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dineshsharma2234
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Kumar Dinesh

"थाम उंगली लफ़्ज़ों की,बज़्म में पैकर ख़ुद का उकेरता हूँ मैं ख़ुद ही में ख़ुद ही के खोने की बेहिसी से,फ़रागत ढूँढता हूँ मैं"

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Kumar Dinesh

White रात बुझते हुए शोलों से...शरारा कह कर
जुगनुओं से पूछा मैंने रस्ता.. सितारा कह कर

दीद ने तेरी बख्शें ...ज़ख्म बहुत आँखों को
फिर भी हर रोज़ तुझे देखा...नज़ारा कह कर

खेल नाज़ुक है बड़ा इश्क़ का..समझा ये फिर
बाजी जब छोड़ गया जीती..वो हारा कह कर

जो गिरा नज़रों से इक बार..गुहर हो चाहे
फिर रखा उसको न हमनें भी..दुबारा कह कर

उस बुलंदी पे था..पहुंची न सदा भी उस तक
यूँ तो उसको ख़ुदा भी हमनें.. पुकारा कह कर

रात पहलू में मिरे... देर तलक वो महका
ज़ख्म जो आख़िरी रखा था... शुमारा कह कर

©Kumar Dinesh #rainy_season
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Kumar Dinesh

White दुखों के बदले में क्या भला ग़मगुसार देंगे
इक आध आँसू जो देंगे भी तो उधार देंगे

बुरी नज़र से नज़र हमारी उतारनी थी
किसे ख़बर थी नज़र से ही वो उतार देंगे

ये आँखे पानी की दो दुकानें खुली हुई हैं
ग़मों के गाहक बढ़ेंगे तो कारोबार देंगे

मुनाफ़िक़ों से मुहब्बतों का सिला न पूछो
वो फल तो रख लेंगे और पत्ते उतार देंगे

उदास ख़ाना-ब-दोश ख़्वाबों से बच के रहना
ज़रा सी झपकी लगी तो टाँगें पसार देंगे

तमाम लम्हे हैं ज़िंदगी के सिपाही 'कुमार'
अना जो रख्खी तो दो मिनट में सुधार देंगे

गमगुसार = हमदर्द
मुनाफ़िक़ = दोगला/अवसरवादी

©Kumar Dinesh #GoodMorning
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Kumar Dinesh

White हादसे पर हादसे, मुझ पर गुज़र जाने के बाद
हाँ मैं जिंदा हूँ मगर,थोड़ा सा मर जाने के बाद

ग़र ताल्लुक तर्क़ करना है,सलीके से करो
ये नदी चढ़ भी तो सकती है,उतर जाने के बाद

अब किसी गुमनाम मंज़िल का सफ़र, है सामने
जाने पहचाने सभी रस्ते,ठहर जाने के बाद

उसको मेरी,मुन्तज़िर आंखे दिखाना दोस्तों
लौट आए वो अगर,मेरे गुज़र जाने के बाद

एक बेपरवाह सा अंदाज़ है,और कुछ नहीं
क्या बचेगा हममें, हम जैसा सुधर जाने के बाद

ढूँढ़ लेती है उदासी रोज़ मुझको, और फिर
दो-पहर रहती है मुझमें, दोपहर जाने के बाद

मुन्तज़िर = प्रतीक्षारत

©Kumar Dinesh #good_night
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Kumar Dinesh

