किसी को मिल रहे छप्पन तरह के पकवान हर रोज, किसी को पेट भरने के लिए एक रोटी की है ख्वाहिश। किसी के दिन गुजरते है बड़े आलिशान महलो मे, किसी को सिर छुपाने के लिए एक कोठी की है ख्वाहिश। बहुत ही सर्द रातों मे जब कोई कंबल मे सोता है, उसी वक़्त किसी को सोने के लिए बस एक धोती की है ख्वाहिश। ऐसा नहीं है कि जो महलो मे रहते है उन्हें ख्वाहिश नहीं होती, उनको भी अपने हाथ में रकम मोटी की है ख्वाहिश। कुछ जो उम्र के अंतिम पड़ाव पर पहुँच चुके है बच्चो के संग, उनको भी खेलने के लिए एक पोती की है ख्वाहिश। जो वक़्त के जिस मुकाम पर है वैसी ही ख्वाइश करता है, मुझसे तो बस कभी कोई रूठे ना इतनी छोटी सी है ख्वाइश।। कृतिका #khwaish #dilkibat #justawish