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Rinkle

#OpenPoetry#poem say no to plastic

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#OpenPoetry 

प्लास्टिक का करे बहिष्कार है 
            आओ मिलकर करे नव निर्माण है 
ऐसी कोशिकाओं का करे तिरस्कार है 
            जो सृष्टि से करती हाहाकार है। 

देखने में अच्छी लगती है 
            इसके बिना काम नहीं चलता है 
पर जब उन पशुओं की लाशो पे बिछी इसकी सेज है 
             क्या वास्तव में हमने इसकी कीमत उन पशुओं से आकी है 

सोचो समझो दो करारा जवाब है 
            प्लास्टिक का करो तुम बहिष्कार  है 
पशुओं के गली में अटकी इसकी कतार है 
            जीव जंतु से कर लो तुम थोड़ा तो प्यार है। 

सृष्टि भरी इन थैलियों से है 
           लहरें भी पूछ रही सवाल है 
एक बार गंदगी से नहाकर आयने में देखो 
            फिर प्रकृति से न कर पाओगें तुम छेड़छाड़ है। 

जो न मिल पाए मिटी में है 
           वो आज हमारी मुठी में है 
आओ मुहीम ऐसी चलाते है 
           प्लास्टिक को देश से विदाई दिलाते है।  #OpenPoetry#Poem say no to plastic

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 11 ।।श्री हरिः।। 5 - भक्ति-मूल-विश्वास 'पानी!' कुल दस गज दूर था पानी उनके यहाँ से; किंतु दुरी तो शरीर की शक्ति, पहुँचने के साधनपर निर्भर है। दस कोस भी दस पद जैसे होते हैं स्वस्थ सबल व्यक्ति को और आज के सुगम वायुयान के लिये तो दस योजन भी दस पद ही हैं; किंतु रुग्ण, असमर्थ के लिए दस पद भी दस योजन बन जाते हैं - 'यह तो सबका प्रतिदिन का अनुभव है। 'पानी!' तीव्र ज्वराक्रान्त वह तपस्वी - क्या हुआ जो उससे दस गज दूर ही पर्वतीय जल-स्त्रोत है। वह तो आज अपने आसन से उठन

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 11

।।श्री हरिः।।
5 - भक्ति-मूल-विश्वास

'पानी!' कुल दस गज दूर था पानी उनके यहाँ से; किंतु दुरी तो शरीर की शक्ति, पहुँचने के साधनपर निर्भर है। दस कोस भी दस पद जैसे होते हैं स्वस्थ सबल व्यक्ति को और आज के सुगम वायुयान के लिये तो दस योजन भी दस पद ही हैं; किंतु रुग्ण, असमर्थ के लिए दस पद भी दस योजन बन जाते हैं - 'यह तो सबका प्रतिदिन का अनुभव है।

'पानी!' तीव्र ज्वराक्रान्त वह तपस्वी - क्या हुआ जो उससे दस गज दूर ही पर्वतीय जल-स्त्रोत है। वह तो आज अपने आसन से उठन

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 11 ।।श्री हरिः।। 2 - भगवान की पूजा एक साधारण कृषक है रामदास। जब शुक्र तारा क्षितिज पर ऊपर उठता है, वह अपने बैलों को खली-भूसा देने उठ पड़ता है। हल यदि सूर्य निकलने से पहले खेत पर न पहुँच जाय तो किसान खेती कर चुका। दोपहर ढल जाने पर वह खेत से घर लौट पाता है। बीच में थोड़े-से भुने जौ या चने और एक लोटा गुड़ का शर्बत - यही उसका जलपान है। जाड़े के दिन सबसे अच्छे होते हैं। उन दिनों जलपान में हरी मटर उबाल कर नमक डाल कर घर से आ जाती है खेतपर और गन्ने का ताजा रस आ जा

