बैठ कर सुलझाने से भी ख़त्म हो जाती हैं उलझनें सारी, ज़रा सी बात पर रिश्तों की डोर काटना ज़रूरी तो नही। प्यार की भाषा तो जानवर भी समझ जाते हैं ज़रा सी बात पर छोटों को डांटना ज़रूरी तो नहीं। गर औलादें चाहे तो, आराम से गुजारा हों मां बाप का। जायदाद की तरह रिश्तों को बांटना ज़रूरी तो नहीं। है काबिलियत तो, मंजिल खुद-बा-खुद चल कर आएगी। बुलंदियों की खातिर, किसी के तलवे चाटना ज़रूरी तो नहीं। बैठ कर सुलझाने से भी ख़त्म हो जाती हैं उलझनें सारी, ज़रा सी बात पर रिश्तों की डोर काटना ज़रूरी तो नही। प्यार की भाषा तो जानवर भी समझ जाते हैं ज़रा ज़रा सी बातों पर