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ravikantyadav2025
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Ravikant Yadav

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Ravikant Yadav

है प्यार गर  तुमको  मगर,
फिर देखना भी ये चाहिए।
मंजूर है क्या तुमको दगा,
सोचना तो भी ये चाहिए।
उस दर्द से मिलकर यहां,
क्या चल सकोगे तुम वहां?
जिस दर्द ने  लूटा तुम्हे,
दोष था वादा ए वफा तेरा जहां!
फिर पूंछकर कर लो यकीं,
क्या टूटकर तुम उठ पाओगे,
हां फिर भी है तेरा जबाव!
तो फिर है मुझे ये विश्वास,

तुम आए ही हो लुटने के लिए!!
है यही इक तुम्हारा अख्तियार!! 
                          ~रविकांत यादव

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Ravikant Yadav

#कुछ बातें||रविकांत यादव
मन की कल्पना हृदय के विचार,
सहज नहीं है व्यक्त कर पाना इन्हें।
ये उमड़ते हैं, मन में निरंकुश होकर
जैसे बिन बुलायी बरसात आसमां से,
बरस रही हो झमाझम गरज गरज कर।
कभी कभी इनका वेग आवेग बनकर,
कुंठित कर देता है मन की शांति।
बेमक़सद बेपरवाह बेजान सी,
देह मेरी फिर हो जाती है अशांत।
जीवन की बेमानी तलाश से दूर,
सोचता हूं उस विशाल तरु को,
जो खड़ा है वर्षों से वक्त की,
शह को मात देकर।
और देखता हूं उस तटिनी के बहाव को,
जो बहती है निर्झर अनंत से अनंत तक।
क़दम लौट पड़ते हैं फ़िर यकायक,
किसी मक़सद की ओर।।
                                 ~रविकांत यादव
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Ravikant Yadav

#रंज

सफ़र तेज़ी से गुजरा,
तुम्हारे साथ होने से।
अलग फिर हो गई रंगत,
तुम्हारी बात करने से।
वो राहें आज भी अक्सर,
मुझे आवाज़ देती हैं,
महक तेरे क़दमों की,
जिन्हें गुलज़ार करती थीं।
जो कलियां ओस की बूंदों से
कभी खुद को सजाती थीं,
अभी वीरान हैं वो सब,
पर तुम्हें ही गुनगुनाती हैं।
पवन तो आज भी बहती है,
मगर वो बात ही है कहां,
जो तेरे जिस्म को छूकर,
शरम से मुस्कुराती थी।
निकलता चांद है अक्सर,
यही अब सोचकर घर से
कभी फिर से मिलोगी तुम,
उसी छत की मुंडेरी पे।
जो राहें छोड़कर जाती हैं,
कभी बापिस नहीं आतीं।
ये सब मालूम है मुझको,
पर अभी तक राह तकता हूं।
                   ~रविकांत यादव
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Ravikant Yadav

#रंज

सफ़र तेज़ी से गुजरा,
तुम्हारे साथ होने से।
अलग फिर हो गई रंगत,
तुम्हारी बात करने से।
वो राहें आज भी अक्सर,
मुझे आवाज़ देती हैं,
महक तेरे क़दमों की,
जिन्हें गुलज़ार करती थीं।
जो कलियां ओस की बूंदों से
कभी खुद को सजाती थीं,
अभी वीरान हैं वो सब,
पर तुम्हें ही गुनगुनाती हैं।
पवन तो आज भी बहती है,
मगर वो बात ही है कहां,
जो तेरे जिस्म को छूकर,
शरम से गुनगुनाती थी।
निकलता चांद है अक्सर,
यही अब सोचकर घर से
कभी फिर से मिलोगी तुम,
उसी छत की मुंडेरी पे।
जो राहें छोड़कर जाती हैं,
कभी बापिस नहीं आतीं।
ये सब मालूम है मुझको,
पर अभी तक राह तकता हूं।
                   ~रविकांत यादव
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Ravikant Yadav

#रंज
सफ़र तेज़ी से गुजरा,
तुम्हारे साथ होने से।
अलग फिर हो गई रंगत,
तुम्हारी बात करने से।
वो राहें आज भी अक्सर,
मुझे आवाज़ देती हैं,
महक तेरे क़दमों की,
जिन्हें गुलज़ार करती थीं।
जो कलियां ओस की बूंदों से
कभी खुद को सजाती थीं,
अभी वीरान हैं वो सब,
पर तुम्हें ही गुनगुनाती हैं।
पवन तो आज भी बहती है,
मगर वो बात ही है कहां,
जो तेरे जिस्म को छूकर,
शरम से गुनगुनाती थी।
निकलता चांद है अक्सर,
यही अब सोचकर घर से
कभी फिर से मिलोगी तुम,
उसी छत की मुंडेरी पे।
जो राहें छोड़कर जाती हैं,
कभी बापिस नहीं आतीं।
ये सब मालूम है मुझको,
पर अभी तक राह तकता हूं।
                   ~रविकांत यादव
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Ravikant Yadav

#मांकाआंचल / रविकांत यादव
__________________________
आंचल मां तेरा मुझको, लगता है जैसे मरहम,
रखवाली बुरी बला से ,ये करता है मेरी हरदम,
मौसम था वो गर्मी का,सूरज ने थी तपिश दिखाई,
छोटा सा मैं तेरी गोदी में, तूने आंचल की छांव उड़ाई।
तेरा पहलू मां लगता था तब, मुझको बस एक सहारा,
फिरता था पल्लू पकड़े मां, आंगन का हर एक किनारा।
दुनिया के ये झूठे रिश्ते, उलझाते नहीं थे  हमको,
दिखती थी मां तेरी सूरत, मूरत हर एक में मुझको।
मुझे याद है मां वो सर्दी थीं, काली रात पूस की थी छाई,
था तीव्र ज्वर अत्यंत दर्द,वो घड़ी अजब सी थी आयी,
सिरहाने बैठकर तेरे, माथे पर तूने मेरे, गीली पट्टी थी लगाई,
लोरी और थपकी से माई, तूने मेरी पीड़ा भगाई।
जी चाहता है फिर चूम ले मां, मेरे इन हाथों को ,
सीने से लगाकर अपने, दोहरा दे उन बातों को।
बाहों में  फ़िर से भर के मां,  उस बचपन में लौटा दे।
अपने हाथों से माई, फिर घी, गुड़, रोटी और खिला दे।
मैं वयस्क हुआ,तू बृध्द हुई ,ये है जीवन की माया,
करता है मां अब दिल मेरा , मैं बनके रहूं तेरी  छाया।
हे ईश्वर है अनुनय मेरा, कि जब जब जीवन को पाऊं,
मुझे मिले सदा आंचल तेरा, तेरी कोख से सांसे पाऊ।
आंचल मां तेरा मुझको, लगता है जीवनदाई,
 हर ग़म या तनहाई में,दिल को है ये सुखदाई।
                                              
                                                      ~ रविकांत यादव

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