White बे-नक़्श बे-निशान हुए जा रहे हैं हम
कहने को आसमान हुए जा रहे हैं हम

ऐसा पसंद आया हमें रंगे-ख़ामुशी
पत्थर के हम-ज़ुबान हुए जा रहे हैं हम

दरया से दिल्लगी का सिला हमसे पूछिए
सहरा की दास्तान हुए जा रहे हैं हम

जब से तेरे ख़याल की ख़ुशबू ने छू लिया
जंगल से गुलसितान हुए जा रहे हैं हम

नफ़रत भी बे-असर है मुहब्बत भी बे-असर
किस दर्ज़ा सख़्त-जान हुए जा रहे हैं हम

अपने ही घर में आते हैं मेहमान की तरह
अपने ही मेज़बान हुए जा रहे हैं हम

रोशन हुआ चराग़ किसी और के लिए
बे-बात ख़ुश-गुमान हुए जा रहे हैं हम

जिस तीर का निशाना हमारी ही सम्त है
उसी तीर की कमान हुए जा रहे हैं हम

दो रास्ते रवाँ हैं मुहब्बत की राह पर
दोनों के दरमियान हुए जा रहे हैं हम

अहवाल आगे क्या हो ख़ुदा जाने,धूप में
फ़िलहाल सायबान हुए जा रहे हैं हम
अहवाल = भविष्य   सायबान = छाँव/शरण

©Kumar Dinesh #good_night
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Kumar Dinesh

White लबों पे उसके तबस्सुम था..अर्ज़-ए-हाल के साथ
फ़रेब उसने दिया था.. बड़े कमाल के साथ

अभी भी वक़्त है...पहचान लो हमें वरना
हमारा नाम भी लोगे तो..एक मिसाल के साथ

न पूछ अब के ...दिल-ए-नातवाँ पे क्या गुज़री
तिरा ख़याल भी आया तो.. एक मलाल के साथ

जो लोग ज़र्फ़ से खाली हैं.. पुर-तकब्बुर हैं
उरूज़ मिलता है उनको मगर..ज़वाल के साथ

ज़वाब दे तो दिया उसने...सर झुका के मगर
वो मुझको छोड़ गया.. इक नए सवाल के साथ

अर्ज़-ए-हाल = हाल बताना
दिल-ए-नातवाँ = कमजोर दिल      मलाल = दुख/पीड़ा
ज़र्फ़ = स्वाभिमान     पुर-तकब्बुर = घमंड से चूर
उरूज़ = उन्नति।    ज़वाल = पतन

©Kumar Dinesh #Sad_shayri
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Kumar Dinesh

White ज़िन्दगी क्या है ?? अज़ीयत के अलावा क्या है ?
क्या है नज़दीक ?? मुसीबत के अलावा क्या है ?

एक दो रिश्तों ने अनमोल किया है मुझको
वरना रिश्तों में तिज़ारत के अलावा क्या है ?

इक उदासी जो रग-ए-जाँ में रवां रहने लगी
तेरे होने की अलामत के अलावा क्या है ?

बदला मौसम तो परिंदों ने शज़र छोड़ दिया
आदमी में भी इस आदत के अलावा क्या है ?

ग़ैर ज़िस्मों में तुझे सोचते रहने की सनक
तुझको खोने की नदामत के अलावा क्या है ?

क़ाबिल-ए-फ़क्र कोई काम बता, साबित कर
दीन-दारों में अक़ीदत के अलावा क्या है ?

अज़ीयत = पीड़ा   तिज़ारत = व्यापार
रग-ए-जाँ = जीवन नाड़ी    अलामत = छाप/मुहर/निशानी
शज़र = पेड़  नदामत = पश्चाताप
दीन-दार =धर्मनिष्ठ   अक़ीदत =पूजा

©Kumar Dinesh #sad_shayari
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Kumar Dinesh

White अपना मक़ाम अपनी जग़ह.. जान कर मुझे
आ ही गया है मुझ में तो.. गुंजान कर मुझे

तू ही दुआ है तू ही दवा.. बहस ख़त्म कर
मैं झूठ कह रहा हूँ तो.. नुक्सान कर मुझे

दुनिया मिला कर देंगे तुझे.. नामुराद लोग
भड़के जो प्यास पी ले.. मगर छान कर मुझे

रूठा अगर मैं तुझसे.. ख़ुदा रूठ जाएगा
ऐसे न छेड़ यूँ न.. परेशान कर मुझे

वीरानियाँ भी रश्क़ करें... देखें जो इधर
इस बार जाते जाते.. यूँ वीरान कर मुझे

आँखों में आँखे डाल के देखा.. और इसके बाद
दुनिया ने अपनी राह ली.. पहचान कर मुझे

इक बार दिल दिया तो दिया.. तेरी चीज़ हूँ
ख़ुद पर हज़ार जानों से.. क़ुर्बान कर मुझे

