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जिंदा अहसास
#कफस से छूट कर भी तुमसे मिल नहीं पाए,,, हुआ था इश्क़ मगर दिल बदल नहीं पाए,,,, हमारी राख से महबूब को लिपटना था,,, भिंगे थे अश्को में ऐसे कि जल नहीं पाए,,,, कजा से थी वफ़ा, करार सब निभाना था,,, जीस्त जकड़ी रही हम साथ चल नहीं पाए ये हाल देख मेरा #तपस्वी ,तुम्हे सम्हलना था,,, हमारी भूल थी हम गिर कर सम्हल नहीं पाए,,, (प्रेम तपस्वी) ©जिंदा अहसास कफस का मतलब पिंजरा होता है #MorningTea
कफस का मतलब पिंजरा होता है #MorningTea
read moreAnil Siwach
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12 ।।श्री हरिः।। 4 - महान कौन तीनों अधीश्वरों में महान कौन है? यह प्रश्न उठ खड़ा हुआ था ऋषियों के समाज में। सतयूग का निसर्ग-पावन काल और सब-के-सब वीतराग, तपोधन, ज्ञानमूर्ति; किन्तु कोई भी प्रश्न कहीं उठने के लिए क्या पूर्व भूमिका आवश्यक हुई है? जीवन को सृष्टि को उत्पन्न करने वाले भगवान् ब्रह्मा। सृष्टि को जीवन की सुरक्षा के संस्थापक भगवान नारायण। अपनी तृतीय नेत्र की वह्नि-शिखा में त्रिलोकी को क्षणार्ध में भस्म कर देने वाले प्रलयंकर शिव। सृष्टि के ये तीन अध
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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 11 ।।श्री हरिः।। 5 - भक्ति-मूल-विश्वास 'पानी!' कुल दस गज दूर था पानी उनके यहाँ से; किंतु दुरी तो शरीर की शक्ति, पहुँचने के साधनपर निर्भर है। दस कोस भी दस पद जैसे होते हैं स्वस्थ सबल व्यक्ति को और आज के सुगम वायुयान के लिये तो दस योजन भी दस पद ही हैं; किंतु रुग्ण, असमर्थ के लिए दस पद भी दस योजन बन जाते हैं - 'यह तो सबका प्रतिदिन का अनुभव है। 'पानी!' तीव्र ज्वराक्रान्त वह तपस्वी - क्या हुआ जो उससे दस गज दूर ही पर्वतीय जल-स्त्रोत है। वह तो आज अपने आसन से उठन
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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8 ।।श्री हरिः।। 6 – पूर्णकाम ‘तृष्णाक्षये स्वर्गपदं किमस्ति' 'देवाधिप की मुखश्री आज म्लान दीखती है!' सुरगुरु ने अमरों की अर्चा स्वीकार कर ली थी और महेन्द्र से अभिवादित होकर वे सिंहासन पर बैठ चुके थे। इन्द्र एवं अन्य देवताओं ने भी आसन ग्रहण कर लिया था। 'सुधर्मा सभा में आज चिन्ता की अरुचिकर गन्ध है।'
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|| श्री हरि: || 4 - अपनों का ही 'सुना कि कोई बहुत बड़ा मल्ल आने वाला है।' गोपियों को, गोपों को, सबको ही कोई बात, कोई बहाना चाहिये जिससे नन्दनन्दन उनके समीप दो क्षण अधिक ठहरे। यह चपल कहीं टिकता नहीं, इसलिए इस गोपी ने कोई बात निकाली है। 'मल्ल? मल्ल तो अपना विशाल दादा है।' कन्हाई को ऐसी कोई विशेषता नहीं ज्ञात जो उसके सखाओं में उसे न दीखे। संसार में कहीं और कुछ भी विशिष्ट गुण-कर्म किसी में सम्भव है, यह बात यह सोचना ही नहीं चाहता। 'एक बड़े भारी तपस्वी भी आज महर्षि शाण्डिल्य के आश्रम में आने वाले
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