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Nitesh Prajapati

"प्रकृति"
रात का पहरा हटा, सुबह का प्रहर खिला,
दस्तक दी सूरज ने और उदय हुआ प्रकृति के नायाब ख़ज़ाने का।
पांच तत्वों आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी,
का संगम या नि के प्रकृति।
सूरज की किरणें गिरी धरती पर,और मिलन हुआ अंबर और धरा का।

प्रकृति हमारी माँ है,
जैसे माँ अपने बच्चों को बिना मांगे सब कुछ देती है,
वैसे ही कुदरत ने हमें बिना मांगे सब कुछ दिया,
मनुष्य को साँसों के लिए हवा दी,पेट भरने के लिए अनाज भी दिया, 
मनोरंजन के लिए बिजली भी दी,सुख साहिबी के लिए खनिज भी दिया,
धरती को चीरकर प्यास बुझाने के लिए पानी भी दिया,
यह हसीन वादियां फूल, पहाड़,पौधे,
लीले पत्तों का रंग, पानी की झीले,और खारे पानी का समुद्र भी दिया।

कुदरत ने बिना मांगे सब कुछ दिया,
लेकिन उसके बदले में मनुष्य जाति ने प्रकृति को क्या दिया, 
पेड़ पौधे उगाने की जगह उसको काटने लगे हम,
पानी का सही उपयोग करने की वजह दुरुपयोग करने लगे हम,
औद्योगिक वसाहत का जहरीला पानी नदी नालों में बहाने लगे हम,
चिमनी से निकलते काले रंग का धुआ और फैलाई  हवा में प्रदूषण।
अगर ऐसा ही चलता रहा तो समझना कि,
हम इंसान पृथ्वी को विनाश के कगार पर ला के खड़ा करेंगे।

इस कविता के माध्यम से मे आप सभी को, 
गुज़ारिश करता हु कि, 
पेड़ पौधे उगाए, और अमूल्य खनिज संपति का जतन कीजिए, 
और हमारी आने वाली पीढ़ी के लिए,
यह प्रकृति का अनमोल खज़ाना बचा कर रखिए।  रचना क्रमांक :-5
#collabwithकोराकाग़ज़
#कोराकाग़ज़महाप्रतियोगिता
#नववर्ष2022
#विशेषप्रतियोगिता
#कोराकाग़ज़
#kknitesh

Nitesh Prajapati

"लेखक" 
शब्दों को तराशता अपनी दुनिया में जीता,
अपने विचारों को एक नया रूप देकर अल्फाज़ की परिभाषा देता। 

जिनके हाथों में माँ सरस्वती देवी विराजमान,
शब्दों को हमेशा न्याय देता वो,
अलग अलग विषयों पे हमेंशा लिखता,
लेकिन शब्दों की परिभाषा हमेंशा समझाता।

अल्फ़ाज़ लिखना इतनी भी आसान बात नहीं है,
हर कोई नहीं लिख पाता, 
लेकिन एक लेखक ही, 
वाक्य के अनुरूप शब्दों को ढ़ालकर, 
वाक्य के सातत्य का अनुरक्षण करता है।

लेखक वह है, जो नहीं है,
उसे भी अपनी काल्पनिक शक्ति से सोच कर,
एक अल्फ़ाज़ में ढालता है। 
एक लेखक वह है, जिसके शब्दों से लोग प्रेरणा, 
ले के जीवन में सफलता की बुलंदियों को छू जाते हैं।
लेखक वो है जिसके शब्दों को सुनकर मुँह पर हसी आ जाती है,
और अपने शब्दों से किसी की आँखों में अश्रु भी ला सकता है। 

अब तो व्यसन हो गया है शब्दों का, 
आँखे भी शिकायत करें अब, 
हाथों की उंगलियां भी सूज के कणशे, 
लेकिन मैं क्या करूं, एक लेखक जो हूं, 
कोरा काग़ज भी मेरे अल्फ़ाज के लिए तरसे। 
-Nitesh Prajapati 
 रचना क्रमांक :-4
#collabwithकोराकाग़ज़
#कोराकाग़ज़महाप्रतियोगिता
#नववर्ष2022
#विशेषप्रतियोगिता
#कोराकाग़ज़
#kknitesh

Nitesh Prajapati

"रक्षक" 
फोन की घंटी बजी,
मैसेज आया कंट्रोल रूम में से,
पहनके खाकी वर्दी,
ड्यूटी बजाने दौड़े आधी रात को भी..

हिम्मत ना हारी , साहस ना छोड़ा,
दूसरों के लिए लड़ने को हमेशा तैयार,
हारी हुई बाजी जितने को तैयार,
हथियार लेकर साथ में,
ड्यूटी बजाने दौड़े आधी रात को भी..

देश के खातिर खुद को समर्पित किया,
अपने सपनों को ना पूरा किया,
खुद की इच्छा ओ को त्याग करके,
ड्यूटी बजाने दौड़े आधी रात को भी..

