

क्या कहें पैदा होती बच्ची को,
वो पैदा न हो या फिर कोख में ही मर जाए,
खत्म पैदाइश जब उसकी हो,
तब दुनिया का ही चक्र कैंसे चल पाए।

आखिर क्या गलती थी उसकी,
जो हर बार अपमानित ही हो जाए,
पैदा होकर क्या गुनाह किया,
उसका दर्द भी दिलों से फनाह हो जाए।

अपराधी अपराध करके भी,
सिर ऊँचा करके बस हमेशा चलता जाए,
और वो अपराधी न हो कर भी,
सूली पर बेवजह ही यों चढ़ती जाए।

हे भगवान् ! अब आप ही न्याय करो,
ये दर्द अब और सहा न जाए,
इस कलयुग में कुछ तो उपकार करो,
बस ये अन्याय अब खत्म हो जाए।

सुना है तेरे घर में देर है, अन्धेर नहीं,
बस यहीं बात कुकर्मियों को समझ आ जाए,
आसमान पे जा बैठे अपराध करके भी,
सिर से पैर काँपे, अपनी कोख को न लज्जित कर पाए।

क्या कहें पैदा होती बच्ची को,
वो पैदा न हो या फिर कोख में ही मर जाए,
खत्म पैदाइश जब उसकी हो,
तब दुनिया का ही चक्र कैंसे चल पाए। #पैदाइश 
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Anuj Ray

#अपमानित होना फिर भी बच जाता है

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अपमानित होना फिर भी बच जाता है'

 कर्तव्य समझकर, जीवन भर,
 चाहे घुट घुट कर या हंस-हंसकर


धूप छांव, सर्दी गर्मी, हर हाल
  में माली अपना  बाग सजाता है।
 
भोजन के लिए, पनघट भी जाता है
 दाना पानी, हर हाल में लेकर आता है।

चलते चलते थक जाता है, सूरज की 
तरह ,अस्ताचल में एक दिन ढल जाता है।

इतना सब कुछ, करने के बदले ,उसका
अपमानित होना ,फिर भी बच जाता है।

©Anuj Ray #अपमानित होना फिर भी बच जाता है

Princi Mishra

ख़तरनाक है  ख़तरनाक है शोर का खामोशी से मर जाना, चीख का घुट के रह जाना,

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ख़तरनाक है संवेदनाओं का हार जाना
-प्रिंसी मिश्रा
(कविता को कैप्शन में पढ़ें) ख़तरनाक है 



ख़तरनाक है शोर का खामोशी से मर जाना,

चीख का घुट के रह जाना,

Sonu Mishra

आज इतवार है, वो इतवार जो 1843 में शुरू हुआ था. आज मेरा मन भी थोड़ा इतवारी हो रहा है. मन की भावनाएं कविता के लपटों में लिपट रही है. थोड़ा हिंदी थोड़ा उर्दू बनने का मन किया जा रहा है. महसूस ऐसा हो रहा है कि मैं उर्दू के समुंद्र में छलांग लगा लू. कुरान के हर उन पन्नो को पढ़ लू जिसमे शांति का पैगाम उकेरी गई हो. हमारे कुल के बेटे विद्यापति मिश्र ( बाबा नागार्जुन ) की तरह ब्राह्मणत्व के टैग से छुटकारा पा लू. अपना लू नागार्जुन की तरह बौद्ध धर्म. चूंकि रहनुमाओ ने काफी हुड़दंग मचा रखा है ब्राह्मण का हाथ स

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इतवार मुबारक हो साहब  आज इतवार है, वो इतवार जो 1843 में शुरू हुआ था. आज मेरा मन भी थोड़ा इतवारी हो रहा है. मन की भावनाएं कविता के लपटों में लिपट रही है. थोड़ा हिंदी थोड़ा उर्दू बनने का मन किया जा रहा है. महसूस ऐसा हो रहा है कि मैं उर्दू के समुंद्र में छलांग लगा लू. कुरान के हर उन पन्नो को पढ़ लू जिसमे शांति का पैगाम उकेरी गई हो. हमारे कुल के बेटे विद्यापति मिश्र ( बाबा नागार्जुन ) की तरह ब्राह्मणत्व के टैग से छुटकारा पा लू. 

अपना लू नागार्जुन की तरह बौद्ध धर्म. 

चूंकि रहनुमाओ ने काफी हुड़दंग मचा रखा है ब्राह्मण का हाथ स

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