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Imran Shekhani (Yours Buddy)
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read moredayal singh
जब कभी भी हमें अपने बचपन की याद आती है तो कुछ बातों को याद करके हम हर्षित होते हैं, तो कुछ बातों को लेकर अश्रुधारा बहने लगती है। हम यादों के समंदर में डूबकर भावनाओं के अतिरेक में खो जाते हैं। भाव-विभोर व भावुक होने पर कई बार हमारा मन भीग-सा जाता है। हर किसी को अपना बचपन याद आता है। हम सबने अपने बचपन को जीया है। शायद ही कोई होगा, जिसे अपना बचपन याद न आता हो। बचपन की अपनी मधुर यादों में माता-पिता, भाई-बहन, यार-दोस्त, स्कूल के दिन, आम के पेड़ पर चढ़कर 'चोरी से' आम खाना, खेत से गन्ना उखाड़कर चूसना और खेत मालिक के आने पर 'नौ दो ग्यारह' हो जाना हर किसी को याद है। जिसने 'चोरी से' आम नहीं खाए व गन्ना नहीं चूसा, उसने क्या खाक अपने बचपन को 'जीया' है! चोरी और चिरौरी तथा पकड़े जाने पर साफ झूठ बोलना बचपन की यादों में शुमार है। बचपन से पचपन तक यादों का अनोखा संसार है। वो सपने सुहाने ... छुटपन में धूल-गारे में खेलना, मिट्टी मुंह पर लगाना, मिट्टी खाना किसे नहीं याद है? और किसे यह याद नहीं है कि इसके बाद मां की प्यारभरी डांट-फटकार व रुंआसे होने पर मां का प्यारभरा स्पर्श! इन शैतानीभरी बातों से लबरेज है सारा बचपन। तोतली व भोली भाषा बच्चों की तोतली व भोली भाषा सबको लुभाती है। बड़े भी इसकी ही अपेक्षा करते हैं। रेलगाड़ी को 'लेलगाली' व गाड़ी को 'दाड़ी' या 'दाली' सुनकर किसका मन चहक नहीं उठता है? बड़े भी बच्चे के सुर में सुर मिलाकर तोतली भाषा में बात करके अपना मन बहलाते हैं। जो नटखट नहीं किया, वो बचपन क्या जीया? जिस किसी ने भी अपने बचपन में शरारत या नटखट नहीं की, उसने भी अपने बचपन को क्या खाक जीया होगा, क्योंकि 'बचपन का दूसरा नाम' नटखट ही होता है। शोर व उधम मचाते, चिल्लाते बच्चे सबको लुभाते हैं तथा हम सभी को भी अपने बचपन की सहसा याद हो आती है। वो पापा का साइकल पर घुमाना... हम में अधिकतर अपने बचपन में पापा द्वारा साइकल पर घुमाया जाना कभी नहीं भूल सकते। जैसे ही पापा ऑफिस जाने के लिए निकलते हैं, तब हम भी पापा के साथ जाने को मचल उठते हैं, तब पापा भी लाड़ में आकर अपने लाड़ले-लाड़लियों को साइकल पर घुमा देते थे। आज बाइक व कार के जमाने में वो 'साइकल वाली' यादों का झरोखा अब कहां? साइकलिंग थोड़े बड़े होने पर बच्चे साइकल सीखने का प्रयास अपने ही हमउम्र के दोस्तों के साथ करते रहे हैं। कैरियर को 2-3 बच्चे पकड़ते थे व सीट पर बैठा सवार (बच्चा) हैंडिल को अच्छे से पकड़े रहने के साथ साइकल सीखने का प्रयास करता था तथा साथ ही साथ वह कहता जाता था कि कैरियर को छोड़ना नहीं, नहीं तो मैं गिर जाऊंगा/जाऊंगी। लेकिन कैरियर पकड़े रखने वाले साथीगण साइकल की गति थोड़ी ज्यादा होने पर उसे छोड़ देते थे। इस प्रकार किशोरावस्था का लड़का या लड़की थोड़ा गिरते-पड़ते व धूल झाड़कर उठ खड़े होते साइकल चलाना सीख जाते थे। साइकल चलाने से एक्सरसाइज भी होती थी। हाँ, फिर आना तुम मेरे प्रिय बचपन! मुझे तुम्हारा इंतजार रहेगा ताउम्र!! राह तक रहा हूँ मैं!!!