मैं जानता हूँ.. पहली मुहब्बत के रंज़ को
अपनी तड़प का आख़िरी.. उन्वान कर मुझे

नींद आए तो समझ ले कि.. चादर हूँ मेरी जान
सो जा ज़मीन ए दिल पर.. कहीं तान कर मुझे
रंज़= दुख    उन्वान = शीर्षक title

©Kumar Dinesh #love_shayari
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Kumar Dinesh

White हमेशा इश्क़ का मक़सद, बदन पाना नहीं होता
कुएं के पास बैठा हर कोई, प्यासा नहीं होता

तुझे क्या इल्म, कितनी मन्नतों से काम होते हैं
दुआएं सबकी होती हैं, ख़ुदा सबका नहीं होता

मैं बस ये सोचता रहता कि, क्या वो शख़्स रुक जाता
मेरे आवाज़ देने से भी कुछ होता? नहीं होता

पकड़ कर बाल फिर दुख के कहा मैंने, दफ़ा हो जा
मगर वो चीख़ते चिल्लाते बोला, जा नहीं होता

©Kumar Dinesh #love_shayari
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Kumar Dinesh

White 
एक ख़याल..

शराब,ख़ामुशी,मेरी अना.. तुम्हारा नाम
तुम्हारे बाद बहरहाल था..तुम्हारा नाम

किसी के कहने पे.. हमनें समेटा है वर्ना
तमाम रोज़ तो बिखरा रहा.. तुम्हारा नाम

ख़ामोशियों ने भी..लब खोलकर दुआएं दीं
हमारे होंठों पर इस दर्ज़ा था..तुम्हारा नाम

किसी को देखें तो.. उसको सुनाई देता है
हमारी आँखों ने इतना सुना.. तुम्हारा नाम

कई सितारे लगाए गए.. करीने से
फिर आसमान में लिखा गया.. तुम्हारा नाम

मेरी सदाएँ पहाड़ों ने.. कर तो दीं वापस
हर एक सिम्त मगर गूँज उठा..तुम्हारा नाम

कभी जो लौट के आयीं तो..पाओगी मुझको
नदी के पानी पे लिखता हुआ..तुम्हारा नाम

©Kumar Dinesh #sad_shayari
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Kumar Dinesh

White लिपटे हैं मुझसे यादों के कुछ तार..और मैं
ठंडी हवाएं सुब्ह की,अख़बार.. और मैं

जागते रहे हैं साथ ही अक्सर ही तमाम शब
मेरी ग़ज़ल के कुछ नए अशआर..और मैं

क्या जाने अब कहाँ मिलें,कितने दिनों के बाद
लग जाऊँ क्या तेरे गले इक बार..और मैं

अपनी लिखी कहानी को ही जी रहा हूँ अब
इक जैसा ही तो है ..मेरा क़िरदार और मैं

पहले तो खूब तलुओं को छाले अता हुए
अब हमसफ़र है रास्ता पुरखार.. और मैं

ग़म था न कोई इश्को मुहब्बत की फ़िक्र थी
जीते थे ज़िंदगी को मेरे यार..और मैं

अक्सर ही करते रहते हैं ख़ामोश गुफ़्तगू
लग कर गले से आज भी..दीवार और मैं

अशआर =शे'र का बहुवचन   पुरखार=काँटो भरा

©Kumar Dinesh #wallpaper
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