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रिपुदमन झा 'पिनाकी'

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रिपुदमन झा 'पिनाकी'

White मैं दुआओं में हमेशा के लिए ज़िन्दा रहूँ।
बददुआ न लूँ किसी की मैं न शर्मिन्दा रहूंँ।
काम हों सबकी भलाई के मेरे हाथों सदा-
नेक नगरी का हमेशा नेक बाशिन्दा रहूँ।

दिल दुखाऊँ ना किसी का तीखी कड़वी बात से।
मैं  कभी  खेलूँ  नहीं  मजबूर  के  जज़्बात  से।
साथ दूँ मैं हर क़दम सबका, मदद सबकी करूँ-
मैं  न  घबराऊँ  कभी  बिगड़े  हुए  हालात   से।

मैं कभी नीचे न गिर जाऊँ मेरे किरदार से।
पेश आऊँ मैं सभी से हर घड़ी बस प्यार से ‌
याद कर मुझको करें निन्दा मेरी ना लोग सब-
अलविदा जब लूँ कभी मैं दुनिया के बाजार से।

आरज़ू  है  ज़िन्दगी  भर  नेकियांँ  करता  रहूँ।
ग़मज़दा लोगों की झोली खुशियों से भरता रहूँ।
मैं ख़रा उतरूँ सभी की ख़ाहिशों उम्मीद पर-
रौशनी बन ज़िन्दगी में सबकी मैं जलता रहूँ।

रिपुदमन झा 'पिनाकी' 
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक

©रिपुदमन झा 'पिनाकी' #आरज़ू
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रिपुदमन झा 'पिनाकी'

White पहले  की  तरह  अब  नहीं  रहा  मेरा समाज।
बदला समय बदल गए सभी के अब मिज़ाज।
मशगूल  हो  गए  हैं  अपने  आप  में  सभी-
करने  लगे  हैं बंद  दिल के अपने सब दराज।

सब  बैठते  थे  साथ  पहले  दिन  हो  चाहे  रात।
सुख दुःख सुनाते करते थे आपस में मन की बात।
लगता  ही  नहीं  था  अलग-अलग  हैं  हम  सभी-
परिवार  थे  हम  देते  थे  एक-दूसरे का साथ।

रौनक  सी  सजी  रहती  थी  मोहल्ले  में  पहले।
खिलती थी  खुशी  बच्चों  के हर  हल्ले में पहले।
बचपन  कहीं  हैं  खो  गए  किलकारियों  वाले-
सजते  थे  जो  नगीने  बन के  छल्ले  में  पहले।

अब तो उदासियों ने घर है अपना बनाया।
वीरानियों का हर तरफ है बिछ गया साया।
रहने  लगे  हैं  लोग  बंद  अपने  घरों  में-
जाने  समय  ने  कैसा  कालचक्र  घुमाया।

अब  एक-दूसरे  से  लोग  कटने  लगे  हैं।
खुद में ही सभी आजकल सिमटने लगे हैं।
होने  लगे  हैं  दूर  सभी  ताल्लुकात  से-
आपस में मेल-जोल सबके घटने लगे हैं।

रिपुदमन झा 'पिनाकी'
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक

©रिपुदमन झा 'पिनाकी' #बदल_गया_समाज  कविता
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रिपुदमन झा 'पिनाकी'

White मैं दुआओं में हमेशा के लिए ज़िन्दा रहूँ।
बददुआ न लूँ किसी की मैं न शर्मिन्दा रहूंँ।
काम हों सबकी भलाई के मेरे हाथों सदा-
नेक नगरी का हमेशा नेक बाशिन्दा रहूँ।

दिल दुखाऊँ ना किसी का तीखी कड़वी बात से।
मैं  कभी  खेलूँ  नहीं  मजबूर  के  जज़्बात  से।
साथ दूँ मैं हर क़दम सबका, मदद सबकी करूँ-
मैं  न  घबराऊँ  कभी  बिगड़े  हुए  हालात   से।


मैं कभी नीचे न गिर जाऊँ मेरे किरदार से।
पेश आऊँ मैं सभी से हर घड़ी बस प्यार से ।
याद करके लोग मुझसे मत करें निन्दा कभी-
अलविदा जब लूँ कभी मैं दुनिया के बाजार से।

