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कभी तुमसे उलझे कभी तुममें उलझे सिलसिला ये ज़ारी रहा

कभी तुमसे उलझे कभी तुममें उलझे सिलसिला ये ज़ारी रहा,
उलझी ज़ुल्फ़े जब बहके हम तब दिल क़ैद-ए-सलासिल रहा।

करता इबादत सुब्ह शाम तेरी हरसू दुआ तेरी फ़रियाद तेरी,
तू इबादत तू ख़ुदा जबसे, मैं मा'बद के कहाँ क़ाबिल रहा।

तेरी ज़ुल्फ़ों का घना शामियाना हो अब्र सर पे भले न हो,
तुझको ही ख़्वाब सा बुनता तन पर तू ख़्वाब-ए-जमील रहा।

नहीं तिश्नगी मिटती आँखों से,अपने होने का कुछ एहसास तो दो,
अधूरा महताब ज़िन्दगी का तेरे होने से ही मह-कामिल रहा।

मोहब्बत की क़सम है, नाम से बस तेरे लरजते हम सनम हैं,
बाँध दो ख़ुद से मुझे रिहाई न देना कभी, तू रूह का वासिल रहा।
— % & ♥️ Challenge-905 #collabwithकोराकाग़ज़

♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें! 😊

♥️ दो विजेता होंगे और दोनों विजेताओं की रचनाओं को रोज़ बुके (Rose Bouquet) उपहार स्वरूप दिया जाएगा।

♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।
कभी तुमसे उलझे कभी तुममें उलझे सिलसिला ये ज़ारी रहा,
उलझी ज़ुल्फ़े जब बहके हम तब दिल क़ैद-ए-सलासिल रहा।

करता इबादत सुब्ह शाम तेरी हरसू दुआ तेरी फ़रियाद तेरी,
तू इबादत तू ख़ुदा जबसे, मैं मा'बद के कहाँ क़ाबिल रहा।

तेरी ज़ुल्फ़ों का घना शामियाना हो अब्र सर पे भले न हो,
तुझको ही ख़्वाब सा बुनता तन पर तू ख़्वाब-ए-जमील रहा।

नहीं तिश्नगी मिटती आँखों से,अपने होने का कुछ एहसास तो दो,
अधूरा महताब ज़िन्दगी का तेरे होने से ही मह-कामिल रहा।

मोहब्बत की क़सम है, नाम से बस तेरे लरजते हम सनम हैं,
बाँध दो ख़ुद से मुझे रिहाई न देना कभी, तू रूह का वासिल रहा।
— % & ♥️ Challenge-905 #collabwithकोराकाग़ज़

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nazarbiswas3269

Nazar Biswas

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