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olimetours9888
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Randheer singh Gahlot

follower of the other world letting them meet via my words to the earth founder of olime technology Pvt.Ltd.

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Randheer singh Gahlot

ये सुबह खामोश है
आस्तित्व है जीवन का 
जिने का स्वस्थ शरीर और ऊर्जा का .जैसे आगाज कर रही हो उषा तुम्हारे होने का एक दिन और मिला है समर्पण का प्रेम का अपनत्व का .
आशा की किरण से पहले इसे महसूस करिये ये साज है सोच है मौज है . ये सुबह शुद्ध है ताजा है जैसे जन्म लिया हो नये जीवन ने पक्षी नभ धरा तरूवर नीर निरन्तर वायु की मंद लहरे जैसे कह रही हो हा यही उदगम है यही आगाज है यही शंखनाद है


स्वरचित - RSG #Morning
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Randheer singh Gahlot

ये सुबह खामोश है
आस्तित्व है जीवन का 
जिने का स्वस्थ शरीर और ऊर्जा का .जैसे आगाज कर रही हो उषा तुम्हारे होने का एक दिन और मिला है समर्पण का प्रेम का अपनत्व का .
आशा की किरण से पहले इसे महसूस करिये ये साज है सोच है मौज है . ये सुबह शुद्ध है ताजा है जैसे जन्म लिया हो नये जीवन ने पक्षी नभ धरा तरूवर नीर निरन्तर वायु की मंद लहरे जैसे कह रही हो हा यही उदगम है यही आगाज है यही शंखनाद है


स्वरचित - RSG #Morning #Motivation #India #world #writers #kavya #kavita #Kahni
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Randheer singh Gahlot

मेरी आंखो से छीन ली है चहल पहल जमाने की 
कोई बहोत बडा खरीददार लगता है 
बहोत मेहमान अदृश्य है पृथ्वी पर 
ये जलसा बडा जोरदार लगता है I









WRITTEN BY-RSG #Shayar #corona #nation #bharat #Love #nazm #writers #RSG
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Randheer singh Gahlot

परिवार

भूली बिसरी यादों से क्या लेना 
उलझते संसाधनो से क्या लेना 
आनेवाले है कई मोड़ जिन्दगी मैं 
परिवार को कैसे जोड़े रक्खे ध्यय यही हो 
चंचल मन के जज्बातों से क्या लेना 

किसने क्या कहा क्या किया मैं झोल बहोत होंगे 
एक दूसरे के उन्मादो से क्या लेना 
मुखिया के मुख से प्रेम बरसे गर 
उलझनों की उलझाहट से क्या लेना 
परिवार को कैसे जोड़े रक्खे ध्यय यही हो 
सोच समंदर है इस्के अंदर से क्या लेना 

त्याग प्रतिमूर्ति है आपकी 
दुनिया की बातो से क्या लेना 
पूर्वजो ने लिखा है भविष्य घर का 
ऐरी गेरी बातो से क्या लेना 
परिवार को कैसे जोड़े रक्खे ध्यय यही हो 
उपजती हुयी पीड़ा जहर है इससे क्या लेना 

क्या दे रहे हो देखना जरूरी है 
नेत्र ,कर्ण ,मुख के कार्य मैं संयम होना जरूरी है 
मान सम्मान दया इज्जत के आगे क्रोध की अग्नि से क्या लेना ..
परिवार को कैसे जोड़े रक्खे ध्यय यही हो 
बागियों की बगावत से क्या लेना 

शिखर पर जो हो सम्मान हो गर 
अनुजो को इसका भान हो गर 
कठिनाइया घनघोर क्यो ना हो डर के संतापो से क्या लेना 
परिवार को कैसे जोड़े रक्खे ध्यय यही हो 
आने वाली हवाओं से क्या लेना ...

