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Nksahu0007writer

सजन  पर हम  मर  मिटे थे
इश्क उनसे कर  जो  बैठे थे
नदी  पार  भी  न  कर  पायें
पर  वो  भी   कहा  रुके  थे

चलते रहे काँटे को  हटाकर
जुदाई   गम   को   मिटाकर
इश्क  करते   चले  फिर  भी 
तमाम  यादों  को   जुटाकर

प्यार में  कांधे का इत्तिका दे
चुपकर  तु  हमें  भी मौक़ा दे
आब-ए-तल्ख़ गम  पीते गए
जो चले गए रब उसे लौटा दे

न दिल है, न  चल  रही सॉस
मेरी लिए  तो तू ही थी ख़ास
जाते जाते चैंन सुकून ले गई
पड़ा बेज़ान शरीर जैसे लॉस

©Premyad kumar naveen #अकेलापन (1)
#हिंदी_कविता
#कविता_संग्रह 
#प्रेमयाद_कुमार_नवीन 
#अकेलापन_भाग_1

आशुतोष आर्य "हिन्दुस्तानी"

#कविता_संग्रह #व्यंग्यबाण 

ये सीमा-पार के लोग नहीं, ये अंदर के गद्दार है।
जिन्हे देश की नहीं सूझती, स्वार्थी बने वो बैठे है।
चीनी माल चाप रहे है, न जाने क्यों ऐंठे है।।
ऐसे लोगों में मुझको बस दिखता इक गद्दार है।
जिनको हिजड़े से ज्यादा कुछ कहना ही बेकार है।।
जिनको हिजड़े से ज्यादा कुछ कहना ही बेकार है।।

इन लोगों ने देश को न जाने क्या-क्या दुख दे डाला।
छीन लिया है इन लोगों ने गरीबों का निवाला।।
अब मुझको लगता है बस इन्हें राष्ट्र-नर्क में जाना है।
क्योंकी इनकी देशभक्ति कुछ और नहीं बहाना है।।
क्योंकी इनकी देशभक्ति कुछ और नहीं बहाना है।।

किसी को अल्लाह प्यारे है और किसी को राम ही न्यारा है।
अब इकलौता पड़ा बेचारा हिन्दुस्तान हमारा है।।
उन पंडों, उन मुल्लों से कह दो कि गर हम न होते।
तो फिर उनके अब्बू-अम्मा तलवे चाट रहे होते।।
तो फिर उनके अब्बू-अम्मा तलवे चाट रहे होते।।

गद्दारों के अंदर कोई देश-प्रेम का भाव नहीं।
देश के प्रति चिंतन करने का उनमें कोई चाव नहीं।।
शायद उनको देशभक्ति का मलहम अभी है लगा नहीं।
शायद उनको देशद्रोह का अंतिम क्या है पता नहीं।।
शायद उनको देशद्रोह का अंतिम क्या है पता नहीं।।

काट-काट इन चंडालों का सिर, लहू अधर पर धारेंगें।
हम हिन्द के रक्षक हिन्द-शत्रु के अधम का बोझ उतारेंगें।।
जो भी देशद्रोही देशद्रोह को, भारत में पधारेंगें।
कान खोलकर सुन लो हम दौड़ा-दौड़ा कर मारेंगें।।
कान खोलकर सुन लो हम दौड़ा-दौड़ा कर मारेंगें।।

ये हिन्द की धमकी नहीं, आशुतोष "हिन्दुस्तानी" की ललकारे हैं।
हम उन वीरों के वंशज, जिसने लाख शत्रु-दल मारे हैं।।
गुंजन में अब बस शेष बचे, "जय जय हिन्द" के नारे हैं।।
क्या कहू् और उनको मै जिनको, मनुष्यता भी धिक्कारे है।
यह कविता भी है ऐसी, जिसको हर पाठक स्वीकारे है।
बस यहीं कहूंगा "जय हिन्द", जो सवा अरब को तारे है।।
बस यहीं कहूंगा "जय हिन्द", जो सवा अरब को तारे हैं।।
       
                                   :- आशुतोष "हिन्दुस्तानी" #कविता_संग्रह #व्यंग्यबाण

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