White रात बुझते हुए शोलों से...शरारा कह कर जुगनुओं से पूछा मैंने रस्ता.. सितारा कह कर दीद ने तेरी बख्शें ...ज़ख्म बहुत आँखों को फिर भी हर रोज़ तुझे देखा...नज़ारा कह कर खेल नाज़ुक है बड़ा इश्क़ का..समझा ये फिर बाजी जब छोड़ गया जीती..वो हारा कह कर जो गिरा नज़रों से इक बार..गुहर हो चाहे फिर रखा उसको न हमनें भी..दुबारा कह कर उस बुलंदी पे था..पहुंची न सदा भी उस तक यूँ तो उसको ख़ुदा भी हमनें.. पुकारा कह कर रात पहलू में मिरे... देर तलक वो महका ज़ख्म जो आख़िरी रखा था... शुमारा कह कर ©Kumar Dinesh #rainy_season