नज़्म मैं वापस लौट आऊँगा _________________ मैं इक वीरान बस्ती में, मैं पागल ख़ुद परस्ती में मैं अब अपनी ही मस्ती में, मैं इक सहरा की कश्ती में अकेला जी रहा हूँ मैं सभी दुख पी रहा हूँ मैं मेरे आने की अब मुझको भी है उम्मीद नहीं कोई मगर फिर भी मेरा दिल कह रहा है बस यही इक बात मैं वापस लौट आऊँगा मैं इक वीरान बस्ती में, मैं पागल ख़ुद परस्ती में मैं अब अपनी ही मस्ती में, मैं इक सहरा की कश्ती में अकेला जी रहा हूँ मैं सभी दुख पी रहा हूँ मैं मेरे आने की अब मुझको भी है उम्मीद नहीं कोई मगर फिर भी मेरा दिल कह रहा है बस यही इक बात मैं वापस लौट आऊँगा