रिपुदमन झा 'पिनाकी'
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक

©रिपुदमन झा 'पिनाकी' #ख्वाहिश
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रिपुदमन झा 'पिनाकी'

White वो बात कहां किसी और में है, जो बात है अपनी हिन्दी में।
निज भाव, प्रेम अभिव्यक्ति की हर बात है अपनी हिन्दी में।।

गौरवशाली स्वर्णिम अपनी हिन्दी की गौरवगाथा है।
है मातृभूमि अपनी हिन्दी और हिन्दी मातृभाषा है।।

हिन्दी संस्कृत की सुता सुघड़, सब भाषाओं की जननी है।
हिन्दी भारत की बिंदी है, हिन्दी प्यारी मनमोहिनी है।।

हर शब्द में भावों की सरिता, अर्थों में सार समाहित है
जीवन दायिनी इसमें रस है, अमृत की धार प्रवाहित है।।

है सरल सुगम भाषा हिन्दी, हिन्दी कोमल है भोली है।
मिश्री से मीठी और सरस ये अपनी हिन्दी बोली है।।

है चली आ रही बरसों से हिन्दी संस्कृति का सार लिए।
अपने भीतर अनुशासन और मर्यादा का आधार लिए।।

हम भाग्यवान भारतवासी हिन्दी की हैं संतान सभी।
कर्त्तव्य हमारा बनता है हिन्दी का करें सम्मान सभी।।

हिन्दी से अपनी प्रतिष्ठा है हिन्दी का नहीं अपमान करें।
हिन्दी को अपनाकर अपनी हिन्दी का हम उत्थान करें।।

हिन्दी में हम-सब बात करें हिन्दी में सारे काम करें।
हिन्दी के संग इस दुनिया में भारत का ऊंचा नाम करें।।

रिपुदमन झा "पिनाकी"
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक

©रिपुदमन झा 'पिनाकी' #hindi_diwas  हिंदी कविता

#hindi_diwas हिंदी कविता

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रिपुदमन झा 'पिनाकी'

White मुझको  बताओ  कौन  बेइमान  नहीं  है।
इक आदमी, जो झूठ की दूकान नहीं है।
जो छल रहा है शामो सुबह रोज़ जहाँ को-
वह  पूछता  है  तुझमें  क्या ईमान नहीं  है।

रिपुदमन झा 'पिनाकी'
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक

©रिपुदमन झा 'पिनाकी' #Sad_Status  'अच्छे विचार'

#Sad_Status 'अच्छे विचार'

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रिपुदमन झा 'पिनाकी'

White 

गणेशा  आप  पूजन  में, सदा  पूजे  प्रथम  जाते।
मनोमय मन से जो ध्याता, सदा उसके ही हो जाते।
हरो तुम विघ्न विघ्नेश्वर, जगत कल्याण करते हो-
विनायक आप भक्तों के, सभी गुण दोष बिसराते।

कि  हे  गणराय  लंबोदर, नमन स्वीकार हो मेरा।
करूं पूजन प्रथम तुमको, जगत आधार हो मेरा।
विनायक आपका वंदन, करूं पूजन करूं निस दिन-
यही  आशीष  मैं  मांगूं, सुखी  संसार  हो  मेरा।

रिपुदमन झा 'पिनाकी' 
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक

©रिपुदमन झा 'पिनाकी' #Ganesh_chaturthi
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रिपुदमन झा 'पिनाकी'

White प्रथम गुरु माता से सीखते हैं हम लिखना पढ़ना।
और गुरु बन पिता सिखाते ऊँचाई पर चढ़ना।
क़दम - क़दम पर संघर्षों, बाधाओं की ठोकर है-
मात पिता ही थाम के ऊँगली सिखलाते हैं बढ़ना।

दूजे गुरु जो पूज्य हमारे ज्ञान की दीक्षा देते हैं‌
अनुशासन,कर्त्तव्यनिष्ठता की हमें शिक्षा देते हैं।
ज्ञानकोष के अनुपम मोती भरते हैं झोली में-
दानी गुरु महान दान में शिक्षा की भिक्षा देते हैं।

जीवन गुरु महान सिखाता इन तीनों से ज्यादा‌
नहीं असंभव कुछ भी बंदे कर ले अगर इरादा।
बाधाएं कितनी भी आएं कभी हौसला टूटे ना -
बिना हार माने है जीतना कर लो ऐसा वादा।