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 11

।।श्री हरिः।।
2 - भगवान की पूजा


एक साधारण कृषक है रामदास। जब शुक्र तारा क्षितिज पर ऊपर उठता है, वह अपने बैलों को खली-भूसा देने उठ पड़ता है। हल यदि सूर्य निकलने से पहले खेत पर न पहुँच जाय तो किसान खेती कर चुका। दोपहर ढल जाने पर वह खेत से घर लौट पाता है। बीच में थोड़े-से भुने जौ या चने और एक लोटा गुड़ का शर्बत - यही उसका जलपान है। जाड़े के दिन सबसे अच्छे होते हैं। उन दिनों जलपान में हरी मटर उबाल कर नमक डाल कर घर से आ जाती है खेतपर और गन्ने का ताजा रस आ जा

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 11 ।।श्री हरिः।। 1 - भक्ति पंचम पुरुषार्थ योगिनामपि सुर्वेषां मद्गतेनान्तरात्मना। श्रद्धावान् भजते यो मां स मे युक्ततमो मतः।। (गीता 6-47)

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 11

।।श्री हरिः।।
1 - भक्ति पंचम पुरुषार्थ

योगिनामपि सुर्वेषां मद्गतेनान्तरात्मना।
श्रद्धावान् भजते यो मां स मे युक्ततमो मतः।।
(गीता 6-47)

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 10 ।।श्री हरिः।। 17 - सात्विक त्याग कार्यमित्येव यत्कर्म नियतं क्रियतेर्जुन। संगत्यक्त्वा फलं चैव स त्याग: सात्विको मत:।। (गीता 18।9)

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 10

।।श्री हरिः।।
17 - सात्विक त्याग

कार्यमित्येव यत्कर्म नियतं क्रियतेर्जुन।
संगत्यक्त्वा फलं चैव स त्याग: सात्विको मत:।।
(गीता 18।9)

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8 ।।श्री हरिः।। 7 – धर्म-धारक 'आज लगभग तेंग का पूरा परिवार ही नष्ट हो गया।' बात मनुष्यों में नही, देवताओं में चल रही थी। 'वह कृष्णवर्णा दीर्धांगी कंकालिनी लताकण्टकभूषणा चामुण्डा किसी पर कृपा करना नहीं जानती। उसने मेरी अनुनय को उपेक्षा के निष्करुण अट्टहास में उड़ा दिया। आप सब देखते ही हैं कि किस शीघ्रता से वह प्राणियों के रक्त-माँस चाटती जा रही है।' 'तुम्हारे यहाँ तो अद्भुत सुइयाँ एवं ओषधियाँ लेकर एक पूरा दल चिकित्सकों का आ गया है।' दूसरे देवता ने अधिक खिन

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8

।।श्री हरिः।।
7 – धर्म-धारक

'आज लगभग तेंग का पूरा परिवार ही नष्ट हो गया।' बात मनुष्यों में नही, देवताओं में चल रही थी। 'वह कृष्णवर्णा दीर्धांगी कंकालिनी लताकण्टकभूषणा चामुण्डा किसी पर कृपा करना नहीं जानती। उसने मेरी अनुनय को उपेक्षा के निष्करुण अट्टहास में उड़ा दिया। आप सब देखते ही हैं कि किस शीघ्रता से वह प्राणियों के रक्त-माँस चाटती जा रही है।'

'तुम्हारे यहाँ तो अद्भुत सुइयाँ एवं ओषधियाँ लेकर एक पूरा दल चिकित्सकों का आ गया है।' दूसरे देवता ने अधिक खिन

Anil Siwach

।।श्री हरिः।। 48 - गौ-गणना आज गोपाष्टमी है। ब्रज में आज गौ-पूजा होती है। श्रीब्रजराज आज कन्हाई की वर्षगांठ के समान ही भद्र की वर्षगाँठ पूरे उत्साह से मनाते हैं और यह सब होता है मध्यान्ह तक। सब हो चुका है। अब तो सूर्यास्त से पूर्व गौ-गणना होनी है। सम्पूर्ण ब्रज आज सुसज्ज है। प्रत्येक वीथी और चतुरष्क सिञ्चित, उपलिप्त, नाना रंगों के मण्डलों से सुचित्रित है। स्थान-स्थान पर मुक्तालड़िओं से शोभित वितान तने हैं। स्थान-स्थान पर जलपूरित पूजित प्रदीप एवं आम्रपल्लव-सज्जित कलश रखे हैं। प्रत्येक द्वार कदली

