‘‘मेरी बिटिया‘‘ क्या होता है एक बेफिक्र लड़के से, एक मासूम बिटिया का पिता होने का सफर....... वो एहसास होता है, जब उसकी बिटिया पहली बार जन्म लेने के बाद आती है, उसकी बाहों में, तब बिटिया की एक मुस्कुराहट देखकर, उसे ताउम्र के लिये अपनी आंखों में बसा लेना फिर शुरू होता है, एक पिता का, पिता होने से लेकर वापस बचपन में जाने का दौर, सिर्फ मां नहीं जागा करती, सारी-सारी रात बिटिया के लिये, एक पिता की आंखों में भी कहां नींद होती है, सारी रात, वह भी जागता है, सारी रात, बिटिया को लेकर अपने हाथ। एक कठोर ह्रदय में पनपता है, फिर से ढेर सारा प्यार, सारे गमों को भुलाकर, पिता ले चलता है, बिटिया को नदियों पार। फिर पिता अपनी इच्छा, काम को करता है, दरकिनार, बस बिताना चाहता है, बिटिया के साथ बहुत सा समय, और करता है, लाड प्यार। जब बिटिया होती है, पिता की गोद में, तब होता है, एक एहसास बहुत खास। कुछ न भी हो, दुनिया में, तो भी लगता है, सब कुछ है उसके पास। बिटिया के एक आंसू भी देखना कठिन होता है, एक पिता के लिये। जो दिल टूटने पर भी नहीं रोता था किसी के लिये। यू ंतो जिंदगी बहुत से दुखों से भरी होती है, एक पिता की। पर बिटिया के रूप में एक परी होती है, उसकी। वैसे तो बिटिया तू अभी अपने पापा से कुछ कह नहीं पाती, बस तेरा गले लग जाना ही सब कुछ कह जाता है। और तेरी एक मुस्कुराहट से, तेरे पापा को सब कुछ मिल जाता है। मेरी कलम से...................... कुलदीप साहू ©kuldeep sahu meri bitiya #doughterlove