राजनीति और योग दोनों का अजब संयोग, योग में हैं राजनीति और, राजनीति में योग। कूदासन की गति तीव्र हैं पार्टी बदले दिन में चार, नाड़ी शोधन के नाम पर वैमनस्यता का फैलाता रोग। इधर से सुनकर उधर निकलता अनुलोम पर भारी विलोम, कपालभाति को उल्टा कर समाजसेवा का कलुषित भोग। भ्रामरी के भवसागर में सिंहासन की अजब दौड़, वज्रासन में बैठे-बैठे निपट निहारे आम लोग। चुनावों में हो मंडूकासन पवन मुक्तासन में फेंकते, चुनाव निपटते जनता करती शशांकासन के अचूक प्रयोग। संकटासन में जब होता समाज शवासन में सिस्टम हो जाते, नटराजासन में नाचती दुनियां शीर्षासन वाला होता योग। ©Kumar Bhupesh #राजनीति_और_योग