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।।श्री हरिः।।
48 - गौ-गणना

आज गोपाष्टमी है। ब्रज में आज गौ-पूजा होती है। श्रीब्रजराज आज कन्हाई की वर्षगांठ के समान ही भद्र की वर्षगाँठ पूरे उत्साह से मनाते हैं और यह सब होता है मध्यान्ह तक। सब हो चुका है। अब तो सूर्यास्त से पूर्व गौ-गणना होनी है।

सम्पूर्ण ब्रज आज सुसज्ज है। प्रत्येक वीथी और चतुरष्क सिञ्चित, उपलिप्त, नाना रंगों के मण्डलों से सुचित्रित है। स्थान-स्थान पर मुक्तालड़िओं से शोभित वितान तने हैं। स्थान-स्थान पर जलपूरित पूजित प्रदीप एवं आम्रपल्लव-सज्जित कलश रखे हैं। प्रत्येक द्वार कदली

Anil Siwach

|| श्री हरि: || 25 - रूठने की बात कन्हाई कभी-कभी हठ करने लगता है। कभी ऐसी हठ करता है कि किसी की सुनता ही नहीं। कोई इसके सुख की, इसके मन की बात हो तो इसकी हठ मान भी ली जाए, किन्तु यह भी कोई बात है कि यह आज हठ पर उतर आया है कि पुलिन पर खेलेगा। ग्रीष्म ऋतु है और यहाँ पुलिन पर छाया है नहीं। क्या हुआ कि मेघ आकाश में छत्र बने आतप को रोकते हैं, किन्तु क्या मेघ रहने से ही धूप की उष्णता पूरी रूक जाती है? क्या इसी से पुलिन रेणुका उष्ण नहीं होगी? गोचारण के लिए वन में आकर शीतल पुलिन पर क्रीडा हो चुकी। स्न

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|| श्री हरि: ||
25 - रूठने की बात

कन्हाई कभी-कभी हठ करने लगता है। कभी ऐसी हठ करता है कि किसी की सुनता ही नहीं। कोई इसके सुख की, इसके मन की बात हो तो इसकी हठ मान भी ली जाए, किन्तु यह भी कोई बात है कि यह आज हठ पर उतर आया है कि पुलिन पर खेलेगा। ग्रीष्म ऋतु है और यहाँ पुलिन पर छाया है नहीं। क्या हुआ कि मेघ आकाश में छत्र बने आतप को रोकते हैं, किन्तु क्या मेघ रहने से ही धूप की उष्णता पूरी रूक जाती है? क्या इसी से पुलिन रेणुका उष्ण नहीं होगी?

गोचारण के लिए वन में आकर शीतल पुलिन पर क्रीडा हो चुकी। स्न

Anil Siwach

|| श्री हरि: || 12 - नृत्यरत ता थेई, ता थेई ता .... त थेई थेई, कन्हाई नाच रहा है। हिल रहा है मयूरपिच्छ मस्तक के ऊपर, हिल रही है अलकें और कुण्डल कपोलों पर ताल दें रहें हैं। कण्ठ में पड़ी मुक्तामाल, घुटनों से नीचे तक लटकती वनमाला के साथ लहरा रही है। फहरा रहा है पीतपट। वक्ष पर कण्ठ के कौस्तुभ की किरणें श्रीवत्स को चमत्कृत करती छहरा-छहरा उठती है।

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|| श्री हरि: || 
12 - नृत्यरत

ता थेई, ता थेई ता .... त थेई थेई, कन्हाई नाच रहा है।

हिल रहा है मयूरपिच्छ मस्तक के ऊपर, हिल रही है अलकें और कुण्डल कपोलों पर ताल दें रहें हैं।

कण्ठ में पड़ी मुक्तामाल, घुटनों से नीचे तक लटकती वनमाला के साथ लहरा रही है। फहरा रहा है  पीतपट। वक्ष पर कण्ठ के कौस्तुभ की किरणें श्रीवत्स को चमत्कृत करती छहरा-छहरा उठती है।

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