कड़वाहट रिश्तों की, अब तो हर नेह दिलों में पहुंचने लगे है। मिट गया प्रेम अपनत्व यहां नफ़रत की आग धधकने लगे है।। तुम कौन हो, मैं कौन हूँ, भूल गए अब सब पहचान यहां पर, मन मैल हुआ, दूषित हुई वाणी, ईर्ष्या, द्वेष अब पलने लगे है।। खून के रिश्ते भी धूमिल पड़े, दिलों का भी अब तो नाता नही। इन्सान ही इन्सान को देख देख कर, अब तो जलने लगे है।। नही कोई निज गमों से परेशान, परायों की खुशियों से है दुखी, देख मानव का व्यवहार, धरा आसमाँ भी अब सिसकने लगे है। कैसे कह दूँ मैं की मिटता नही है कभी खून का रिश्ता यहां पर, मिटा प्रेम अब अपने ही अपनों के रक्त के प्यासे लगने लगे है। जिस्म की ही दूरियाँ नही, अब तो दिलों में भी बढ़ गई है दूरियाँ, कैसे सुधरेंगे बिगड़े हालात हमारे, सोचकर रूह आहें भरने लगे है ♥️ Challenge-578 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ विषय को अपने शब्दों से सजाइए। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।