जब कभी भी हमें अपने बचपन की याद आती है तो कुछ बातों को याद करके हम हर्षित होते हैं, तो कुछ बातों को लेकर अश्रुधारा बहने लगती है। हम यादों के समंदर में डूबकर भावनाओं के अतिरेक में खो जाते हैं। भाव-विभोर व भावुक होने पर कई बार हमारा मन भीग-सा जाता है। हर किसी को अपना बचपन याद आता है। हम सबने अपने बचपन को जीया है। शायद ही कोई होगा, जिसे अपना बचपन याद न आता हो। बचपन की अपनी मधुर यादों में माता-पिता, भाई-बहन, यार-दोस्त, स्कूल के दिन, आम के पेड़ पर चढ़कर 'चोरी से' आम खाना, खेत से गन्ना उखाड़कर चूसना और खेत मालिक के आने पर 'नौ दो ग्यारह' हो जाना हर किसी को याद है। जिसने 'चोरी से' आम नहीं खाए व गन्ना नहीं चूसा, उसने क्या खाक अपने बचपन को 'जीया' है! चोरी और चिरौरी तथा पकड़े जाने पर साफ झूठ बोलना बचपन की यादों में शुमार है। बचपन से पचपन तक यादों का अनोखा संसार है। वो सपने सुहाने ... छुटपन में धूल-गारे में खेलना, मिट्टी मुंह पर लगाना, मिट्टी खाना किसे नहीं याद है? और किसे यह याद नहीं है कि इसके बाद मां की प्यारभरी डांट-फटकार व रुंआसे होने पर मां का प्यारभरा स्पर्श! इन शैतानीभरी बातों से लबरेज है सारा बचपन। तोतली व भोली भाषा बच्चों की तोतली व भोली भाषा सबको लुभाती है। बड़े भी इसकी ही अपेक्षा करते हैं। रेलगाड़ी को 'लेलगाली' व गाड़ी को 'दाड़ी' या 'दाली' सुनकर किसका मन चहक नहीं उठता है? बड़े भी बच्चे के सुर में सुर मिलाकर तोतली भाषा में बात करके अपना मन बहलाते हैं। जो नटखट नहीं किया, वो बचपन क्या जीया? जिस किसी ने भी अपने बचपन में शरारत या नटखट नहीं की, उसने भी अपने बचपन को क्या खाक जीया होगा, क्योंकि 'बचपन का दूसरा नाम' नटखट ही होता है। शोर व उधम मचाते, चिल्लाते बच्चे सबको लुभाते हैं तथा हम सभी को भी अपने बचपन की सहसा याद हो आती है। वो पापा का साइकल पर घुमाना... हम में अधिकतर अपने बचपन में पापा द्वारा साइकल पर घुमाया जाना कभी नहीं भूल सकते। जैसे ही पापा ऑफिस जाने के लिए निकलते हैं, तब हम भी पापा के साथ जाने को मचल उठते हैं, तब पापा भी लाड़ में आकर अपने लाड़ले-लाड़लियों को साइकल पर घुमा देते थे। आज बाइक व कार के जमाने में वो 'साइकल वाली' यादों का झरोखा अब कहां? साइकलिंग थोड़े बड़े होने पर बच्चे साइकल सीखने का प्रयास अपने ही हमउम्र के दोस्तों के साथ करते रहे हैं। कैरियर को 2-3 बच्चे पकड़ते थे व सीट पर बैठा सवार (बच्चा) हैंडिल को अच्छे से पकड़े रहने के साथ साइकल सीखने का प्रयास करता था तथा साथ ही साथ वह कहता जाता था कि कैरियर को छोड़ना नहीं, नहीं तो मैं गिर जाऊंगा/जाऊंगी। लेकिन कैरियर पकड़े रखने वाले साथीगण साइकल की गति थोड़ी ज्यादा होने पर उसे छोड़ देते थे। इस प्रकार किशोरावस्था का लड़का या लड़की थोड़ा गिरते-पड़ते व धूल झाड़कर उठ खड़े होते साइकल चलाना सीख जाते थे। साइकल चलाने से एक्सरसाइज भी होती थी। हाँ, फिर आना तुम मेरे प्रिय बचपन! मुझे तुम्हारा इंतजार रहेगा ताउम्र!! राह तक रहा हूँ मैं!!! bachpan ke din
