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वसुधा चलो कुछ ऐसा करते है जिन्दगी देती है उसे उस

वसुधा 

चलो कुछ ऐसा करते है जिन्दगी देती है उसे उसीका कुछ अर्पण करते है l 
बड़े बेवफा है हम अपनी जमी से अपने आसमान से फूल पत्ते खेत खलिहानौ से lइस्के जीवन और इंतजामो से 

               गर्म भाप पर हमने कई जिंदगियां चलायी l.                
  बडी आबादी को पालने कई नीतिया बनायी l
कच्चे को पक्का कर गये हम पल भर मैं 
हमने अपनी ही धरती को जहर की बूंदे पिलायी 

बड़े बड़े कारखानों के उत्पादनों की दुर्गंध 
कीचड़ सा मट्मेला जहरीला जल 
कांच सी गंगे यमुने बहती थी कलकल 
पीते गये हम बेफिक्र हलाहल 

संदेशा धरती देती देता कभी ये आसमान 
वक्त अभी भी है सुधर जाओ ए इंसान 
पर पगो पे जानवरो की चमड़िया सजती गयी 
पत्थरो के जंगलो की बस्तियां सजती गयी 

उजाड़ डाली हमने कई खुशबूदार गालिया 
कई पंछी मस्ताने कई अलबेली तितलियाँ 
धरती माँ है और माँ को दर्द होगा 
और अगर माँ को दर्द होगा तो तेरा क्या होगा 

पर अपनी ही धून मैं सवेरे सजाए 
माँ को भूले मदहोशी मैं जाए 
बनाए चलाए खिलाए जहर 
ऐसा भी क्या है पेसो का शहर 

धुन्द्ला गया आसमान धरती हो गयी बंजर 
मूकदर्शक बने हुऐ है देख रहे है मंजर 
अंतर इतना है तुम अपनी सोच रहे हो 
प्रकृति मर रही है क्या तुम देख रहे हो l

खोजे धरती के गर्भ मैं उपवन 
नगीनौ का जखीरा हीरों का चमन 
पर ना देखे धरती के विलाप को 
मौसम की बदलती तरंगे और आनेवाले सेलाब को l

अब जब लोग घुट घुट मर रहे है 
कोरोना के साए मैं जिन्दगी चला रहे है 
प्रकृति की शक्ति का आभास होरहा है 
कितने छोटे है हम ये अहसास होरहा है l

अभी भी वक्त है अभी भी संभल जाओ 
एक दूसरे को ना कोसो खुद ही बदल जाओ 
जो सांचा प्रकृति ने गढ़ा है 
उसीमे रहो उसीमे ढल जाओ ..

स्वरचित - रणधीर सिंह गहलोत आजके महौल को देखते हुऐ मैं अपनी कृति आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हु l आज जो कुछ भी हमारे जीवन मैं हो रहा है यह कही ना कही हमारी ही देन है l  मैं अपनी इस कविता के माध्यम से सबको नही समझा सकता पर एक दृश्य जो आपकी नजरो मैं भी है आपको याद दिलाना मेरा मकसद है l  उसपे कार्य करना मेरा और आपका कर्म 

#India #Love #poems #corona #COVID #COVIDー19 #writers #writers  #Divine
वसुधा 

चलो कुछ ऐसा करते है जिन्दगी देती है उसे उसीका कुछ अर्पण करते है l 
बड़े बेवफा है हम अपनी जमी से अपने आसमान से फूल पत्ते खेत खलिहानौ से lइस्के जीवन और इंतजामो से 

               गर्म भाप पर हमने कई जिंदगियां चलायी l.                
  बडी आबादी को पालने कई नीतिया बनायी l
कच्चे को पक्का कर गये हम पल भर मैं 
हमने अपनी ही धरती को जहर की बूंदे पिलायी 

बड़े बड़े कारखानों के उत्पादनों की दुर्गंध 
कीचड़ सा मट्मेला जहरीला जल 
कांच सी गंगे यमुने बहती थी कलकल 
पीते गये हम बेफिक्र हलाहल 

संदेशा धरती देती देता कभी ये आसमान 
वक्त अभी भी है सुधर जाओ ए इंसान 
पर पगो पे जानवरो की चमड़िया सजती गयी 
पत्थरो के जंगलो की बस्तियां सजती गयी 

उजाड़ डाली हमने कई खुशबूदार गालिया 
कई पंछी मस्ताने कई अलबेली तितलियाँ 
धरती माँ है और माँ को दर्द होगा 
और अगर माँ को दर्द होगा तो तेरा क्या होगा 

पर अपनी ही धून मैं सवेरे सजाए 
माँ को भूले मदहोशी मैं जाए 
बनाए चलाए खिलाए जहर 
ऐसा भी क्या है पेसो का शहर 

धुन्द्ला गया आसमान धरती हो गयी बंजर 
मूकदर्शक बने हुऐ है देख रहे है मंजर 
अंतर इतना है तुम अपनी सोच रहे हो 
प्रकृति मर रही है क्या तुम देख रहे हो l

खोजे धरती के गर्भ मैं उपवन 
नगीनौ का जखीरा हीरों का चमन 
पर ना देखे धरती के विलाप को 
मौसम की बदलती तरंगे और आनेवाले सेलाब को l

अब जब लोग घुट घुट मर रहे है 
कोरोना के साए मैं जिन्दगी चला रहे है 
प्रकृति की शक्ति का आभास होरहा है 
कितने छोटे है हम ये अहसास होरहा है l

अभी भी वक्त है अभी भी संभल जाओ 
एक दूसरे को ना कोसो खुद ही बदल जाओ 
जो सांचा प्रकृति ने गढ़ा है 
उसीमे रहो उसीमे ढल जाओ ..

स्वरचित - रणधीर सिंह गहलोत आजके महौल को देखते हुऐ मैं अपनी कृति आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हु l आज जो कुछ भी हमारे जीवन मैं हो रहा है यह कही ना कही हमारी ही देन है l  मैं अपनी इस कविता के माध्यम से सबको नही समझा सकता पर एक दृश्य जो आपकी नजरो मैं भी है आपको याद दिलाना मेरा मकसद है l  उसपे कार्य करना मेरा और आपका कर्म 

#India #Love #poems #corona #COVID #COVIDー19 #writers #writers  #Divine