"भारत"; खुद से लड़ता देश; ये धर्म से बटता प्रदेश। कभी सुनते थे, "यहाँ हर धर्म एक है।" हर धर्म के लोग यहाँ बसते हैं; लेकिन आज की हालत ऐसी है, की हर धर्म के लोग यहाँ "बटते"हैं। "तुम मनुष्य नही हो", "ना मैं इंसान का दर्जा रखता हूँ"; 'तुम मुस्लिम हो, मैं हिंदू हूँ', मैं यूँ ही तुमसे अलग दिखता हूँ। तुम गरीब, तुम लाचार, तुम्हारे तन पर वस्त्र नही, लेकिन मैं तो "किसी और" पर कपड़ा चढ़ाऊँगा; तुम भूखे, तुम कमज़ोर, अन्न की चाह रखते हो? लेकिन मैं तो "किसी और" को दाना खिलाऊँगा। तुम होते कौन हो मेरे धर्म के बारे कहने वाले? मेरी कट्टरता के बारे में जानते नही क्या? तुम्हारी क्या मजाल जो एकता की बात करते हो? हमारे धर्म दो अलग किनारे हैं, मानते नही क्या? ये आधुनिक युग का वो भारत है, जहाँ कोई इंसानियत को ना लड़ता है; कोई मज़हब पर ज़रा सवाल तो उठाए, तो वो हथियार उठाकर अड़ता है। कौन समझाए इन्हे, ये देश यूँ ही बिखर जाएगा, और रह जाएगा बस अवशेष; "भारत"; खुद से लड़ता देश, ये धर्म से बटता प्रदेश। ©Deepanshu #अखंडभारत #India #unity #kavita #poem #Life #alone #SAD #Wrong #One