जीवन में हम क़दम क़दम पर सीखते हैं जीवन से।
जीवन  को  हम  कुछ  देते  और  लेते  हैं जीवन से।
जीवन जैसा गुरु नहीं कोई जग सा नहीं विद्यालय-
सीख दे जाते हैं जो पाते गुरु कितने हैं जीवन से।

रिपुदमन झा 'पिनाकी'
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक

©रिपुदमन झा 'पिनाकी' #teachers_day
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रिपुदमन झा 'पिनाकी'

White 

आनंद सागर श्याम सुंदर, कमलनयन जनार्धनम।
श्रीकांत रविलोचन निरंजन, बंसीधर नारायणम।।
परब्रह्म परमात्मा पुरुषोत्तम, परम्  सुखदायकम।
स्वर्गाधिपति वैकुंठपति, हरि अच्युतम अधिनायकम।।

ऋषिकेश केशव मदनमोहन, ईश्वरम जगदीश्वरम।
हे नंदनन्दन अद्भुत: , मोहन मुकुंदम माधवम।।
गोपाल अजया अक्षरा दामोदरम शुभदायकम।
करुणाकरम श्री वत्सलम श्री कृष्ण भव भय हारणम ।।

मुरली मनोहर कृष्ण गिरिधर, निज शरण में लीजिए।
निज स्नेह की वर्षा सदा, गोविंद मुझ पर  कीजिए।।
आनंद सागर श्याम सुंदर, कमलनयन जनार्दना
श्रीकांत रविलोचन निरंजन, अब मेरी सुध लीजिए।

जगदीश मोहन जगतपालक, बिगड़ी मेरी संवारिए।
गोविन्द माधव नंदनंदन, मुझ अधम को तारिए।।
माधव  महेंद्र  मयूर  मधुसूदन,  नजर  तो  डारिए।
हे नाथ करुणाकर कृपा कर, भव भंवर से उबारिए।।

रिपुदमन झा 'पिनाकी' 
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक

©रिपुदमन झा 'पिनाकी' #Krishna
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रिपुदमन झा 'पिनाकी'

White मुझे सब लोग अच्छे ही मिले हैं।
कमी बस एक मुझमें ही पले हैं।
नहीं क्यों बन सका सबकी तरह मैं-
यही दिन रात दिल को भी गिले हैं।

अकेला  मैं  हज़ारों  काफ़िले  हैं।
कि बढ़ती दूरियों के सिलसिले हैं।
छुड़ा  कर  हाथ  बैठे  हैं  किनारे-
चले जो साथ बन कर काफ़िले हैं।

नयन  में  जो  मेरे  सपने  पले  हैं।
अभागे  सब  दुखाग्नि  में जले  हैं।
तलाशूँ मैं कहाँ मंज़िल को अपने-
हुए  ओझल  मेरे  हर  मरहले  हैं।

रिपुदमन झा 'पिनाकी' 
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक

©रिपुदमन झा 'पिनाकी' #मिले_हैं
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रिपुदमन झा 'पिनाकी'

White 

जश्न-ए-आज़ादी है हम-सब मिल कर जश्न मनाएंगे।
फहरा कर भारत का तिरंगा वंदेमातरम् गाएंगे।।

गाएंगे यशगान भरत के वंशज उन महावीरों की।
वीर प्रताप, शिवाजी, लक्ष्मीबाई से रणधीरों की।।

भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु झूल गए फाँसी पर जो।
आज़ादी के दीवाने आज़ाद और सावरकर को।।

आज भले हर गाँव गली में आजादी का मेला है।
इस आज़ादी को पाने में कितनों ने दुःख झेला है।।

याद करें उन जाबाँंजों को जो फाँसी पर झूले हैं।
जिनके नाम ज़ुबाँ पर हैं और जिन्हें अभी तक भूले हैं।।

आभारी हैं उन वीरों की जिसने तन-मन वार दिए।
तोड़़ गुलामी की जंजीरें हम पर हैं उपकार किए।।

वीरों की कुर्बानी का हम कैसे कर्ज़ चुकाएंगे।
जब-तक साँस रहेगी उनको भूल नहीं हम पाएंगे।।

रिपुदमन झा 'पिनाकी' 
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक

©रिपुदमन झा 'पिनाकी' #happy_independence_day
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