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ಅಮರೇಶ ನಾಯಕ

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A B KICHCHA

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Mohan bobonga

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A B KICHCHA

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Saket Ranjan Shukla

परंपरा, संस्कृति और भक्तिभाव आत्मविजय के साधन..! . ✍🏻Saket Ranjan Shukla All rights reserved© . Like≋Comment Follow @my_pen_my_strength .

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परंपरा, संस्कृति और भक्तिभाव आत्मविजय के साधन

जब-जब आत्मविश्वास मेरा लड़खड़ाता है,
अंतर्मन नकारात्मक ऊर्जाओं से घबराता है,

खुदके राह पर से भरोसा डगमगाने लगता है,
अविश्वास मन मस्तिष्क में घर बनाने लगता है,

दर्पण में भी पराजयी का ही प्रतिबिंब दिखता है,
ये हृदय भी जब हतोत्साहित से बोल लिखता है,

तन का सारथी मन, जब आपे में ही नहीं रहता है,
हिमराज सा हौसला, कंकड़ों की चोट से ढहता है,

जीवन सरिता में भंवरों की संख्या बढ़ने लगती है,
हर एक लहर मुझ नाविक पर भारी पड़ने लगती है,

तब हार मानने से पूर्व परमेश्वर की शरण में जाता हूँ,
आत्मध्यान कर, हर दैवीय शक्ति से गुहार लगाता हूँ,

पारंपरिक पोशाक धारण कर भक्ति भाव में रमता हूँ,
स्वयं समर्पित कर ईश्वर को, आशीष तिलक करता हूँ,
 
उपासना उपरांत ज्यों ही कोई मनोरथ मन में लाता हूँ,
सकारात्मकता का इक प्रकाशपुंज स्वयं में ही पाता हूँ,

इच्छाएं पूर्ण नहीं होती पर युक्तिद्वार सारे खूल जाते हैं,
निराशा और पराजय जैसे भाव, स्वतः ही धूल जाते हैं,

तत्पश्चात आत्मविश्वास जागृत कर नवीन साँसे भरता हूँ,
मैं इसी भांति हर बार आत्मविजयी होकर आगे बढ़ता हूँ।

IG:— @my_pen_my_strength

©Saket Ranjan Shukla परंपरा, संस्कृति और भक्तिभाव आत्मविजय के साधन..!
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✍🏻Saket Ranjan Shukla
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Nadbrahm

मिथिला इतिहास के एक बड़े हिंस्से में अपने उत्कर्ष पतन के अनगिनत किस्सों को समेटे है। वैदिक काल मे जो क्षेत्र मानव विकाश के लिए विमर्श , संवाद व विद्या साधना की भूमि रही है। ज्ञान का प्रभाव ऐसा की दुनियां के समस्त विद्वान अपने ज्ञानी होने के सामाजिक प्रमाण हेतु जनक सभा मे आकर अपनी विद्वता सिद्ध करते थे। वैदिक उपनिषद के तत्व ज्ञान का प्रवाह ऐसा की वहाँ का राजा स्वयं को राज पद , संपदा व सामाजिक मान अपमान से मुक्त यहाँ तक कि इस भौतिक देह की सीमाओं से भी मुक्त था। इसी ज्ञान के आधार पर मिथिला के सभी स

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मिथिला इतिहास के एक बड़े हिंस्से में अपने उत्कर्ष पतन के अनगिनत किस्सों को समेटे है। वैदिक काल मे जो क्षेत्र मानव विकाश के लिए विमर्श , संवाद व विद्या साधना की भूमि रही है। ज्ञान का प्रभाव ऐसा की दुनियां के समस्त विद्वान अपने ज्ञानी होने के सामाजिक प्रमाण हेतु जनक सभा मे आकर अपनी विद्वता सिद्ध  करते थे। वैदिक उपनिषद के तत्व ज्ञान का प्रवाह ऐसा की वहाँ का राजा स्वयं को राज पद , संपदा व सामाजिक मान अपमान से मुक्त यहाँ तक कि इस भौतिक देह की सीमाओं से भी मुक्त था। इसी ज्ञान के आधार पर मिथिला के सभी सम्राट विदेह कहलाते थे बिना देह अर्थात भौतिक सीमाओं से परे ज्ञान पुंज। उसी धरती पर कणाद, गौतम,अष्टावक्र जैसे तत्व ज्ञानी का ज्योति फैला। संख्या, मीमांसा के सिद्धि की ये धरती भी काल क्रम में अपने पराभव को नही रोक पाई। काल चक्र में माता जानकी की ये भूमि विप्पनता, अशिक्षा व दरिद्रता का दंश झेलने लगी। राजनीतिक वेदी पर इस क्षेत्र का विखंडन भी भारत व नेपाल के हिस्से में हो गया। इस अंतहीन यात्रा में ज्ञान भले लोप हुआ पर लोक कलाएं आज भी अपने मिथिला के अस्तित्व का गीत सब को सुनाती है। भित्ति चित्र व अहिपन ( अल्पना ) से बढ़ते हुए आज मिथिला पैंटिग उसी मिथिला की खास संस्कृति के  किस्से सुनाती है। 
यह पैंटिग हर पर्व त्योहारों में मिट्टी पर बनी, आँगन में बनी, मिट्टी के घर को लेब कर उस के दीवारों को सजाया नव जीव आवाहन की प्रक्रिया में भी तांत्रिक पैंटिग बन कोहबर( नव विवाहिता के लिए विशेष कमरा) में नव दंपति में लिए उत्तम ऊर्जा का संवाहक बानी । आज मिथिला से बाहर फैसन का भी रूप ले चुकी हमारी संस्कृति की ये अंतहीन कहानी है। 
हाँ मिथिला की बाते युगों से पुरानी है। 
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©BK Mishra मिथिला इतिहास के एक बड़े हिंस्से में अपने उत्कर्ष पतन के अनगिनत किस्सों को समेटे है। वैदिक काल मे जो क्षेत्र मानव विकाश के लिए विमर्श , संवाद व विद्या साधना की भूमि रही है। ज्ञान का प्रभाव ऐसा की दुनियां के समस्त विद्वान अपने ज्ञानी होने के सामाजिक प्रमाण हेतु जनक सभा मे आकर अपनी विद्वता सिद्ध  करते थे। वैदिक उपनिषद के तत्व ज्ञान का प्रवाह ऐसा की वहाँ का राजा स्वयं को राज पद , संपदा व सामाजिक मान अपमान से मुक्त यहाँ तक कि इस भौतिक देह की सीमाओं से भी मुक्त था। इसी ज्ञान के आधार पर मिथिला के सभी स
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