परिवार को रख अपने दिल में,
ईश्वर के भरोसे अकेला छोड़कर,
बंदूक की गोलियों के साथ,
ड्यूटी बजाने दौड़े आधी रात को भी..

शौर्य का प्रतीक बने, 
मुश्किलों से प्यार करके, 
अंधेरों को भी मित मानकर, 
ड्यूटी बजाने दौड़े आधी रात को भी.. 

हमारी खुशी का सम्मान किया, 
अपनी खुशियों की कुर्बानी दी, 
इन महान योद्धाओं को शत-शत नमन, 
जो ड्यूटी बजाने दौड़े आधी रात को भी। 
-Nitesh Prajapati  रचना क्रमांक :-3
#collabwithकोराकाग़ज़
#कोराकाग़ज़महाप्रतियोगिता
#नववर्ष2022
#विशेषप्रतियोगिता
#कोराकाग़ज़
#kknitesh

Nitesh Prajapati

"परदेशी पीयू" 
अखियाँ तरसे मेरी,मन में भी कशमकश मची,
बस तेरी आस में,यह पल पल मुझे लगे भारी,
दौड़ी जाऊं मैं हर पल घर के, आंगन में पीयूके खत के इंतज़ार में।
बरसों पहले मिले हम दोस्ती हुई आपस में, 
और एक दूसरे को जानने लगे हम,
कुछ मुलाकाते हुई कुछ बातें हुई और नजरों नजरों में ही इश्क हो गया। 
दोस्ती के रिश्ते से आगे बढ़कर, 
हम अब सात फेरों के बंधन में बंध गए हम, 
दो धड़कन मीट के एक धड़कन बन गए हम, 
प्यार के जज्बातों से बसाए एक प्यारे से आशियाने में रहने लगे हम। 
प्यार से जुड़े, दिल से जुड़े, 
लेकिन यह परदेस ने मुझसे मेरे पीयू छीने। 
उसके साथ रहकर फिर अकेले रहना नामुमकिन सा है, 
सुबह की सूरज की पहली किरणों में मिलती थी उसकी झलक, 
आज अखियाँ तरसे उसके एक दीदार को, 
दिन भर भटकाये  मुझे वो,ढूढु घड़ी घड़ी मे उसके एहसास, 
लेकिन  घर के किसी कोने में ना मिले उसकी साँसे , 
सजने संवरने के लिए देखूं आईना तो दिखे मुझे तेरा ही दीदार, 
बहुत ही अकेलापन महसूस होता है, जैसे मेरी रूह भी मांगे तेरा ही संगाथ, 
रात की तनहाई जैसे काटने को दौड़े,और लंबी रातें कटे से भी ना कटे,
अंबर से निकलता विमान कि वह गूँज,जैसे डोडी जाऊं मैं पीयू के आभास में।
अब तो बस एक ही इंतजार है,
उस लम्हे का कि कब आए मेरे पीयू परदेस से, 
और बरसों से लगी ये प्यार की आग आ के बुझा जाए।
-Nitesh Prajapati 






 रचना क्रमांक :-2
#collabwithकोराकाग़ज़
#कोराकाग़ज़महाप्रतियोगिता
#नववर्ष2022
#विशेषप्रतियोगिता
#कोराकाग़ज़
#kknitesh

Nitesh Prajapati

"गाँव"
गाँव जैसे ख़्वाब ,
गाँव शब्द सुनते ही दिल में सुकून सा छा जाता है,
गाँव जहां सूरज की पहली किरण,
जो हरियाली खेतों से होकर गुजरती है,
जहां मंद मंद पवनों की गूँज और,
झील के पानी की सुमुधर आवाज, 
कानों में पड़ते ही रूह को छू जाती है,
पक्षियों का वह कर्णप्रिय संगीत,
जो सुनते ही मन प्रसन्न हो जाता है,
जहाँ की शुद्ध हवाई लहराते फसलों की, 
वो सोंधी सोंधी खुशबू,
और रात का नज़ारा जैसे आसमान में, 
चमकते हुए सितारों के बीच, 
चाँद का रोशनी बिखरना जैसे स्वर्ग की अनुभूति करवाता है। 
अगर इंसानियत की सच्ची मिसाल देखनी हो, 
तो सिर्फ गांव में मिलती है,
वहां के भोले-भाले लोग, 
और इंसानियत की बातें कुछ और ही है,
गांव में मेहमानों को भगवान का दर्जा दिया जाता है,
और उसकी खानपान और मेहमान नवाजी का तो कोई मोल नहीं,
जहाँ गाय को आज भी अपनी माता समझ कर पूजते है,
और गाय के गोबर भी आज भी पुताई करते हैं,
और उससे घर का चूल्हा जलाते हैं,
और गाय का ताजा दूध पीकर कई बीमारियों ने मुंह मोड़ लिया है,
ऐसा है हमारे भारत के गाँव का नज़ारा। 
 रचना क्रमांक :-1
#collabwithकोराकाग़ज़
#कोराकाग़ज़महाप्रतियोगिता
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