bachpan ke din
read moreRaman Kumar
एक गर्लफ्रेंड अपने बॉयफ्रेंड को कहती है ” ड्रिंक करने के बाद गाडी मत चलाना बैलेंस बिगड़ने की वजह एक्सीडेंट हो सकता है ” बॉयफ्रेंड: ओह यार तुम मेरी कितनी परवाह करती हो , आई लव यू डार्लिंग ! अब एक लड़का अपने दोस्त को कहता है “ड्रिंक करने के बाद गाडी मत चलाना बैलेंस बिगड़ने की वजह एक्सीडेंट हो सकता है ” लड़का: अबे साले चुप रह अपने बाप को मत सिखा !! हिंदी कलेक्शन - Lakshmi singh
Lakshmi singh
read moreदेवानंद शुक्ल(देव)
इस कलयुग में अब अजाओ मेरे कृष्ण कन्हैया। क्योंकि इस कलयुग अब बढ़ गई पाप की नैया। इस कलयुग में अब आजाओ प्यारे कृष्ण कन्हैया। कलयुग में आने के खातिर चेंज तो करना होगा। धोती कुर्ता छोड़ के जींस टीशर्ट पहनना होगा। इलू इलू गाना होगा गीता ज्ञान गवैया। कलयुग में अब आजाओ प्यारे कृष्ण कन्हैया। चक्र सुदर्शन छोड़ के कट्टा बम्ब चलाना होगा। अर्जुन का रथ छोड़ के फरारी क़ार चलाना होगा। ऑर्गन को अब बजाना होगा बंशी के बजैया। कलयुग में अब आजाओ प्यारे कृष्ण कन्हैया। द्रौपती का चीर नही अब जीन्स बढ़ाना होगा। दूध दही को छोड़ के कोका कोला लाना होगा। पिज्जा बर्गर खाना होगा माखन के तुम खावैया। कलयुग में अब आजाओ प्यारे कृष्ण कन्हैया। गौ माता हो छोड़ के कुत्तों को घूमना होगा। निधिवन को छोड़ के डिस्को थेटर जाना होगा। वृन्दावन को छोड़ के अब होना होगा बम्बइया। कलयुग में अब आजाओ प्यारे कृष्ण कन्हैया। जय श्रीकृष्ण Shikha Dubey Mukesh Kumar Rinky Rao Subhadra Kumari Wakil Mandal
जय श्रीकृष्ण Shikha Dubey Mukesh Kumar Rinky Rao Subhadra Kumari Wakil Mandal
read moreGokul Tapadiya
कमाल है? बिना हेलमेट जुर्माना 1000/- नो पार्किंग में पार्किंग करना जुर्माना 3000/- इन्सुरेंस नही है जुर्माना 1000/- शराब पी कर वाहन चलाना जुर्माना 10000/- नो एंट्री में वाहन चलाना जुर्माना 5000/- मोबाईल फोन पे बात करना। जुर्माना 2000/- प्रदूषण सर्टिफिकेट नहीं जुर्माना 1100/- ट्रिपल सीट ड्राइविंग जुर्माना 2000/- खराब सिग्नल कोई जिम्मेदार नहीं है! सड़क पर गड्ढ़े कोई जिम्मेदार नहीं है! अतिक्रमित फुटपाथ कोई जिम्मेदार नहीं है! सड़क पर रोशनी नहीं कोई जिम्मेदार नहीं है! सड़क पर कचरा बह रहा कोई जिम्मेदार नहीं है! सड़कों पर लाइट नहीं कोई जिम्मेदार नहीं है! खुदी सड़क कोई मरम्मत नहीं कोई जिम्मेदार नहीं है! गड्ढों में गिर कर आप गिरो चोटिल हो जाएँ कोई जिम्मेदार नही है! आवारा गायें जानवर टकरा जाए कुत्ता काट ले कोई जिम्मेदार नहीं! ऐसा लगता है कि जनता ही एकमात्र अपराधी है और जुर्माना देने के लिए उत्तरदायी है। प्रशासन, निगम और सरकार कोई जिम्मेदार नहीं है। उनके लिए कोई नियम लागू नहीं होते हैं। वे किसी भी चूक के लिए कभी ज़िम्मेदार नहीं हैं। क्या उन्हें दोषी नहीं ठहराया जाना चाहिए ??