साम्यवाद ही सत्य है आती जाती सरकारो से क्या लेना 
घर के मुखिया की धाक हो गर उपवन के दुश्मनों से क्या लेना ..
हर एक अलग है अलग है सबकी काया अलग है सबकी सोच अलग है सबकी माया ..
पर एक है मंजिल सबकी कोई रुकने को नही आया 
तो मन मैं भावनाओ मैं ज्वर क्यो आया ..
प्रेम ही सत्य है.. दिशा छोटों की बड़े निर्धरित करें 
छोटों को बड़ों का मान हो ..
परिवार तुमसे ही है बस तुम्हे इसका ज्ञान हो 

written by - RSG NMH #Family #love #Friendship #UNITY #Pariwar #writers #lekhak #kavi #India #RSG
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Randheer singh Gahlot

वसुधा 

चलो कुछ ऐसा करते है जिन्दगी देती है उसे उसीका कुछ अर्पण करते है l 
बड़े बेवफा है हम अपनी जमी से अपने आसमान से फूल पत्ते खेत खलिहानौ से lइस्के जीवन और इंतजामो से 

               गर्म भाप पर हमने कई जिंदगियां चलायी l.                
  बडी आबादी को पालने कई नीतिया बनायी l
कच्चे को पक्का कर गये हम पल भर मैं 
हमने अपनी ही धरती को जहर की बूंदे पिलायी 

बड़े बड़े कारखानों के उत्पादनों की दुर्गंध 
कीचड़ सा मट्मेला जहरीला जल 
कांच सी गंगे यमुने बहती थी कलकल 
पीते गये हम बेफिक्र हलाहल 

संदेशा धरती देती देता कभी ये आसमान 
वक्त अभी भी है सुधर जाओ ए इंसान 
पर पगो पे जानवरो की चमड़िया सजती गयी 
पत्थरो के जंगलो की बस्तियां सजती गयी 

उजाड़ डाली हमने कई खुशबूदार गालिया 
कई पंछी मस्ताने कई अलबेली तितलियाँ 
धरती माँ है और माँ को दर्द होगा 
और अगर माँ को दर्द होगा तो तेरा क्या होगा 

पर अपनी ही धून मैं सवेरे सजाए 
माँ को भूले मदहोशी मैं जाए 
बनाए चलाए खिलाए जहर 
ऐसा भी क्या है पेसो का शहर 

धुन्द्ला गया आसमान धरती हो गयी बंजर 
मूकदर्शक बने हुऐ है देख रहे है मंजर 
अंतर इतना है तुम अपनी सोच रहे हो 
प्रकृति मर रही है क्या तुम देख रहे हो l

खोजे धरती के गर्भ मैं उपवन 
नगीनौ का जखीरा हीरों का चमन 
पर ना देखे धरती के विलाप को 
मौसम की बदलती तरंगे और आनेवाले सेलाब को l

अब जब लोग घुट घुट मर रहे है 
कोरोना के साए मैं जिन्दगी चला रहे है 
प्रकृति की शक्ति का आभास होरहा है 
कितने छोटे है हम ये अहसास होरहा है l

अभी भी वक्त है अभी भी संभल जाओ 
एक दूसरे को ना कोसो खुद ही बदल जाओ 
जो सांचा प्रकृति ने गढ़ा है 
उसीमे रहो उसीमे ढल जाओ ..

स्वरचित - रणधीर सिंह गहलोत आजके महौल को देखते हुऐ मैं अपनी कृति आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हु l आज जो कुछ भी हमारे जीवन मैं हो रहा है यह कही ना कही हमारी ही देन है l  मैं अपनी इस कविता के माध्यम से सबको नही समझा सकता पर एक दृश्य जो आपकी नजरो मैं भी है आपको याद दिलाना मेरा मकसद है l  उसपे कार्य करना मेरा और आपका कर्म 

#India #Love #poems #corona #COVID #COVIDー19 #writers #writers  #Divine

आजके महौल को देखते हुऐ मैं अपनी कृति आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हु l आज जो कुछ भी हमारे जीवन मैं हो रहा है यह कही ना कही हमारी ही देन है l मैं अपनी इस कविता के माध्यम से सबको नही समझा सकता पर एक दृश्य जो आपकी नजरो मैं भी है आपको याद दिलाना मेरा मकसद है l उसपे कार्य करना मेरा और आपका कर्म #India #Love #poems #corona #COVID #COVIDー19 #writers #writers  #Divine #writers  #COVIDー19

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