सम्मान, दुआएं, यादें, प्यार बहुत कुछ लेकर जा रहा हूँ मैं । ये बात और है कि आज विरह गीत गा रहा हूँ मैं ।। यहाँ की हवा, मिट्टी और पानी अब अंतस में शामिल हैं मेरे । लोगों के दिलों में घर कर गया ये सोचकर आज इतरा रहा हूँ मैं ।। आज विरह गीत गा रहा हूँ मैं । जब होगी बात अपनों की तो हमारा भी ज़िक्र होगा यहाँ । सतपुड़ा की इन वादियों को अपनी एक कहानी देकर जा रहा हूँ मैं ।। आज विरह गीत गा रहा हूँ मैं । ज़िंदादिल लोगों की इस नगरी में स्नेह, शान्ति और भाईचारे का बसेरा है । होकर यहाँ का क्षणिक बाशिंदा ख़ुद की क़िस्मत पर इतरा रहा हूँ मैं ।। आज विरह गीत गा रहा हूँ मैं । मिला साथ इतना कि अज़नबी भी अपना लगने लगे । मिलना, बिछड़ना दस्तूर है बिछड़ने का ग़म लेकर जा रहा हूँ मैं ।। आज विरह गीत गा रहा हूँ मैं । ©AMLESH KUMAR #SAD #poem #meomories #diary #Life