Ravi Joshi
किसी के लिए आत्मा की जुबान किसी के लिए व्यापार है ये कलम, चलाना बड़ा ही कठिन है इसको, बिना लाइसेंस का हथियार है ये कलम l 1) कभी विरों की गाथा लिखती, कभी क्रांति के बीज़ बोती रही कहीं बदल डाले इतिहास तो, कहीं अफसरशाही में सोती रही जग को जगाने वाला शिक्षा का आधार है ये कलम 2) प्रियतम तक पहुंची दिल की बात दिल ने जब जब चलाया इसको, आग बन फैली तबाही की तरह मिटना दुष्टों ने जब जब सुलगाया इसको, हम पर है कैसे इस्तेमाल करें इसे दोनों 'नफ़रत' औऱ 'प्यार' है ये कलम 3) समाज की रग रग से वाकिफ़ रही, समझ बूझ कर लिखती गई उतार- चढ़ाव बनना-, हर बदलाव में दिखती गई कभी विनाश की जड़ बनी कभी बुनती सुधार है ये कलम 4) व्यापार बनी, हथियार बनी, आधार बनी, प्यार बनी, सम्मान बनी, सत्कार बनी मानव जीवन का सबसे बड़ा सुधार बनी सच में एक चमत्कार है ये कलम, चलाना बड़ा ही कठिन है इसको, बिना लाइसेंस का हथियार है ये कलम ..... ✍🏻 रवि बिना लाइसेंस का हथियार कलम..... ✍🏻 रवि
बिना लाइसेंस का हथियार कलम..... ✍🏻 रवि
read moretehzibasheikh👩💻
👩⚕️🥀🍁🌱 saikil🚴♂ run may be beneficial to health bicycle 🚴♀clana also stroll run to stay fit swaysth 🤸♀awr as beneficial साइकिल🚴♂️ चलाना सेहत के लिए फायदेमंद हो सकता है। साइकिल 🚴♀️चलाना भी स्वायस्थ 🤸♀️और फिट रहने के लिए दौड़ने, टहलने जितना ही लाभकारी होता है। साइकिल🚴♀️ चलाने से पूरे शरीर का🥋 व्यायाम 🙅♀️हो जाता है। tehzibasheikhnozato my
tehzibasheikhnozato my
read moreManni_Dhiman
मंजिल भी नही ठिकाना भी नही, अब उनके पास मुजे जाना भी नही, मैन ही सिखाया था उनको तीर चलाना, अरे दोस्तो मैन ही सिखाया था उनको तीर चलाना, ओर आज मेरे शिवा उनका कोई और निशाना भी नही!! ///manni/// bewfa ni bewfa bewfa nikli ae tu
bewfa ni bewfa bewfa nikli ae tu
read moreSanjay Saw
#DearZindagi हमारे जमाने में साइकिल तीन चरणों में सीखी जाती थी ,पहला चरण कैंची और दूसरा चरण डंडा तीसरा चरण गद्दी........ तब साइकिल चलाना इतना आसान नहीं था क्योंकि तब घर में साइकिल बस पापा या चाचा चलाया करते थे तब साइकिल की ऊंचाई 24 इंच हुआ करती थी जो खड़े होने पर हमारे कंधे के बराबर आती थी ऐसी साइकिल से गद्दी चलाना मुनासिब नहीं होता था। "कैंची" वो कला होती थी जहां हम साइकिल के फ़्रेम में बने त्रिकोण के बीच घुस कर दोनो पैरों को दोनो पैडल पर रख कर चलाते थे। और जब हम ऐसे चलाते थे तो अपना सीना तान कर टेढ़ा होकर हैंडिल के पीछे से चेहरा बाहर निकाल लेते थे, और "क्लींङ क्लींङ" करके घंटी इसलिए बजाते थे ताकी लोग बाग़ देख सकें की लड़का साईकिल दौड़ा रहा है । आज की पीढ़ी इस "एडवेंचर" से मरहूम है उन्हे नही पता की आठ दस साल की उमर में 24 इंच की साइकिल चलाना "जहाज" उड़ाने जैसा होता था। हमने ना जाने कितने दफे अपने घुटने और मुंह तोड़वाए है और गज़ब की बात ये है कि तब दर्द भी नही होता था,गिरने के बाद चारो तरफ देख कर चुपचाप खड़े हो जाते थे अपना हाफ कच्छा पोंछते हुए। अब तकनीकी ने बहुत तरक्क़ी कर ली है पांच साल के होते ही बच्चे साइकिल चलाने लगते हैं वो भी बिना गिरे। दो दो फिट की साइकिल आ गयी है, और अमीरों के बच्चे तो अब सीधे गाड़ी चलाते हैं छोटी छोटी बाइक उपलब्ध हैं बाज़ार में । मगर आज के बच्चे कभी नहीं समझ पाएंगे कि उस छोटी सी उम्र में बड़ी साइकिल पर संतुलन बनाना जीवन की पहली सीख होती थी! "जिम्मेदारियों" की पहली कड़ी होती थी जहां आपको यह जिम्मेदारी दे दी जाती थी कि अब आप गेहूं पिसाने लायक हो गये हैं । इधर से चक्की तक साइकिल ढुगराते हुए जाइए और उधर से कैंची चलाते हुए घर वापस आइए ! और यकीन मानिए इस जिम्मेदारी को निभाने में खुशियां भी बड़ी गजब की होती थी। और ये भी सच है की हमारे बाद "कैंची" प्रथा विलुप्त हो गयी । हम लोग की दुनिया की आखिरी पीढ़ी हैं जिसने साइकिल चलाना तीन चरणों में सीखा ! पहला चरण कैंची दूसरा चरण डंडा तीसरा चरण गद्दी (फिर बादशाहों वाली फीलिंग्स)